सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई के लिए समय सीमा में कटौती की है,अब 18 अक्टूबर की तारीख तय की थी
सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई के लिए तय समय सीमा में कटौती की है.
शीर्ष कोर्ट ने मामले के सभी पक्षकारों से कहा कि वो 17 अक्टूबर तक बहस पूरी कर लें. इससे पहले शीर्ष कोर्ट ने बहस पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की थी.
- कोर्ट ने राम मंदिर मामले की सुनवाई के लिए तय समय में कटौती की
- अब 17 अक्टूबर तक मामले के पक्षकारों को पूरी करनी होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की बहस पूरी करने की नई समय सीमा तय की है. शीर्ष अदालत ने मामले के सभी पक्षकारों से कहा कि वो 17 अक्टूबर तक बहस पूरी कर लें. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बहस पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की थी. अब बहस पूरी करने के लिए एक दिन कम कर दिया गया है. अब रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के पक्षकारों को 17 अक्टूबर तक बहस पूरी करनी होगी.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में 37वें दिन भी रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई जारी रही. शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष की तरफ से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने अपनी दलीलें शुरू कीं. इस दौरान जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या इस्लाम में देवत्व को किसी वस्तु पर थोपा जाता है? इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि दोनों धर्मों में ऐसा ही होता है, इस्लाम में मस्जिद इसका उदाहरण है.
जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम हमेशा सुनते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है, आप अल्लाह की पूजा करते हैं ना कि किसी वस्तु की. हम देखना चाहते हैं कि क्या किसी संस्था ने मस्जिद को पूज्य माना है, क्योंकि सिर्फ अल्लाह को पूजे जाने की बात आती है.
इस दौरान सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि हिंदू पक्षकार बाबर पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का इल्जाम लगाते हैं, लेकिन बाबर कोई विध्वंसक नहीं था. मस्जिद तो मीर बाकी ने एक सूफी के कहने पर बनाई थी. इस दौरान उन्होंने पढ़ा कि ‘है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज़ अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द.’
वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि बाबर ने बाबरी मस्जिद को कोई इमदाद दी हो? इस पर राजीव धवन ने किसी भी तरह के सबूत होने की बात से इनकार कर दिया. साथ ही कहा कि सबूत मंदिर के दावेदारों के पास भी नहीं है.
मस्जिद पर हमले के बाद मुस्लिमों को मिला था मुआवजाः राजीव धवन
सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि 1855 में एक निहंग वहां आया और उसने वहां गुरु गोविंद सिंह की पूजा की और निशान लगा दिया था. हालांकि बाद में सारी चीजें हटा दी गई थीं. ब्रिटिश गवर्नर जनरल और फैज़ाबाद के डिप्टी कमिश्नर ने भी पहले बाबर के फरमान के मुताबिक मस्जिद के रखरखाव के लिए रेंट फ्री गांव दिए थे और फिर राजस्व वाले गांव दिए थे. आर्थिक सहायता के चलते ही दूसरे पक्ष का एडवर्स पजिशन नहीं हो सका.
राजीव धवन ने कहा कि साल 1934 में मस्जिद पर हमले के बाद नुकसान की भरपाई के लिए मुस्लिमों को मुआवजा भी दिया गया. 10 दिसंबर 1884 में भी एक बैरागी फकीर मस्जिद की इमारत में घुसकर बैठ गया था. जब प्रशासन की चेतावनी के बावजूद वह बाहर नहीं निकला, तो उसको जबरन निकाला गया था और उसका लगाया झंडा भी उखाड़ा गया था.
36वें दिन की सुनवाई में क्या-क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को हिंदू पक्षकार ने अपनी दलीलें रखी. गुरुवार को पहले रामलला के वकील की ओर से पक्ष रखा गया, फिर निर्मोही अखाड़ा और बाद में गोपाल सिंह विशारद की ओर से पक्ष रखा गया. निर्मोही अखाड़ा की ओर से एडवोकेट सुशील जैन ने बहस की शुरुआत की. उन्होंने कोर्ट से कहा कि अब ये सुनवाई 20-20 जैसी हो गई है. उनकी इस टिप्पणी पर कोर्ट ने नाराजगी जताई. साथ ही कहा कि आपको साढ़े चार दिन दिए. अब आपको जवाब देना है, तो अब आप इसे 20-20 कह रहे हैं? तो क्या आपकी पिछली बहस टेस्ट मैच थी?