मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में अतिरिक्त क्षमता हासिल करने में मदद की: श्री नरेंद्र सिंह तोमर

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में अतिरिक्त क्षमता हासिल करने में मदद की: श्री नरेंद्र सिंह तोमर

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के पांच वर्ष पूरे हुए

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में अधिशेष क्षमता प्राप्त करने में मदद की है। आज यहां मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) दिवस पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मृदा स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि मौसम की अनिश्चितताएं देश के सामने एक नई चुनौती पेश कर रही हैं। पिछले साल बेमौसम बरसात के कारण ही प्याज की कीमतों में उछाल आया था। कृषि वैज्ञानिक लगातार इस संबंध में समाधान खोजने में लगे हुए हैं। श्री तोमर ने कहा, “हमारी योजनाओं को केवल फाइलों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि किसानों को इसका लाभ मिलना चाहिए। मुझे दृढ़ विश्वास है कि हमारे किसान, कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से और मिट्टी के विश्लेषण से इस चुनौती को पार पा सकेंगे। पांच साल पहले इस योजना के शुरू होने के बाद से दो चरणों में 11 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) जारी किए गए हैं। सरकार आदर्श ग्राम की तर्ज पर मृदा परीक्षण प्रयोगशाला (एसटीएल) स्थापित करने के प्रयास कर रही है। अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।”

श्री तोमर ने बताया कि इस योजना के तहत दो साल के अंतराल में सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए जाते हैं। इन कार्डों में मृदा के स्वास्थ्य की स्थिति और महत्वपूर्ण फसलों के लिए मृदा परीक्षण आधारित पोषक तत्वों की सिफारिशें शामिल होती हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि उर्वरकों के कुशल उपयोग और कृषि आय में सुधार के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड की सिफारिशों को अपनाएं।

श्री तोमर ने कहा कि सरकार जल्द ही देश को तेल बीजों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तिलहन मिशन शुरू करेगी। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में दालों की कमी के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दालों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया और आज भारत ने दालों में भी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है।

इस अवसर पर बोलते हुए कृषि एवं किसान कल्याण सचिव श्री संजय अग्रवाल ने कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड आज सरकार की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है। उन्होंने कहा कि ये कार्ड किसानों की आय दोगुना करने में मदद करेगा।

पूरे दिन चली इस कार्यशाला की शुरुआत विशेष सचिव (कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग) द्वारा स्वागत भाषण से की गई। इसके बाद संयुक्त सचिव (आईएनएम) ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना और विभिन्न राज्यों में इसके कार्यान्वयन का अवलोकन प्रस्तुत किया (प्रस्तुति देखने के लिए यहां क्लिक करें)। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के मृदा विज्ञान प्रमुख ने एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के महत्व के बारे में बताया। विभिन्न राज्यों के किसान प्रतिनिधियों और कृषि अधिकारियों ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और मॉडल ग्राम कार्यक्रम पर अपने अनुभव साझा किए। एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर आईसीएआर के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और मेघालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रस्तुतियां दी गईं। इफको ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड कार्यक्रम के बारे में अपनी कंपनी की पहल को लेकर एक प्रस्तुति दी। इस कार्यक्रम को उर्वरक विभाग के सचिव ने भी संबोधित किया। इस कार्यशाला में विभिन्न राज्यों के लगभग 300 किसानों ने हिस्सा लिया।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिवस इस दिन मनाया जाता है क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 19 फरवरी के ही दिन 2015में राजस्थान के सूरतगढ़ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के चक्र-1 (2015-17) के दौरान 10.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड और चक्र-2 (2017-19) के दौरान 11.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को वितरित किए गए हैं। पांच साल पहले इसे शुरू करने के बाद से सरकार इस योजना पर 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुकी है।

इस योजना के तहत 2014-15 से लेकर अब तक 429 नई स्टैटिक सॉयल टेस्टिंग लैब्स (एसटीएल), 102 नई मोबाइल एसटीएल, 8752 मिनी एसटीएल और 1562 ग्राम स्तरीय एसटीएल मंजूर की जा चुकी हैं। इन स्वीकृत प्रयोगशालाओं में से 129 नई स्टैटिक सॉयल टेस्टिंग लैब्स (एसटीएल), 86 नई मोबाइल एसटीएल, 6498 मिनी एसटीएल और 179 ग्राम स्तरीय एसटीएल अब तक स्थापित की जा चुकी हैं।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उद्देश्य हर दो साल में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना है ताकि खाद डालने के तरीकों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने के लिए एक बुनियाद प्रदान की जा सके। पोषक तत्व प्रबंधन के आधार पर मिट्टी के परीक्षण को बढ़ावा देने के लिए ही मृदा परीक्षण को विकसित किया गया है। उर्वरकों का सही मात्रा में उपयोग करवाकर मृदा परीक्षण खेती की लागत को कम करता है। यह पैदावार में वृद्धि करके किसानों की अतिरिक्त आय सुनिश्चित करता है और टिकाऊ खेती को भी बढ़ावा देता है।

देश के सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने में राज्य सरकारों की सहायता करने के लिए ये योजना शुरू की गई है। ये कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी की पोषक स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और इसकी उर्वरता में सुधार के लिए पोषक तत्वों की उचित खुराक भी सुझाता है।

मिट्टी के रासायनिक, भौतिक और जैविक स्वास्थ्य की गिरावट को भारत में कृषि उत्पादकता में ठहराव के कारणों में से एक माना जाता है।

सरकार पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना को भी लागू कर रही है और उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए अनुकूलित और मज़बूत बनाए हुए उर्वरकों को बढ़ावा दे रही है। अब तक 21 उर्वरकों को एनबीएस योजना के तहत लाया जा चुका है। वर्तमान में सरकार द्वारा अधिसूचित 35 अनुकूलित और 25 मज़बूत बनाए हुए उर्वरक उपयोग में हैं।

2019-20 के दौरान ‘मॉडल ग्रामों का विकास’ नाम की पायलट परियोजना शुरू की गई जहां मिट्टी के नमूनों का संग्रह ग्रिड में करने के बजाय किसान की भागीदारी के साथ उसके खेत में किया जाता है।

इस पायलट परियोजना के अंतर्गतप्रत्येक ब्लॉक से एक गांव को गोद लिया जाता है ताकि मृदा परीक्षण किया जा सके और बड़ी संख्या में प्रदर्शनों का आयोजन किया जा सके, जिसमें प्रदर्शनों की अधिकतम सीमा 50 प्रति हैक्टेयर है।

राज्यों के द्वारा अब तक 6,954 गांवों की पहचान की जा चुकी है जहां 26.83 लाख नमूनों / मृदा स्वास्थ्य कार्डों के लक्ष्य के मुकाबले 21.00 लाख नमूने एकत्र किए जा चुके हैं, 14.75 लाख नमूनों का विश्लेषण किया जा चुका है और 13.59 लाख कार्ड किसानों में वितरित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, राज्यों द्वारा 2,46,979 प्रदर्शनों और 6,951 किसान मेलों को मंजूरी प्रदान की गई है।

अगले पांच वर्षों में, चार लाख गांवों को व्यक्तिगत रूप से खेती करने के लिए मिट्टी का नमूनाकरण करने और परीक्षण करने के लिए प्रस्तावित किया गया है। 2.5 लाख प्रदर्शनों का आयोजन, गांव के स्तर पर 250 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना, 200 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को युग्मित प्लाज्मा (आईसीपी) के साथ मजबूती प्रदान करना और 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में स्पेक्ट्रोफोटोमीटर और सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ावा देना शामिल किया गया है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैविक खादों की सिफारिशों सहित छह फसलों के लिए उर्वरक सिफारिशों की दो श्रेणी प्रदान करता है। किसान अपनी मांग के आधार पर अतिरिक्त फसलों के लिए सिफारिशें भी प्राप्त कर सकते हैं। वे एसएचसी पोर्टल के माध्यम से स्वयं के लिए कार्ड को प्रिंट भी कर सकते हैं। एचएससी पोर्टल के पास दोनों आवर्तनों का किसान डेटाबेस है और वह किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए 21 भाषाओं में उपलब्ध है।

2017 में राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद् (एनपीसी) के द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि एसएचसी योजना के माध्यम से टिकाऊ खेती को बढ़ावा दिया गया है और इसके द्वारा 8-10 फीसदी तक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी आई है। इसके अलावामृदा स्वास्थ्य कार्ड में उपलब्ध सिफारिशों के अनुसार, उर्वरक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करने के कारण फसलों की उपज में 5-6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभागों के मिले-जुले प्रयासों के माध्यम से किसानों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है, जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा तकनीकी रूप से और नेटवर्क का समर्थन मिल रहा है। किसान अपने नमूने को ट्रैक कर सकते हैं, अपने कार्ड का कॉमन सर्विस सेंटरों पर और किसान कॉर्नर www.soilhealth.gov.in पर प्रिंट ले सकते हैं और ‘स्वस्थ धारा तो खेत हरा’ के मंत्र को पूरा कर सकते हैं।

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