1857 ईo के ग़दर की गवाह सेथल की ऐतिहासिक मस्जिद नवाब ग़ालिब अली( बाज़ार वाली) !
बात 1857 ई० के ग़दर से कुछ पहले की है , सेथल के नवाब गालिब अली साहब के शादी के कई साल तक जब कोई औलाद न हुई तो उन्होने काफी इबादत ओ दुआऐ मांगी !फिर उनको ख्वाब मे बिशारत हुई कि एक मस्जिद और कुँऐ की तामीर करवाओ तब तुम्हारी मुराद पूरी होगी .नवाब साहब ने ख्वाब अपने दोस्तो और बुज़र्गो को सुनाई तो सब ने मिलकर कहा कि ये काम जल्द करो।उस वक़्त हिंदोस्तान में हंगामी हालात चल रहे थे और अंग्रेजों का ज़ुल्म अपने उरुज पर था ।
मुजाहिदीन खुफिया तौर पर जगह जगह अपनी मीटिंग्स कर रहे थे । इसी सिलसिले की एक मीटिंग के लिए मिर्ज़ा फ़ीरोज़ बख्त , मौलवी अहमद शाह और खान बहादुर व मुंशी शोभा राम सेथल नवाब गालिब अली साहब के पास तशरीफ लाए , इसी मौके पर नवाब गालिब अली ने मिर्जा फीरोज़ ,मौलवी अहमद शाह ,व खान बहादुर की मौजूदगी मे बाजार के क़रीब मस्जिद और एक चाह पुख्ता की संगे बुनियाद रखी ! खुदा के रहमो करम से नवाब गालिब अली साहब के चार बेटे सय्यद मज़हर अली ,सैय्यद नज़र अली ,सैय्यद हैदर अली व सैय्यद मौहम्मद ज़फर हुऐ..
और इसके बाद सेथल मे एक रस्म ‘ आबे तार बाजार ‘ शिरु हुई जिसमे तमाम मजहब (जिसमे हिन्दू ,मुसलमान शामिल है)के लोग शादियो मे हवेली नवाब गालिब अली और मस्जिद नवाब गालिब अली (बाजार वाली) का पानी मिलाकर शगुन के तौर पर इस्तेमाल करते थे ताकि खुदा उनको दौलते औलाद से नवाजे…
इस मस्जिद में आज भी हर फिरके के लोग नमाज़ अदा करते हैं।
(बा हवाला रोजनामचा मीर मौहम्मद ज़फर)
मस्जिद नवाब गालिब अली (बाजार वाली) मुहाल ज़र्द खसरा नं० 73 मुताबिक 1285 फसली में इंद्राज है
सेंथल से शाह उर्फ़ी रज़ा ज़ैदी की क़लम से !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !