हरयाणा का पहला लो.डोज सीटी स्कैन लॉन्च हुआ , पहला लो.डोज सीटी स्कैन जिससे लंग कैंसर की जल्द जांच हो सकती है
* पारस हॉस्पिटल देश का तीसरा हॉस्पिटल बन गया है जहाँ लो.डोज सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा दिल्ली और मुम्बई के एक.एक हॉस्पिटल में यह मशीन उपलब्ध है।
* पारस हॉस्पिटल ने कैंसर के दो जटिल मामलोँ का इलाज किया जिसका कारण तम्बाकू का इस्तेमाल था।
गुडगांव, 3rd जून 2019 :- विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के उपलक्ष्य में पारस हॉस्पिटल ने हरयाणा में पहले लो.डोज सीटी स्कैन लॉन्च करने की घोषणा की है. यह एक ऐसी सुविधा है जिसकी मदद से फेफडे के कैंसर की तेज और सटीक जांच करना आसान हो जाता है। एक लो.डोज सीटी स्कैन लंग कैंसर के जांच की एक त्वरित, दर्द रहित और नॉन-इनवेसिव पद्धति है और इस प्रक्रिया की दौरान मरीज के शरीर में रेडिएशन भी नहीं छूटता है।
पारस हॉस्पिटल, गुडगांव के डॉ.अरुणेश कुमार, चीफ ऑफ़ पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन, पारस हॉस्पिटल कहते हैं कि “ लो .डोज सीटी स्कैन हमारे लिए बहुत बडी उपलब्धि है क्योंकि यह स्क्रीनिंग की सबसे आधुनिक मशीनरी है जिसका इस्तेमाल तमाम विकसित देशोँ में हो रहा है। यह एक एडवांस्ड सिस्टम है जो कि परम्परागत सीटी.स्कैन के मुकाबले बेहतर परिणाम देता है. इसका सबसे अधिक फायदा धूम्रपान करने वालोँ को हो सकता है क्योंकि इसके होने से उन्हेँ सीटी स्कैन की लम्बी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पडेगा। यह प्रक्रिया छोटी है किंतु अधिक प्रभावी है और यह हमेँ लंग कैंसर से ज्यादा से ज्यादा लोगोँ की जान बचाने में मदद करेगी।
इस साल पारस हॉस्पिटल ने कैंसर के दो जटिल मामलोँ का इलाज किया जिसका कारण तम्बाकू का इस्तेमाल था।”
पहले मामले में, रचना शर्मा (बदला हुआ नाम) 48 साल को कमजोरी की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था और जांच में उन्हेँ नॉन.स्माल.सेल लंग कार्सिनोमा (एनएससीएलसी) की पुष्टि हुई। उन्हेँ पहले से हाइपरटेंशन और फेफडे की समस्या थी और इसी साल पहले सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत होने पर एक अन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉ. कौशल यादव ने कीमोथेरेपी के जरिए उनका सफल इलाज किया और उसी दिन उन्हे अस्पताल से छुट्टी से दी गईए और फॉलो.अप के लिए अस्पताल आते रहने का परामर्श दिया गया।
भारत में फेफडे का कैंसर सबसे आम प्रकार के कैंसर में शामिल हैए जो 7.5% आबादी को प्रभावित करता है। फेफडे के कैंसर को दर्शाने वाले मुख्य कारकोँ में शामिल हैं. 55 से 75 साल की आयु, अत्यधिक धूम्रपान करना (30 साल या इससे अधिक समय तक), मौजूदा समय अथवा हाल के दिनोँ में धूम्रपान करने वाले (15 साल) धुएँ का ऑक्युपेशनल सम्पर्क, प्रदूषण अथवा पैस्सिव स्मोकिंग का सम्पर्क, कैंसर का पारिवारिक इतिहास होना, लगातार खांसी होना जिसपर इलाज का कोई असर नहीं होना, आवाज में बदलाव और बलगम के साथ रक्त आना।
I.K Kapoor