25 सितंबर जयन्ती पर विशेष-“इसरो के सूत्रधार महान वैज्ञानिक सतीश धवन

अक्सर आपने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की उपलब्धियों के साथ सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र का नाम अवश्य सुना होगा। इसरो जब भी कोई प्रक्षेपण या रॉकेट लॉन्च करता है, तो उसमें SDSC का नाम शामिल होता है। 7 जुलाई, 2019 को चंद्रयान 2 का भी SDSC से सफल प्रक्षेपण किया गया था, उस समय भारत ही नहीं, अपितु दुनिया की आँखें इसी केन्द्र पर टिकी हुई थीं। चंद्रयान 2 का विक्रम लैंडर, जब चंद्र की सतह पर उतरने वाला था, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसी केन्द्र में उपस्थित थे। SDSC से इसरो ने कई उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। यही वह केन्द्र है, जिससे इसरो ने सर्वप्रथम रॉकेट लॉन्च किया था। इसी अंतरिक्ष केन्द्र से इसरो ने एक एकल मिशन में रिकार्ड बनाते हुए 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और इसी के साथ इसरो विश्व की छठी बृहत्‍तम अंतरिक्ष एजेंसी बना। इसरो के सूत्रधार यानी उसके प्रक्षेपण केंद्र के नाम के पीछे छिपे असली नाम सतीश धवन से कैसे इसरो का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र बन गया?

सतीश धवन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के लोकप्रिय प्राध्यापक थे। उन्होंने संस्थान में अपने देश के अलावा विदेशों से भी युवा प्रतिभाशाली फैकल्टी सदस्यों को शामिल किया। उन्होंने कई नए विभाग भी शुरू किए और छात्रों को विविध क्षेत्रों में शोध के लिए प्रेरित किया। उन्हें इस संस्थान में पहला सुपरसोनिक विंड टनल स्थापित करने का श्रेय है। उन्होंने सिर्फ 42 वर्ष की आयु में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) का जिम्‍मा संभाला था। इसके बाद चार वर्षों तक उन्‍होंने इस विभाग को बतौर प्रमुख अपनी सेवाएं दीं। सात वर्ष के अंतराल में यानी सिर्फ 42 वर्ष की आयु में वह इस इंस्‍टीट्यूट के निदेशक बन गए। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई पर पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले महान वैज्ञानिक प्रो. सतीश धवन का आज जन्म दिवस है।

सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर, 1920 को श्रीनगर में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारत के उच्च श्रेणी के सिविल सेवक (IAS) थे यह बात सौ प्रतिशत सत्य है कि भारतीय स्पेस प्रोग्राम के जन्म का श्रेय विक्रम साराभाई को जाता है, जिन्होंने यह सपना देखा और इसकी नींव रखी, परंतु इस सपने को सींचने का असली काम किया वैज्ञानिक सतीश धवन ने, जिन्होंने अपने 20 वर्ष इसरो को देकर इसे विश्व-स्तर पर ला खड़ा किया। सतीश धवन ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई पंजाब से की। उन्होंने लाहौर (अब पाकिस्तान में) में पंजाब विश्वविद्यालय से भौतिकी, गणित में विज्ञान स्नातक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। इसके बाद सतीश धवन ने अंग्रेजी साहित्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली। 1947 में जब भारत स्वतंत्रता का उत्सव मना रहा था। देश ब्रिटिश शासन से मुक्त हो चुका था। हर तरफ खुशियों की लहर थी, उस समय सतीश धवन अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ साइंस की पढ़ाई कर रहे थे। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने के बाद सतीश कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने चले गए। इसके बाद सतीश धवन ने गणित और एयरोस्पेस में डबल पीएचडी की।

1962 में उन्हें भारतीय विज्ञान संस्थान का निदेशक बनाया गया। संस्थान निदेशक के रूप में उन्होंने दो महत्वपूर्ण तथ्य सबके सामने रखे, पहला यह कि स्वदेशी विकास के साथ कम लागत, उपलब्ध सामग्री, कौशल और मापयंत्रण (Instrumentation) को अनुकूलन पर बनाया जाए, और दूसरा यह कि अपनी प्रयोगशालाओं में मूल अनुसंधान क्षेत्रों में देश के विमान उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं को दूर किया जाए। भारतीय विज्ञान संस्थान में उन्होंने 20 वर्ष कार्य किया, इस दौरान वह संस्थान के सबसे प्रिय प्रोफेसर बन गए और फिर आया वह दिन, जो इसरो और सतीश धवन दोनों के लिए स्वर्ण दिवस साबित हुआ। सतीश धवन को 1972 में इसरो का अध्यक्ष बनाया गया। सतीश धवन ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई का स्थान ग्रहण किया। यह फैसला 30 दिसंबर, 1971 को विक्रम साराभाई की अचानक हुई मृत्यु के बाद लिया गया। सतीश धवन अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के सचिव भी रहे।

