अपने घरों में छत पर कृत्रिम घोंसलो और दाना पानी रखकर गौरेया को विलुप्त होने से बचाए

बरेली (अशोक गुप्ता )- विश्व गौरेया दिवस के अवसर पर स्वयंसेवक मोहित शर्मा ने बताया कि कुछ साल पहले तक शहरों और गांवों में गौरैया पक्षी की चहचहाहट अकसर सुनाई दे जाया करती थी और यह घर, आंगन, बगीचे या छत पर अक्सर देखने को भी मिल जाया करती थी। परंतु आज यह पक्षी ढूंढने से भी नहीं मिलता और आंकड़ों की मानें तो गोरैया नामक चिड़िया की प्रजाति में 60 फ़ीसदी से ज्यादा की कमी आई है।


ऐसे में हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मना कर हम उस चहचहाहट को वापस लाने की कोशिशें कर रहे हैं। मोहित शर्मा ने बताया कि इसके लिए हम सब भी कृत्रिम घोंसलों एवं छत पर दाना-पानी रखकर गायब होती गौरैया चिड़िया को वापस छत पर वापस लाने का प्रयास कर सकते है ।मोहित शर्मा ने इस दिवस को मनाए जाने के मुख्य उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहा कि गौरैया पक्षी का संरक्षण करना और इन्हें लुप्त होने से बचाना ही इस दिवस का मुख्य उद्देश्य है, ताकि भविष्य में यह एक इतिहास का पक्षी बनकर ना रह जाए।


मोहित शर्मा ने कहा कि धरती से किसी भी पक्षी या जीव-जंतु का लुप्त होना भोजन श्रृंखला पर भी बड़ा असर डालता है, ऐसे में किसी एक पक्षी या जीव के लुप्त होने से मानव जीवन के साथ ही पृथ्वी पर भी गहरा संकट मंडरा सकता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।आज से लगभग एक-दो दशक पहले गौरैया चिड़िया आपको सुबह सवेरे ची-ची, चूं-चूं करती दिखाई दे जाती थी, लेकिन आज लोग इसकी आवाज तक सुनने को तरस गए हैं भारत समेत विश्वभर में इन चिड़ियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।
घरेलू गौरैया की लुप्त होती प्रजाति एवं कम होती आबादी चिंता का विषय बना हुआ है, ऐसे में ‘विश्व गौरैया दिवस’ गौरैया एवं अन्य पक्षियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए की गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहल है। बात करे इस साल की थीम जो ‘I Love Sparrows’ है, जिसके तहत गौरैया संरक्षण का संदेश विश्व भर में दिया जा रहा हैं।
इतना ही नहीं देश के अलग-अलग हिस्सों में इनके संरक्षण के प्रति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

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