सुन्नी मरकज़ दरगाह आला हज़रत ने फ़तवा जारी किया !
बरेली (अशोक गुप्ता )- बरेली नेपाल के जनपद दांग के घोराही और जनपद कपिलवसतु के किरशनानगर से 9 उलमा और सामाजिक कार्यकर्ताओ का एक वफद (प्रतिनिधि मंडल) मरकजे अहल-ए-सुन्नत दरगाह आला हज़रत बरेली शरीफ पहुंचा। इस बीच इन्होने अपने एक आपसी विवाद का बरेली शरीफ़ के दारुल इफता से निपटारा कराया।
दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने आला हज़रत के मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी के हवाले से बताया कि नेपाल के प्रदेश नम्बर 5 के जनपद दांग का एक पहाडी शहर “घोराही ” है जहां सुन्नी,सूफी,खानकाही,विचाराधारा के मुसलमान दशकों से रह रहे हैं जो मरकजे अहल-ए-सुन्नत दरगाह आला हज़रत बरेली शरीफ तथा आला हज़रत और उनके परिवार से आस्था रखते हैं। घोराही जनपद दांग की मेन मार्केट में ” मस्जिद मसलके आलाहज़रत ” के नाम से एक भव्य मसजिद और ” मदरसा गौसिया मसलके आलाहज़रत ” के नाम से एक भव्य शैक्षिक संस्था है जो यहां दशकों से सुन्नी सूफी विचारधारा के प्रसार में व्यस्त हैं। लेकिन कुछ वक़्त से इस क्षेत्र में कुछ लोग सउदी अरब और दुबई आदि खाडी देशों में नौकरी करने गये और वहां से वहाबी,सलफी और गुमराहियत की कट्टरविचारधारा लेकर आ गए तथा गुप्त रूप से और कारोबारी संबंध बना कर वहाबी विचार धारा का चुपके चुपके प्रसार करने लगे और मुस्लिम समाज मे विवाद उत्पन्न कर के यहाँ की मुस्लिम एकता और आपसी सौहार्द को आग लगाने का काम कर रहे है।
यहां के काजी-ए- शहर व खलीफ-ए- हज़रत सुबहानी मियॉ मौलाना जहीर रज़वी ने जब यह स्थिति देखी तो उन्होने इन वहाबियों के सुन्नी मस्जिद में प्रवेश करने और विवाद उत्पन्न करने,इन से मेल जोल रखने,इनको शादी ब्याह में बुलाने आदि पर रोक लगाने का एलान कर दिया परंतु जो लोग इन वहाबियों के संपर्क में आ चुके थे और इन से सहानुभूति रखते थे उन्होने इन वहाबियो का विरोध करने का काजी ए शहर पर एतराज किया और यह विवाद इतना बढा कि धोराही शहर के सारे सुन्नी मुसलमानो ने बैठक कर यह प्रस्ताव पारित किया कि हम सब सुन्नी मुसलमानो का मरकज भारतीय शहर बरेली शरीफ़ है अतः एक प्रतिनिधिमंडल मरकजे अहल-ए-सुन्नत दरगाह आला हज़रत बरेली शरीफ जाकर इस संबंध में एक फतवा प्राप्त करे और वहाबियों से मेल जोल रखने पर वहां से जो संदेश व दिशा निर्देश मिलें उन्हे सब सर्वसम्मति से मानें।
इसी संबंध में राष्ट्रीय उलमा कौंसिल नेपाल के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हज़रत मौलाना मुश्ताक अहमद बरकाती साहब, हज़रत सय्यद एहतेशाम साहब, हज़रत मौलाना जहीर साहब, मौलाना मुबारक साहब, कारी अली आसिफ साहब, जनाब अबदुलहक, असगर अली,महमुद कुरैशी,तहसीन साहब पर आधारित एक प्रतिनिधिमण्डल ने मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी और मौलाना शहाबुद्दीन रजवी से संपर्क स्थापित किया,एक प्रश्न-पत्र उन्होने मरकज़ के दारुल इफ्ता को दिया जिस के माध्यम से उनहोने पुछा कि
1.किया वहाबी विचार धारा रखने वालों से मेल जोल रखा जा सकता है?
2..वहाबी फिरके के लोगों को सुन्नी अपने घर शादी ब्याह आदि कार्यक्रमों में आमंत्रित कर सकते हैं?
3..कारोबारी संबंधो के कारण उनको अपने धार्मिक और शादी-विवाह इत्यादि के समारोह में सम्मिलित कर सकते है?
4.वहाबी की नमाज़े जनाज़ा सुन्नी पढ सकते हैं?
5..सुन्नी मस्जिद में वहाबी को आने और सुननियों के साथ नमाज़ पढने दी जा सकती है?
इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए मरकजी दारुल इफ्ता और मंजर-ए- इस्लाम दारूल इफ्ता के मुफ़्ती अफजाल रजवी, मुफ्ती अफरोज़ आलम नूरी व दीगर मुफतियाने किराम ने कहा कि वहाबी विचार धारा इस्लाम की शुद्ध और हक़ सुन्नी विचार धारा के विपरीत, अल्लाह और रसुल की शान में गुस्ताखी करने वाली, इस्लाम धर्म की कुछ अनिवार्य बातों का कि जिन्हें “ज़रुरियाते दीन ” कहा जाता है उन्हे नकारने और उनका इन्कार करने वाली एक खुंखार और इस्लाम विरुद्ध कट्टर विचार धारा होने के कारण इस के मानने वाले यह वहाबी “मुरतद” हो चुके हैं। इस लिये कुरआन और हदीस में “मुरतद ” के संबंध में जो हमें दिशा निर्देश मिले हैं उनकी रुह से कोई भी नेपाली सुन्नी मुसलमान इन मुरतद वहाबियों से मेल जोल ना रखे,इनको अपने यहां शादी-विवाह में सम्मिलित ना करे,इनको अपनी सुन्नी मस्जिद में अपनी नमाज की जमाअत की सफ में ना सम्मिलित करे,इनके यहा ना शादी-विवाह के कार्यक्रम में सम्मिलित हो ना किसी और कार्यक्रम में,ना किसी वहाबी की नमाजे जनाज़ा में सुन्नी सम्मिलित हो और ना कोई सुन्नी मुसलमान इन वहाबियों के लिये दुआए मगफिरत करे। इसके अतिरिक्त मरकजे अहल-ए-सुन्नत दरगाहे आलाहज़रत बरेली शरीफ उत्तर प्रदेश भारत ने नेपाल देश के अपने अनुयाई सुन्नी,सुफी, खानकाही बरेलवी मुसलमानो को वहाबियत, वहाबियों और वहाबी विचार धारा से दूर रहने का कड़ा संदेश दिया और इस संबंध में काफी सख्त दिशानिर्देश निर्गत किये।
इस तरह नेपाल से आये इस प्रतिनिधिमण्डल ने वहाबी विचार धारा के कारण उत्पन्न हुए इस आपसी
विवाद के निपटारे के बाद नेपाल मे सुन्नी सुफी विचार धारा और मरकज अहल-ए-सुन्नत बरेली शरीफ की शिक्षा के नेपाल देश के कोने कोने तक प्रसार के लिये मंथन किया। मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी और मौलाना शहाबुद्दीन रजवी नेपाली उलेमा को दरगाह का तबर्रूक देकर रवाना किया।