पार्टी के भीतर उठे सवाल ने बढ़ाई राहुल गांधी की परेशानी , भाजपा के साथ-साथ अपनों से भी लड़ना होगा
पार्टी के भीतर उठे सवाल ने बढ़ाई राहुल गांधी की परेशानी , भाजपा के साथ-साथ अपनों से भी लड़ना होगा
सवाल राहुल गांधी पर नहीं बल्कि उनके सलाहकारों, मैनेजरों पर उठ रहे हैं
2019 में अध्यक्ष पद छोड़ना राहुल गांधी की थी बड़ी भूल
पत्र लिखना बुरा नहीं, लेकिन मजमून सार्वजनिक करना गलत था
विस्तार
कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए कांग्रेस पार्टी के भीतर एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के मैनेजरों, सलाहकारों पर सवाल उठा रहे हैं। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि राहुल गांधी जिन लोगों से घिरे हैं, उनमें गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोग हैं और उनकी सलाह पर राजनीतिक फैसले लिए जाते हैं।
राहुल गांधी की टीम में शामिल एक महिला नेता का मानना है कि मुश्किलें थोड़ा बढ़ी हैं। पार्टी में गलत समय इस तरह के विरोधाभास सामने आए हैं। इसके लिए वह पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा 2019 में अचानक इस्तीफा देने को भारी भूल मान रही हैं। पार्टी की तेज तर्रार नेता का कहना है कि ऐसा अकेले वह ही नहीं, बल्कि उनके जैसे पार्टी के तमाम युवा नेता सोचते हैं। हालांकि उनका कहना है कि कांग्रेस पार्टी को आगे की राजनीतिक दिशा भी राहुल गांधी जैसा नेता ही दे पाएगा। यह किसी और के बस की बात नहीं है।
राहुल गांधी से क्या नाराजगी?
पार्टी के 23 नेताओं में पत्र लिखने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राहुल गांधी से निजी तौर पर कोई नाराजगी नहीं है। राहुल गांधी 2004 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हैं। पिछले पांच साल से वह फ्रंट लाइन की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को काफी कुछ दिया है। सवाल यहां पार्टी के भविष्य और भावी चुनौतियों को लेकर है।
सामने 2014 और 2019 की बदली हुई भाजपा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि है। उसके सामनांतर एक मजबूत, सक्रिय, एकजुट विपक्ष की आवश्यकता है। वरिष्ठ नेता का कहना है कि कांग्रेस में केंद्रीय और राज्य स्तर पर बिना मजबूत नेतृत्व के यह संभव नहीं है। इसलिए संगठन में आमूल-चूल बदलाव समय की आवश्यकता है।
आनंद शर्मा जैसे नेता राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के यहां हुई बैठक में जानना चाहते हैं कि पत्र लिखकर जो मुद्दे उठाए गए थे, उसको लेकर पार्टी आगे क्या करना चाहती है। शशि थरूर, मनीष तिवारी का भी मानना है कि चुनौतियों को देखते हुए पार्टी को पारदर्शिता भरे कदम उठाने होंगे।
गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक ने क्यों किए हस्ताक्षर?
