7 जुलाई जयन्ती पर प्रकाशनार्थ-कालजयी कहानीकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिन्दी साहित्य का एक चिर-परिचित नाम है। वे एक प्रखर पत्रकार ख्यातिलब्ध निबन्धकार एवं आलोचक थे। उन्होंने केवल तीन कहानियां लिखीं, मगर उनकी कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ ने उन्हें हिन्दी का अमर कहानीकार बना दिया और कहानी के क्षेत्र में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनकी कहानी ‘उसने कहा था’ की गणना हिन्दी की दस सबसे लोकप्रिय कहानियों की की जाती है।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई 1883 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में गुलेर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित शिवराम शास्त्री और माँ का नाम लक्ष्मी देवी था। बाद में उनके पिता जी जयपुर, राजस्थान में बस गये थे।
घर में बालक को संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला। मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विधाओं को आत्मसात् किया। जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर भारत धर्म महामंडल के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया था। चन्द्रधर पढ़ने में बहुत मेधावी थे। उन्होंने सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कीं। चन्द्रधर बी.ए. की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। सन् 1904 ई. में गुलेरी जी मेयो काॅलेज, अजमेर में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। चन्द्रधर का अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में चन्द्रधर लोकप्रिय तो थे ही, इसके साथ अनुशासन और नियमों का वे सख्ती से अनुपालन करते थे।
उनकी असाधारण योग्यता से प्रभावित होकर पंडित मदनमोहन मालवीय ने उन्हें बनारस बुला भेजा और हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया। आगे चलकर उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफ.ए. और प्रयाग विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद चाहते हुए भी वे आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश जारी न रख पाए। उनके स्वास्थ्य और लेखन का क्रम अबाध रूप से चलता रहा। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की बेधशाला के जीर्णोंद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने ‘द जयपुर आॅब्जरवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स’ शीर्षक से अंग्रेजी ग्रन्थ की रचना की।
अपने अध्ययन काल में ही उन्होंने सन् 1900 में जयपुर में नगरी मंच की स्थापना में योगदान दिया। सन् 1902 में उन्होंने मासिक पत्र ‘समालोचक’ के सम्पादन का भार भी संभाला। कुछ वर्ष काशी की नागरी प्राचारिणी सभा के सम्पादक मंडल में भी उन्हें सम्मिलित किया गया। उन्होंने देवी प्रसाद ऐतिहासिक पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया। वे नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी रहे।
सन् 1906 में उन्होंने मेयो कालेज, जयपुर में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का पद संभाला। सन् 1922 में पंडित मदन मोहन मालवीय के विशेष आग्रह पर उन्होंने बनारस जाकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्य शिक्षा विभाग के अध्यक्ष का दायित्व ग्रहण किया। इसके बाद वे वहीं कार्यरत रहे।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने विविध विषयों पर लगभग सौ निबन्ध लिखे। इनमें से ‘शैशुनाक की मूर्तियाँ’, ‘देवकुल’, ‘पुरानी हिन्दी’, ‘संगीत’, ‘कच्छुआ धर्म’, ‘आँख’, ‘मोडिस मोहि कुठाऊं’ आदि बहुत लोकप्रिय हुए।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने कविताओं की भी रचना की। उनकी प्रमुख कविताएं-‘एशिया की विजय दशमी’, ‘भारत की जय’, ‘झुकी कमान’, ‘स्वागत’ एवं ‘ईश्वर से प्रार्थना’ है।
उन्होंने हिन्दी साहित्य में केवल तीन कहानियाँ लिखीं। इन कहानियों के नाम हैं-‘उसने कहा था’, ‘सुखमय जीवन’ और ‘बुद्धू का कांटा’। उनकी कहानी ‘उसने कहा था’ सन् 1915 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई। उनकी यह कहानी पाठकों के मध्य इतनी लोकप्रिय हुई कि इसने रातों-रात चन्द्रधर शर्मा गुलेरी को प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया और उनकी गिनती हिन्दी के प्रतिष्ठित कहानीकारों में होने लगी।
इस कहानी का कथानक प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है। गांव का भोलाभाला नौजवान और फौजी लहना सिंह इस कहानी का नायक है। कथ्य और शिल्प की दृष्टि से यह कहानी बेजोड़ है। इसमें शास्वत प्रेम, देशभक्ति, वीरता एवं अनूठे बलिदान की धारा प्रवाहित होती है। इसमें युद्ध का चित्रण और प्रेम कहानी साथ-साथ चलती है। कहानी के नायक लहना सिंह में एक सफल नायक थे सभी गुण समाहित हैं। वह एक उत्कट देशभक्त, बहादुर तथा कर्तव्यनिष्ठ नौजवान है। वह जहां देश के आत्म सम्मान के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा सकता है वहीं वह अपनी प्रेमिका को दिए गए वचन के पालन हेतु अमिट बलिदान देना भी जानता है। लहना सिंह एवं बचपन की प्रेमिका सूबेदारनी के आस-पास घूमती यह कहानी पाठकों के अन्तर्मन को गहराई से छू जाती है।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की मृत्यु केवल 39 वर्ष की अवस्था में 12 सितम्बर 1922 को काशी में हुई। आज वे हमारे मध्य नहीं हैं, मगर अपनी कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ के माध्यम से वे हिन्दी साहित्य जगत में सदैव अमर रहेंगे।
बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट