Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बढ़ेगी बैंकों की मुसीबत बैंकिंग एक्सपर्ट का दावा
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बैंकिंग फ्रॉड (Banking Fraud) से जुड़े एक अहम फैसले में कहा है कि ऐसे खाताधारकों को एक और मौका दिया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत का यह फैसला भले ही लोन लेने वालों के हित में हो,
लेकिन बैंकिंग इंडस्ट्री का मानना है कि इससे उनकी मुसीबत और बढ़ जाएगी. बैंकिंग एक्सपर्ट की मानें तो कानूनी पेंच में फंसकर अब लोन वसूली में और देरी हो सकती है.
शीर्ष अदालत ने 27 मार्च को दिए एक फैसले में कहा है कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित किए जाने से पहले उसके पक्ष को सुनने का एक और मौका दिया जाना चाहिए. फैसले के अनुसार, लोन धारक को भी यह अधिकार है कि उसके खाते को फ्रॉड घोषित किए जाने से पहले बैंक उसका पक्ष भी सुने. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में 2016 में जारी रिजर्व बैंक के मास्टर सर्कुलर का पालन करने से पहले ध्यान दिया जाना चाहिए.
क्यों दिया यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी खाते को फ्रॉड घोषित किया जाता है तो उस खाताधारक के साथ कई तरह के सिविक और क्रिमिनल एक्टिविटीज अपने आप जुड़ जाते हैं. उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है और भविष्य में उसे किसी तरह लोन भी नहीं मिल पाता. लिहाजा ऐसा कदम उठाए जाने से पहले आरबीआई के मास्टर सर्कुलर का पालन करते हुए ऐसे खाताधारक की बात भी सुनी जानी चाहिए. आरबीआई ने 2016 में जारी मास्टर सर्कुलर में कहा था कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले खाते को बैंक फ्रॉड घोषित कर सकते हैं. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि कर्जधारक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने से पहले उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए.
बैंकों पर खर्च भी बढ़ेगा
बैंकिंग एक्सपर्ट और एबसीआई के पूर्व बैंकर नरेश मल्होत्रा का कहना है कि इससे बैंकों पर कानूनी प्रक्रिया निपटाने के लिए खर्च भी बढ़ेगा. इतना ही नहीं अब किसी खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिससे न सिर्फ समय ज्यादा लगेगा बल्कि बैंकों पर खर्च भी बढ़ेगा. फिच समूह की इंडिया रेटिंग्स के बैंकिंग एनालिस्ट करन गुप्ता का कहना है कि अब बैंकों को पहले से ही विलफुल डिफॉल्टर बने खाताधारक के खिलाफ कोर्ट में भी नए सिरे से सबूत पेश करना होगा. यह सिर्फ प्रकिया को बढ़ाने वाला काम है.
ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन