1 अक्तूबर जयन्ती पर विशेष-“भारतीय संस्कृति की अनन्य उपासक एनी बेसेंट

जिन विदेशी महिलाओं ने भारत के धार्मिक और सामाजिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमें एनी बेसेंट का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। एक विदेशी महिला होने भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म से गहरा प्रेम था ।

डा. एनी वुड बेसेंट का जन्म एक अक्तूबर, 1847 को लंदन में हुआ था। इनके पिता अंग्रेज तथा माता आयरिश थीं। जब ये पांच वर्ष की थीं, तब इनके पिता का देहांत हो गया। अतः इनकी मां ने इन्हें मिस मेरियट के संरक्षण में हैरो भेज दिया। उनके साथ वे जर्मनी और फ्रांस गयीं और वहां की भाषाएं सीखीं। 17 वर्ष की अवस्था में वे फिर से मां के पास आ गयीं।
1867 में इनका विवाह एक पादरी रेवरेण्ड फ्रेंक से हुआ। वह संकुचित विचारों का था। अतः दो संतानों के बाद ही तलाक हो गया। ब्रिटिश कानून के अनुसार दोनों बच्चे पिता पर ही रहे। इससे इनके दिल को ठेस लगी। उन्होंने मां से बच्चों को अलग करने वाले कानून की निन्दा करते हुए अपना शेष जीवन निर्धन और अनाथों की सेवा में लगाने का निश्चय किया। इस घटना से इनका विश्वास ईश्वर, बाइबिल और ईसाई मजहब से भी उठ गया।
श्रीमती एनी बेसेंट इसके बाद लेखन और प्रकाशन से जुड़ गयीं। उन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले मजदूरों की समस्याओं को सुलझाने के लिए अथक प्रयत्न किये। आंदोलन करने वाले मजदूरों के उत्पीड़न को देखकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के इन काले कानूनों का विरोध किया। वे कई वर्ष तक इंग्लैंड के सबसे शक्तिशाली महिला मजदूर यूनियन की सचिव भी रहीं।

वे 1883 में समाजवादी और 1889 में ब्रह्मविद्यावादी (थियोसोफी) विचारों के सम्पर्क में आयीं। वे एक कुशल वक्ता थीं और सारे विश्व में इन विचारों को फैलाना चाहती थीं। वे पाश्चात्य विचारधारा की विरोधी और प्राचीन भारतीय व्यवस्था की समर्थक थीं। 1893 में उन्होंने वाराणसी को अपना केन्द्र बनाया। यहां उनकी सभी मानसिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान हुआ। अतः वे वाराणसी को ही अपना वास्तविक घर मानने लगीं।
1907 में वे ‘थियोसोफिकल सोसायटी’ की अध्यक्ष बनीं। उन्होंने धर्म, शिक्षा, राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में पुनर्जागरण के लिए 1916 में ‘होम रूल लीग’ की स्थापना की। उन्होंने वाराणसी में ‘सेंट्रल हिन्दू कॉलेज’ खोला तथा 1917 में इसे महामना मदनमोहन मालवीय जी को समर्पित कर दिया। वाराणसी में उन्होंने 1904 में ‘हिन्दू गर्ल्स स्कूल’ भी खोला। इसी प्रकार ‘इन्द्रप्रस्थ बालिका विद्यालय, दिल्ली’ तथा निर्धन एवं असहाय लोगों के लिए 1908 में ‘थियोसोफिकल ऑर्डर ऑफ सर्विस’ की स्थापना की।
उन्होंने धार्मिक एवं राष्ट्रीय शिक्षा के प्रसार, महिला जागरण, स्काउट एवं मजदूर आंदोलन आदि में सक्रिय भूमिका निभाई। सामाजिक बुराइयां मिटाने के लिए उन्होंने ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ संस्था बनाई। इसके सदस्यों को एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़ते थे। कांग्रेस और स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय होने के कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। 1917 के कोलकाता अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। यद्यपि फिर लोकमान्य तिलक और गांधी जी से उनके भारी मतभेद हो गये। इससे वे अकेली पड़ गयीं। वे गांधीवाद का उग्र विरोध करते हुए कहती थीं कि इससे भारत में अराजकता फैल जाएगी।
डा. एनी बेसेंट एक विदुषी महिला थीं। उन्होंने सैकड़ों पुस्तक और लेख लिखे। वे स्वयं को पूर्व जन्म का हिन्दू एवं भारतीय मानती थीं। 20 सितम्बर, 1933 को चेन्नई में उनका देहांत हुआ। उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियों को वाराणसी में सम्मान सहित गंगा में विसर्जित कर दिया गया।बे भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म की अनन्य उपासक थीं ।


सुरेश बाबू मिश्र सेवानिवृत प्रधानाचार्य बरेली ।

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: