SC : बुलडोजर ऐक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई यूपी सरकार को फटकार, घर दोबारा बनाएं, खर्च सरकार दे.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस बात को लेकर आलोचना की है कि उसने प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घरों को बुलडोजर से गिरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्शन को चौंकाने वाला और गलत संदेश देने वाला करार दिया।

अदालत ने कहा, अब हम राज्य सरकार को पुनर्निर्माण का आदेश देंगे और इसका खर्च भी सरकार ही उठाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर न्याय पर हाल के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें डेमोलिशन से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया स्पष्ट की गई है।

‘आर्टिकल-21 का उल्लंघन’

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस ओका की अगुआई वाली बेंच ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान साफ शब्दों में कहा कि सरकार की यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं में वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो महिलाएं और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की थी याचिका

इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था, विवादित जमीन एक नजूल प्लॉट (सरकारी पट्टे की भूमि) थी, जिसका पट्टा 1996 में समाप्त हो गया था। फ्रीहोल्ड आवेदन 2015 और 2019 में अस्वीकार कर दिए गए थे। राज्य सरकार ने इसे सार्वजनिक उपयोग के लिए चिह्नित किया था। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं था क्योंकि उनकी लेनदेन को जिला कलेक्टर की मंजूरी नहीं मिली थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कार्रवाई पर गंभीर आपत्ति जताई और इस मामले को 21 मार्च 2025 को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

‘देर रात नोटिस दिया, अगले दिन घर गिरा दिए’

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने शनिवार देर रात डेमोलिशन नोटिस जारी किया और अगले दिन उनके घर गिरा दिए, जिससे उन्हें कानूनी चुनौती देने का कोई अवसर नहीं मिला। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा, राज्य सरकार ने गलत तरीके से उनकी संपत्ति को गैंगस्टर राजनेता अतीक अहमद से जोड़ दिया। अतीक की 2023 में हत्या कर दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वह कोई अतिक्रमणकारी नहीं थे, बल्कि वैध पट्टेदार थे और उन्होंने अपनी पट्टे की जमीन को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए आवेदन किया था।

यूपी सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सरकार की कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। लेकिन जस्टिस ओका ने सरकार के इस दावे को खारिज कर दिया और सवाल उठाया कि नोटिस किस तरह दिया गया और क्यों याचिकाकर्ताओं को उचित अपील का मौका नहीं दिया गया। अटॉर्नी जनरल ने मामला हाई कोर्ट वापस भेजने का सुझाव दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा, इससे केवल अनावश्यक देरी होगी।
ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

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