सतीश धवन एक अच्छे वैज्ञानिक ही नहीं, अपितु एक सज्जन पुरुष भी थे। इस बात का प्रमाण एपीजे अब्दुल कलाम के एक साक्षात्कार में कही गई बात से पता चलता है। कलाम ने कहा था कि 1979 में जब वह एक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के निदेशक थे और मिशन उपग्रह को कक्षा में लॉन्च करने में विफल हो गए, उस समय सतीश धवन ने असफलता की सारी जिम्मेदारी स्वयं लेते हुए प्रेस से कहा कि “हम असफल रहे! परंतु मुझे अपनी टीम पर पूरा भरोसा है कि अगली बार हम निश्चित रूप से सफल होंगे।” इससे अब्दुल कलाम आश्चर्यचकित हुए, क्योंकि विफलता का सारा दोष इसरो के अध्यक्ष सतीश धवन ने स्वयं ले लिया था, इतना ही नहीं उनकी उदारता तब उजागर हुई, जब 1980 में मिशन उपग्रह सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ और सफलता के इस क्षण में, सतीश धवन ने अब्दुल कलाम को अपनी उपस्थिति के बिना प्रेस बैठक में भाग लेने के लिए कहा। अर्थात् जब टीम विफल रही, तो उन्होंने दोष स्वयं लिया, परंतु जब टीम सफल हुई, तो उन्होंने सफलता का सारा श्रेय अपनी टीम को दिया।

20 वर्ष यानी 1984 तक सतीश धवन ने इसरो की सेवा की। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई उतार चढ़ाव देखे, परंतु अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। उन्होंने वियुक्त परिसीमा स्तर प्रवाह, तीन-आयामी परिसीमा परत और ट्राइसोनिक प्रवाहों की पुनर्परतबंदी पर अनुसंधान का भी बीड़ा उठाया। सतीश धवन ने ग्रामीण शिक्षा, सुदूर संवेदन और उपग्रह संचार पर अग्रगामी प्रयोग किए। उनके प्रयासों से इन्सैट-एक दूरसंचार उपग्रह, आईआरएस-भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह और ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) जैसी प्रचालनात्मक प्रणालियों का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसने भारत को अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले राष्ट्रों के संघ में खड़ा कर दिया। सतीश धवन के कई अहम प्रोजेक्‍ट्स में से एक है शॉक वेव्‍स का अध्‍ययन करना और यह सुपरसोनिक उड़ान (ध्वनि से तेज गति) के लिए काफी अहम बिंदु होता है। सतीश धवन को ‘फादर ऑफ एक्‍सपेरीमेंटल फ्लूइड डायनैमिक्‍स’ कहा जाता है। इसके तहत वातावरण में मौजूद गैसों के प्रवाह के बारे में पता लगाया जाता है। सतीश धवन ने संस्था के अध्यक्ष के रूप में अपूर्व योगदान दिया। अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख रहने के दौरान ही उन्होंने बाउंड्री लेयर रिसर्च(परिसीमा परत अनुसंधान) की दिशा में अहम योगदान दिया, जिसका जिक्र दर्पन स्लिचटिंग की पुस्तक ‘बाउंड्री लेयर थ्योरी’ में किया गया है। इसरो का प्रक्षेपण केंद्र, जो आंध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा में स्थित है, जिसे ‘श्रीहरीकोटा रेंज’ या ‘श्रीहरीकोटा लाँचिंग रेंज’ के नाम से भी जाना जाता है। 5 सितंबर, 2002 को सतीश धवन के मरणोपरांत उनके सम्मान में श्रीहरीकोटा रेंज का नाम बदलकर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया। इसके अलावा लुधियाना में सतीश चंद्र धवन गवर्नमेंट कॉलेज फॉर बॉयज़ का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ में मैकेनिकल इंजीनियरिंग बिल्डिंग विभाग का नाम भी उनके नाम पर सतीश धवन ब्लॉक आईआईटी रोपड़ रखा गया है।

3 जनवरी 2002 को 81 वर्ष की आयु में सदैव अंतरिक्ष की खोज़ में लीन रहने वाले सतीश धवन अंतरिक्ष के पंच महाभूतों में विलीन हो गए। सतीश धवन को इंडियन स्‍पेस प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बाद ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को सही मायनों में दिशा दी।


सुरेश बाबू मिश्र सेवानिवृत प्रधानाचार्य बरेली ।

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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