Supreme Court : फेयरवेल स्पीच में बताई कहानी, मां ने जो सोचकर नाम रखा था वही हासिल करके रिटायर हुए CJI चंद्रचूड़,

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ अब रिटायर हो चुके हैं। शुक्रवार (8 नवंबर) उनका आखिरी कार्यकारी दिन था। इस मौके पर उनका फेयरवेल कार्यक्रम रखा गया था।

इस कार्यक्रम में उन्होंने कई मजेदार किस्से सुनाए उन्होंने बताया कि उनकी मां ने एक बार उन्हें उनके नाम का मतलब समधाया था और कहा कि इसमें धन शब्द का अर्थ दौलत से नहीं बल्कि ज्ञान की संपदा से है यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायादीश के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने मां के सपने को पूरा किया।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को देश का 51वां प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। वह 11 नवंबर को शपथ लेंगे। इससे एक दिन पहले मौजूदा सीजेआई चंद्रचूड़ ने 65 वर्ष की आयु होने पर पद छोड़ दिया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 8 नवंबर, 2022 को सीजेआई के रूप में पदभार संभाला था। इसके बाद उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए। हालांकि, वह उनके जीवन का सबसे अहम फैसला अयोध्या राम मंदिर का था। राम मंदिर का फैसला पांच जज की बेंच ने सुनाया था और डीवाई चंद्रचूड़ इसका हिस्सा थे।

फेयरवेल स्पीच में क्या बोले?

अपने विदाई समारोह को संबोधित करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, “इतने बड़े सम्मान के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं।

जब मैं बड़ा हो रहा था तो मेरी मां ने मुझसे कहा था कि मैंने तुम्हारा नाम धनंजय रखा है। लेकिन तुम्हारे ‘धनंजय’ में ‘धन’ भौतिक संपदा नहीं है। मैं चाहती हूं कि तुम ज्ञान अर्जित करो।”

पिता ने घर के साथ दी सीख

डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा “उन्होंने (मेरे पिता ने) पुणे में यह छोटा सा फ्लैट खरीदा था। मैंने उनसे पूछा, आखिर आप पुणे में फ्लैट क्यों खरीद रहे हैं? हम कब जाकर वहां रहेंगे? उन्होंने कहा, मुझे पता है कि मैं वहां कभी नहीं रहूंगा। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि मैं आपके साथ कब तक रहूंगा। लेकिन एक काम करो, जज के तौर पर अपने कार्यकाल के आखिरी दिन तक इस फ्लैट को अपने पास रखो।

मैंने कहा, ऐसा क्यों? उन्होंने कहा, अगर आपको लगता है कि आपकी नैतिक ईमानदारी या बौद्धिक ईमानदारी से कभी समझौता किया गया है, तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपके सिर पर छत है। एक वकील या एक जज के तौर पर कभी भी खुद को समझौता करने की अनुमति न दें क्योंकि आपके पास अपना कोई घर नहीं है।”

ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

 

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