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की टीम की तरफ चलिए। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का कहना है कि पत्र लिखना ठीक है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। कभी-कभी आप जिन बातों को अपने नेता से नहीं कह पाते, पत्र लिखकर पार्टी फोरम पर उसे उठा सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर हमेशा से यह परंपरा भी रही है।
लेकिन मुकुल वासनिक ने तो लंबे समय से संगठन का कामकाज देखा है। गुलाम नबी आजाद बहुत वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें पार्टी की नेता को लिखे जाने पत्र पर हस्ताक्षर से पहले सोचना चाहिए था। कपिल सिब्बल जैसे संजीदा नेता के लिए यह अच्छा नहीं कहा जाएगा। पार्टी अध्यक्ष का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, समय सही नहीं था। दूसरे यह पत्र भी लिखने के बाद सार्वजनिक हो गया है। यह सही नहीं हुआ।
सूत्र बताते हैं कि मुकुल वासनिक ने बाद में गलती मानते हुए माफी मांग ली। गुलाम नबी आजाद भी थोड़ा नरम पड़े। राहुल गांधी ने कपिल सिब्बल का सम्मान करते हुए उन्हें फोन किया। हालांकि सभी का मानना है कि कई मुद्दे जरूरी हैं। पार्टी के भीतर कई बदलाव जरूरी है। विश्वास है कि कांग्रेस अध्यक्ष इस पर ध्यान देंगी।
लोकतांत्रिक पार्टी है कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि जहां इतनी बड़ी पार्टी है, वहां छोटी-मोटी चीजें चलती रहती हैं। राजनीति करने वाले लोग हैं तो राजनीति भी होगी। यही कांग्रेस पार्टी की खूबसूरती है। सूत्र का कहना है कि पिछले 10 साल में इस तरह का एक उदाहरण आप भाजपा में बताइए? वरिष्ठ नेता के अनुसार कांग्रेस पार्टी के भीतर सोनिया गांधी को नेता मानने से किसी को एतराज नहीं है।
कांग्रेस पार्टी ने ही लोकसभा चुनाव से पहले सर्वसम्मति से पार्टी संगठन की चुनाव प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी को अध्यक्ष चुना था। यह तो एक अच्छी बात है कि हम अपने राजनीतिक मामलों में ‘क्या अच्छा और क्या खराब’ इसकी चर्चा तो कर रहे हैं? कभी-कभी भ्रम की स्थिति भी बन जाती है। लेकिन जब पार्टी के फोरम पर इस तरह की परिस्थिति (पत्र लिखने, बात रखने, विवाद पैदा होने) की स्थिति आती है, तभी तमाम भ्रम भी दूर होते हैं। सूत्र का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी इसी तरफ ईशारा किया है। आगे जो सही होगा, वह निर्णय भी कांग्रेस अध्यक्ष लेंगी।
क्या पार्टी के भीतर आंतरिक कलह है?
महाराष्ट्र से आने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इसे अंतर्कलह मत कहिए। इसे पार्टी के नेताओं की भविष्य को ध्यान में रखकर चिंता कह सकते हैं। आने वाले समय में राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। केंद्र सरकार देश के सामने आसन्न चुनौतियों का सामना करने में लगातार फेल हो रही है। जनता की परेशानी बढ़ रही है।
कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाते हुए महत्वपूर्ण मुद्दे उठा रही है। अन्य विपक्षी दल इस मामले में अलग-थलग हैं। इसलिए सत्तारुढ़ दल के सामने चुनौती पेश करने के लिए विपक्ष को मजबूत भूमिका में आना होगा। यह बिना कांग्रेस के संभव नहीं है।
राहुल गांधी के लिए छूटे हुए सवाल
कांग्रेस कार्यसमिति की सोमवार को संपन्न हुई बैठक ने राहुल गांधी के लिए कई सवाल छोड़े हैं। पार्टी के एक धड़े का मानना है कि यह सवाल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कभी करीबी रहे सूत्र का कहना है कि कोई भी सवाल बदलाव के लिए खड़ा होता है। समय-समय पर सवाल खड़ा होना भी जरूरी है। ताकि सिस्टम की जीवंतता बनी रहे।
रोहन गुप्ता जैसे युवा नेता भी मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी नेहरू-गांधी परिवार के बिना न तो एकजुट रह सकती है और न ही आगे की राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर सकती है। बनारस के राजेश मिश्रा सरीखे नेता भी मानते हैं कि 1996 से क्या हुआ, हम सब जानते हैं। केरल के एक बड़े कांग्रेसी नेता का कहना है कि बिना नेहरू-गांधी परिवार के कांग्रेस राष्ट्रीय दल का दर्जा ही खो देगी।
पार्टी के भीतर नेताओं में आपस में सिर फुटौव्वल शुरू हो जाएगी और तमाम नए दल बन जाएंगे। सूत्र का कहना है कि इसे पार्टी के लगभग सभी नेता मानते हैं। वह कहते हैं कि 1950 के बाद से 2000 तक देख लीजिए।