UPA सरकार के एक और फैसले पर केन्द्र ने HC में चलाई कैंची

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NDA ने 2014 में केन्द्र की सत्ता पर काबिज होते ही UPA सरकार की कई सारी योजनाओं में भारी फेरबदल किया । इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में देशहित से जुडें मामलों में सरकार के स्टैंड को भी पूरी तरह से बदल दिया । चाहें वो तीन तलाक का मामला हो या राम मंदिर विवाद । ऐसे ही एक ओर मामले में मोदी सरकार ने हाईकोर्ट में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने वाले UPA सरकार के हलफनामे को बदल दिया है ।

दरअसल केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इंकार कर दिया है . इस तरह से देखा जाए तो एनडीए सरकार यूपीए सरकार के रूख से पलट गई है.

सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स (NCMEI) के उस फैसले पर असहमति जताई है, जिसमें NCMEI ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया है.जबकि कांग्रेस सरकार में साल 2011 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने NCMEI के फैसले का समर्थन किया था और कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने की बात स्वीकारी थी.

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केन्द्र सरकार ने अपने स्टैंड के पक्ष में कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य केस (साल 1968) का हवाला देते हुए बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो यूनिवर्सिटी संसद एक्ट के तहत शामिल है, उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं माना जा सकता. हलफनामे में कहा गया है कि ऐसा जरुरी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन होता है और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो. ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता.

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इसके साथ ही हलफनामे में कहा गया है कि जामिया अल्पसंख्यक संस्थान इसलिए भी नहीं है क्योंकि इसे संसद एक्ट के तहत बनाया गया और केन्द्र सरकार इसे फंड देती है. साथ ही इस संस्थान को अल्पसंख्यकों द्वारा भी स्थापित नहीं किया गया है. साल 2011 में NCMEI ने कहा था कि जामिया की स्थापना मुस्लिमों द्वारा, मुस्लिमों के फायदे के लिए की गई थी और यह संस्थान अपनी मुस्लिम पहचान को कभी नहीं छोड़ेगा. इसके बाद जामिया ने SC, ST और OBC छात्रों को आरक्षण देने से इंकार कर दिया. वहीं मुस्लिम छात्रों के लिए हर कोर्स में आधी सीट आरक्षित कर दी. 30 फीसदी सीट जहां मुस्लिम छात्रों के लिए, वहीं 10 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं के लिए और 10 फीसदी मुस्लिम पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दी गई.

आपको बता दें कि जामिया के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट में 5 याचिकाएं दाखिल की गईं. इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा तो तत्कालीन UPA सरकार के मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर NCMEI के फैसले का समर्थन किया.

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