SC : बेअंत हत्याकांड के दोषी की दया याचिका पर फैसला लें वरना हम विचार करेंगे-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि अगर वे बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर विचार नहीं करते हैं तो हम करेंगे।

बेअंत सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री थे, साल 1995 में उनकी हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में बलवत सिंह राजोआना को दोषी ठहराया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बलवंत सिंह राजोआना की याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।

याचिका में कहा गया है कि उसकी दया याचिका पर फैसला लेने में हुई बहुत देरी के कारण उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल देना चाहिए। 25 सितंबर को शीर्ष अदालत ने राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था।

राष्ट्रपति के पास लंबित है याचिका केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राजोआना की दया याचिका राष्ट्रपति भवन में लंबित है, जिसके बाद पीठ ने उनसे कहा, ‘किसी भी तरह से फैसला करें या हम इस पर (राजोआना की याचिका) विचार करेंगे।’
दया याचिका पर फैसला होने तक राजोआना की रिहाई की मांग करते हुए राजोआना के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि रजोआना 29 साल से लगातार हिरासत में है।
रोहतगी ने कहा कि ‘उनकी दया याचिका पिछले 12 साल से राष्ट्रपति भवन में लंबित है। कृपया उन्हें छह या तीन महीने के लिए रिहा कर दें। कम से कम उन्हें यह देखने दें कि बाहरी दुनिया कैसी दिखती है।’ वहीं पंजाब सरकार ने पीठ को बताया कि उन्हें मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कुछ समय चाहिए।
1995 में हुई थी पंजाब के तत्कालीन सीएम की हत्या 31 अगस्त, 1995 को चंडीगढ़ में सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य लोग मारे गए थे। इस मामले में जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने बलवंत सिंह राजोआना को दोषी ठहराते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी।
मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने उसकी ओर से संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका दायर की थी। पिछले साल 3 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने राजोआना की मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सक्षम प्राधिकारी ही दया याचिका पर विचार कर सकते हैं।
बिहार में पुल ढहने की घटनाओं से संबंधित जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है सुप्रीम कोर्ट

बिहार में हाल के समय में कई पुल ढहने की घटनाएं हुई हैं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें बिहार के पुलों की सुरक्षा के बारे में चिंता जाहिर की गई है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार कर रहा है। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस साल 29 जुलाई को जनहित याचिका (पीआईएल) पर बिहार सरकार और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) सहित अन्य से जवाब मांगा था।

सोमवार को याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता ब्रजेश सिंह ने सुनवाई के लिए याचिका का उल्लेख किया। इस पर सीजेआई ने कहा कि ‘मैं इस पर विचार करूंगा’। जनहित याचिका में पुलों के संरचनात्मक ऑडिट के लिए एक विशेषज्ञ पैनल गठित करने की मांग की गई थी। इस विशेषज्ञ समिति के निष्कर्षों के आधार पर पुलों को मजबूत करने या उन्हें ध्वस्त करने की मांग भी की गई है।
राज्य और एनएचएआई के अलावा शीर्ष अदालत ने सड़क निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और ग्रामीण कार्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किया था। इस साल मई, जून और जुलाई के दौरान बिहार के सीवान, सारण, मधुबनी, अररिया, पूर्वी चंपारण और किशनगंज जिलों में पुल ढहने की दस घटनाएं सामने आई हैं। कई लोगों ने दावा किया कि भारी बारिश के कारण ये घटनाएं हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए मामले में आरोपी केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें कप्पन ने अपने खिलाफ दर्ज यूएपीए मामले में हर हफ्ते पुलिस को रिपोर्ट करने की जमानत की शर्त में ढील देने की मांग की थी। जस्टिस पीएस नरसिम्हन और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सितंबर 2022 में जमानत देते हुए कप्पन पर शीर्ष अदालत द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त में ढील देने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, ‘9 सितंबर, 2022 के आदेश को संशोधित किया जाता है और याचिकाकर्ता के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना आवश्यक नहीं होगा। वर्तमान आवेदन में की गई अन्य प्रार्थनाओं पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जा सकता है।’
14 सितंबर, 2020 को उत्तर प्रदेश के हाथरस के एक गांव में चार लोगों द्वारा कथित दुष्कर्म के एक पखवाड़े बाद पीड़ित महिला की दिल्ली के एक अस्पताल में मौत हो गई थी। उसका अंतिम संस्कार उसके गांव में आधी रात को किया गया था। पीड़िता के परिवार ने दावा किया था कि उनकी सहमति के बिना अंतिम संस्कार किया गया था और उन्हें शव को आखिरी बार घर लाने की अनुमति नहीं दी गई थी। कप्पन को अक्तूबर 2020 में इस मामले की रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था। कप्पन सहित चार लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
आरोप है कि कप्पन का कथित तौर पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंध था। पीएफआई पर पहले भी देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया गया था। पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी हाथरस में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे।
9 सितंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने लगभग दो साल से जेल में बंद कप्पन को जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए कई शर्तें रखी थीं, जिसमें यह भी शामिल था कि उसे जेल से रिहा होने के बाद अगले छह सप्ताह तक दिल्ली में रहना होगा और हर हफ्ते सोमवार को दिल्ली के निजामुद्दीन पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा। अदालत ने कहा था कि छह महीने के बाद वह केरल में अपने पैतृक स्थान मलप्पुरम जा सकता है और वहां भी उसे उसी तरह स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा।
ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

 

 

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