खानकाह नियाजिया के सज्जादा नशीन हजरत शाह मोहम्मद हसनैन उर्फ हसनी मियां दुनिया ए फानी से पर्दा कर गए
अलविदा मेरे सरकार, अश्कबार आंखों से हजारों मुरीदों ने किया हसनी मियां का आखिरी दीदार
हसनी मियां के जनाजे को कंधा देने के लिए उमड़ी भीड़।
खानकाह से लेकर गलियां तक हुईं खचाखच, हर कोई कंधा देने को बेताब
बरेली। शाम का वक्त था.. लगभग छह बज रहे थे। खानकाह नियाजिया का सहन मुरीदों और अकीदतमंदों की भीड़ से भरा हुआ था। खानकाह की हर छत पर औरतों को हुजूम था। हर कोई हसनी मियां का आखिरी दीदार करने को बेचैन था। इसी बीच मगरिब की अजान हुई। लोगों ने नायब सज्जादा मेहंदी मियां के पीछे नमाज अदा की। हवेली भी औरतों की भीड़ से खचाखच थी।
कुछ ही देर बाद सरकार हसनी मियां का जनाजा हवेली से उठाया गया तो सभी विलख उठे। कलमात के बीच या हुसैन की सदाएं बुलंद होेने लगीं। खानदान के लोग और तमाम मुरीद कंधा देकर जनाजा खानकाह परिसर लाए। जनाजा जैसे ही परिसर में पहुंचा वहां मौजूद भीड़ आखिरी दीदार के लिए बेताब हो गई। जनाजे को समाखाने तक लाना मुश्किल हो गया। अकीदत का आलम यह था कि हर शख्स कंधा देने के लिए बेताब हो गया। जो लोग जनाजे तक नहीं पहुंच सके, उन्होंने किसी तरह पलंग को छूकर ही दिल को तसल्ली दे ली। किसी ने जनाजे पर पड़ी चादर को छू कर हाथ आंखों से लगाए। उस वक्त यहां पर रूहानियत और अकीदत का मंजर बरपा था।
समाखाने में कुछ देर दीदार के लिए जनाजा रखा गया। इसके बाद खानकाह के आंगन में नायब सज्जादा मेहंदी मियां ने नमाजे जनाजा अदा कराई। इसके बाद खानकाह में ही तमाम बुजुर्गों की मजार शरीफ के पास उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। उस वक्त हर शख्स की आंखें अश्कबार थीं, हाथ जुड़े हुए थे, लब थरथरा रहे थे। हर जुबान बस यही कह रही थी.. कहां चले गए मेरे सरकार.. अलविदा मेरे सरकार..।