अल्लाह के लिए अपना सबकुछ क़ुर्बान कर देने की याद ताज़ा करती है क़ुर्बानी- मुफ़्ती नश्तर फ़ारूक़ी !
बरेली : क़ुर्बानी इस्लाम का अज़ीम शेआर (निशानी) और एक माली इबादत है, जो भी सहिबे निसाब है उस पर क़ुर्बानी वाजिब है। क़ुर्बानी वाजिब होने के लिये माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नही। साहिबे निसाब मर्द व औरत पर खुद उसके नाम से क़ुर्बानी वाजिब है। 10-11 और 12 जिलहज्जा को मखसूस शर्तों के साथ अल्लाह की रज़ा के लिए जानवर ज़बह करने (काटने) को क़ुर्बानी कहते हैं। दरगाह आला हजरत सुन्नी मरकजी दारूल इफ्ता के मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारूक़ी ने कहा हदीसे पाक में है कि कुर्बानी के दिनों में अल्लाह के नजदीक कुर्बानी से ज़्यादा महबूब कोई अमल नहीं, एक और हदीसे पाक में आया है कि क़ुर्बानी के लिए जो रक़म जानवर पर खर्च होती है उससे अफजल कोई रक़म नहीं। सहाबा एकराम ने पूछा या रसूल अल्लाह कुर्बानी की क्या हक़ीक़त है, हुज़ूर ने इर्शाद फरमाया ये तुम्हारे वालिद हज़रत इब्राहीम की सुन्नत है, सहाबा एकराम ने फिर पूछा, हमें इसपर क्या मिलेगा, हुज़ूर ने इर्शाद फरमाया, जानवर के हर बाल के बदले एक नेकी। कुर्बानी के लिए भैंस, ऊँट, बकरी और दुम्बा वगैरह का हुक्म है ख्वाह नर (मेल) हों या मादा (फिमैल), कुर्बानी का जानवर हर ऐब से पाक होना चाहिए, बड़े जानवरों की उम्र में ऊट 5 साल, भैंस 2 साल और बकरा 1 साल का होना चाहिए, बड़े जानवरों में सात लोग शरीक हों सकते है। कुर्बानी का वक़्त देहात वालों के लिए 10 वीं जिलहज्जा (बकरीद) की सुब्ह से 12 वीं जिलहज्जा (बकरीद) की गुरूबे आफताब से पहले तक है, अलबत्ता शहर वालों के लिए नमाजे ईद के बाद कुर्बानी करने का हुक्म है।
10 वीं जिलहज्जा को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने एकलौते बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की ख़ुशी के लिए कुर्बान कर दिया था लेकिन अल्लाह ने हज़रत जिबरईल को भेज कर पलक झपकते ही हज़रत इस्माईल की जगह एक दुमबे को लिटा दिया, ज़बह करने (काटने) के बाद जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी आँखों से पट्टी हटाई तो देखा कि हज़रत इस्माईल एक तरफ़ खड़े मुस्कुरा रहे हैं और उनकी जगह दुम्बा ज़बह हो गया है, उसी वक़्त अल्लाह ने निदा फ़रमाई, हम भलाई करने वालों को ऐसे ही बदला देते हैं, इस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की राह में उसकी रज़ा व ख़ुशनूदी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर देने की मिसाल कायम कर दी।
अल्लाह को ये अमल इस क़दर पसन्द आया कि क़यामत तक आने वाले तमाम मुसलामानों के लिए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की यह सुन्नत कुर्बानी की शक्ल में वाजिब फ़रमा दी। मुफ्ती फारूक़ी साहब की तरफ से जमात रजा के प्रवक्ता समरान खान ने जानकारी देते हुए बताया इस्लामी माह जिलहज्जा की इन्ही दिनों में इस्लाम के एक अहम रुक्न हज की भी अदायगी अमल में आती है जिस में दुनिया भर के हर हिस्से से मुसलामानों की बड़ी तादाद शरीक होकर अपने रब के मुकद्दस घर का तवाफ़ करती है। कुर्बानी करने से पहले की दुआ और कुर्बानी करने के बाद की दुआ सोशल मीडिया पर वायरल कर दी है ताकि आम लोगों तक पहुँच सके।
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट