मस्जिद गूलर वाली में हुआ ख़त्म शरीफ़, मनाया गया जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान।
बरेली (अशोक गुप्ता )- माह-ए-रमज़ान के मुबारक महीने में शहर भर की मस्जिदों में तरावीह में क़ुरान सुनाया जा रहा है जिसके साथ ही मस्जिदों में अब ख़त्म शरीफ का सिलसिला भी शुरू हो गया है जिसमे पुराना शहर के बालजती कुआं के पास स्थित मस्जिद गूलर वाली में बरोज़ जुमा 6 रोज़े को क़ुरान मुक़म्मल होने पर मस्जिद कमेटी की जानिब से जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान मनाया गया जहां तरावीह में क़ुरान सुनाने वाले हाफ़िज़ जनाब शाहबाज़ नूरी साहब और मस्जिद के इमाम जनाब मोहसिन ख़ान साहब को फूलों के हार पहना कर व उनकी दस्तारबंदी करते हुए उनको मुबारकबाद दी गई और तोहफों व नज़रानों से नवाज़ा गया।
मस्जिद गूलर वाली में क़ुरान मुक़म्मल होने के बाद एक जलसे “जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान” का एहतमाम किया गया जिसमें शहर के कई उलेमा और मुक़र्रिर शामिल हुए और उन्होंने अपनी तक़रीर में रमज़ान की नेमतों और फज़ीलतों को बयान किया। इसके साथ ही जलसे में नात्ख़्वानी भी हुई जिसमें बरेली शहर के कई नात्ख़्वान शामिल हुए और उन्होने अपने-अपने ख़ूबसूरत कलाम पेश किए।
मस्जिद कमेटी के तमहीद यूसुफज़ई पठान और सय्यद हसन अली हाशमी से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि मस्जिद गूलर वाली रमज़ान में सबसे पहले क़ुरान मुक़म्मल करने के लिए शहर भर में मशहूर है। मस्जिद गूलर वाली में 6 रोज़े को ही क़ुरान मुक़म्मल हो जाता है। जल्दी क़ुरान मुकम्मल होने की वजह से काफी दूर-दूर से लोग यहां तरावीह पढ़ने आते हैं जिनमे ख़ासतौर पर ज़्यादातर व्यापारी लोग होते हैं। इस बार 2 साल के बाद रमज़ान में मस्जिद में तरावीह पढ़ने का शर्फ हासिल हुआ है वरना पिछले 2 साल से कोरोना और लॉकडाउन के चलते मस्जिदों में तरावीह नहीं हो पाईं थीं। जिसकी वजह से इस बार 2 साल के बाद तरावीह पढ़ने की एक अलग और बहुत खुशी हो रही है।
जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान जलसे के इख़्तिदाम में हाफ़िज़ जनाब शाहबाज़ नूरी साहब, इमाम जनाब मोहसिन ख़ान साहब और उलेमाओं ने मुल्क के अमन-चैन और मुल्क को हर छोटी और बड़ी बीमारी और आफत से बचाने की दुआ की गई। इस मौक़े पर ख़ासतौर पर हाफिज़ जनाब शाहबाज़ नूरी, मस्जिद इमाम जनाब मोहसिन ख़ान साहब, मुतावल्ली जनाब डॉ० एस०यू० चिश्ती साहब, खदांची जनाब अब्दुल मोईद साहब, मस्जिद कमेटी के तमहीद यूसुफज़ई पठान, सय्यद हसन अली हाशमी, मो० असलम, आरिश अंसारी, अयान अंसारी, सुब्हान अंसारी, हयात ख़ान, फैज़ी ख़ान आदि मौजूद रहे और व्यवस्था को बनाए रखा।