मुग़ल कालीन रियासत(जागीर )सेथल-हिन्दू मुस्लिम एकता की पहचान
मुग़ल कालीन रियासत(जागीर )सेथल जो आज भी हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए मशहूर है कि नवाब गालिब अली साहब का झाँसी परिवार से भी एक पुराना रिश्ता रहा है उस रिश्ते मे पुल का काम किया रानी झांसी लक्ष्मीबाई के मूँह बोले भाई नवाब बांदा जनाब अली बहादुर साहब ने जो पेशवा बाला जी बाजीराव के पुत्र नवाब शम्शेर अली बहादुर के पुत्र थे!
जब 1857 ई० की जंगे आज़ादी की शिरुआत हिन्दुस्तान मे हुई तो रानी लक्ष्मीबाई,नाना साहब ,कुवंर सिह ,नवाब अली बहादुर बांदा अंग्रेजो से लोहा लेने लगे इधर रोहेलखण्ड मे नवाब खान बहादुर ने बहादुर शाह ज़फर के परचम तले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड दी जिसमे सेथल के नवाब गालिब अली ने एक फौजी टुकडी और धन दौलत से उनका साथ दिया!
जब ये बागावत कुचल दी गयी और रानी लक्ष्मीबाई और उनके सहयोगियो की फौजे तितर बितर होने लगी तो नवाब अली बहादुर बांदा ने रानी लक्ष्मीबाई और अपनी संयुक्त फौज की एक बडी तादात को रियासते सेंथल रवाना कर दिया, नवाब गालिब अली ने पट्टी गाव के पश्चिम मे एक तालाब के किनारे एक विशाल मैदान मे (जहाँ कुछ दिन बाद नवाब गालिब अली ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो की याद मे मोहन मंदिर का निर्माण कराया था) उनको बसाया (पट्टी गाव के लोग आज भी इस फौज को लदनियों के नाम से याद करते है)फिर कुछ कारणो से इनको बिजासन, चठिया रज्जब अली ,मौअज्जम नगला , साबिर पुर (साबे पुर),गुजरान पुर, जमनियां सहित कई जगह आबाद किया आज भी इनकी नस्ले यहाँ आबाद है और हरबोले कहलाती है!
आज कालाम ,पानीपत मे नवाब बांदा अली बहादुर के वंशज नवाब शादाब अली बहादुर के आमंत्रण पर इस मराठा शौर्य दिवस मे जाने का अवसर मिला तो पुराने ताल्लुकात और इतिहास दोनो ज़िन्दा हो गये..बहुत शुक्रिया नस्ले पेशवाई के चश्मो चिराग़ नवाब शादाब अली बहादुर साहब .
सेंथल से शाह उर्फ़ी की क़लम से !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !