सात दिवसीय श्रीमद्भागवत का निगोहा के दयालपुर गांव में हुआ आयोजन

 इस अवसर पर बालगोपाल के जन्म की झांकी प्रस्तुत हुई जिसमें बाबा वासुदेव टोकरी में बालगोपाल को लेकर आए। कथा के बीच-बीच में गायक ने मधुर भजन सुनाते हुए श्रद्धालुओं को झूमने पर विवश किया। कृष्ण जन्म पर गद्दीसेवको ने फूलों की वर्षा करते हुए शिशु कृष्ण-वासुदेव झांकी की आरती उतारी।पूज्य पंडित गोपाल जी शास्त्री जी महाराज ने श्रीकृष्ण जन्म के प्रसंग का बड़ा सुंदर चित्रण किया।आनंद का आलम यह था कि इस अवसर पर स्वयं को झूमने से कोई नहीं रोक पाया, सभी के पैर अपना नियंत्रण खो बैठे और स्वमेव थिरकते रहे। महिलाओं ने मंगल गीत गाए और पुरुषों ने जयघोष से आस्था व्यक्त की। कृष्ण जन्मोत्सव के दौरान श्रद्धालुओं ने माखन मिश्री का भोग लगाकर जमकर उत्सव मनाया।
वहीं दूसरी ओर नंदोत्सव की झांकी भी प्रस्तुत की गई जिसमें गोपियां नंद बाबा और यशोदा मैया को बधाई गीतों के माध्यम से बधाई देती नजर आई।भगवान के जन्म की झांकियों का इस प्रकार से मंचन किया गया कि कथा पांडाल में बैठे श्रद्धालु-श्रोता इस दृष्य को देखकर अपना जीवन धन्य समझने लगे। श्री कृष्ण जन्म के अवसर पर
नन्दोत्सव प्रसंग से कथा का रसपान कराते हुए पूज्य पंडित गोपाल जी शास्त्री जी महाराज ने कथा के संग भजनों की वर्षा कर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर नंद गांव में गोपियां नंद बाबा और यशोदा मैया को बधाई गीतों के माध्यम से बधाई देते हुए
हर प्रकार के खिलौने एवं दही हल्दी वर्षा कर श्रीकृष्ण जन्म को उल्लासपूर्ण वातावरण में मनाया। महिलाएं- पुरुष श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर नाचते थिरकते खुशियां मना रहें थे जिससे सत्संग हॉल पूरी तरह कृष्णमय लग रहा था। सैकड़ों धर्म प्रेमी श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए पूज्य विमल बल्लभ जी महाराज ने कहा कि यह रस स्वर्ग लोक, सत्यलोक, कैलाश और बैकुन्ठ में भी नही है। इसलिये हे भाग्यवान श्रोताओं तुम इसका खूब रसपान करो इसे कभी मत छोड़ो। प्रसंगानुसार जीवंत झांकी भी निकाली गयी। श्रद्धालुओं ने गीत-नृत्य का घंटों आनंद उठाया। इस बीच कथावाचक श्री शास्त्री जी महाराज ने भगवान की माखन चोरी लीला और पूतना वध जैसे रोचक प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला। महाराज जी ने कहा कि भगवान की लीला जीवनोपयोगी है, इसे आत्मसात कर हम अपना यही लोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं। भगवान कृष्ण की लीला के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान को जो भाव से थोड़ा देता है उसे भगवान संपूर्ण सुख प्रदान कर देते हैं।महाराज जी ने गिरिराज पूजनोत्सव के सरस वर्णन से कथा का विस्तार किया। सरस प्रसंगो, आख्यानों, एवं संगीतमय भजनों पर श्रोता जमकर झूमे एवं भावविभार होकर जय ध्वनि एवं करतल ध्वनि करते रहे। मोहक झाॅकियों के माध्यम से प्रभु की सरस ललित ब्रज लीलाओं का प्रस्तुतीकरण किया गया। जिसे देखककर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।
श्री पंडित गोपाल जी शास्त्री  महाराज ने बताया कि
गोवर्धनका अर्थ है गौसंवर्धन।
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगर हम बिना कर्म करे फल की प्राप्ति चाहेंगे तो वह कभी नहीं मिलेगा, कर्म तो हमें करना ही होगा।
घमंड तोड़ इंद्र का, प्रकृति का महत्व समझाया।
ऊँगली पर उठाकर पहाड़, वो ही रक्षक कहलाया।।
ऐसे बाल गोपाल लीलाधर को बारम्बार प्रणाम..!!
कथावाचक ने गोवर्धन पर्वत की कथा सुनाते हुए कहा कि इंद्र के कुपित होने पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठा लिया था। इसमें ब्रजवासियों ने भी अपना-अपना सहयोग दिया। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए राक्षसों का अंत किया तथा ब्रजवासियों को पुरानी चली रही सामाजिक कुरीतियों को मिटाने एवं निष्काम कर्म के जरिए अपना जीवन सफल बनाने का उपदेश दिया। इसके जरिये जलवायु एवम प्राकृतिक संसाधन का धन्यवाद दिया जाता हैं। इस पूजा के कारण मानवजाति में इन प्राकृतिक साधनों के प्रति भावना का विकास होता हैं। यह पूजन यह सन्देश देता हैं कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज़ पर निर्भर करता हैं जैसे पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, नदी और पर्वत आदि इसलिए हमें उन सभी का धन्यवाद देना चाहिये। भारत देश में जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालायें एवम नदियाँ हैं। इस प्रकार यह पूजन इन सभी प्राकृतिक धन सम्पति के प्रति हमारी भावना को व्यक्त करता हैं। इस मौके पर मंदिर में गिरिराज पर्वत की झांकी सजाई गई एवं अन्नकूट एवं छप्पन भोग लगा कर श्रद्घालुओं को प्रसादी वितरित की गई।
लखनऊ से राघवेंद्र सिंह की रिपोर्ट !

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