फंगल वायरस से आखिर तक नामी मेदांता हॉस्पिटल में जूझते रहे थे पीयूष सिन्हा

कोरोना वायरस भले ही वर्ष 2019 में आया हो पर देश मे कई ऐसे भी वायरस थे जो लाइलाज ही थे — निर्भय सक्सेना– बरेली। कोविड 19 का कोरोना वायरस भले ही वर्ष 2019 में आया हो। पर अपने देश दुनिया मे भी कई ऐसे भी वायरस थे जो लाइलाज ही थे। श्रीमती मधुरिमा सक्सेना बताती है कि ऐसे ही एक फंगल वायरस Scedesphorium profolican से मेरा छोटा भाई पीयूष सिन्हा आखिर तक देश के नामी हॉस्पिटल मेदांता मेडिसिटी में विशेषग्य डाक्टरो के सहारे मौत से आंख मिचौली करत रहा। लगभग 3 साल तक देश के नामी हॉस्पिटल में महीनों तक जूझता ही रहा। पर दिल एवम वाल्व के 4 ऑपरेशन के बाद भी उसने मौत से हार नहीं मानी पर उस Scedesphorium profolican वायरस वाली उस मौत ने आखिर उसे अपने जबड़े में ले ही लिया। चिकित्सा क्षेत्र में भारत जहां आजकल मेडिकल हब बन रहा है वहीं कई ऐसे बायरस वाले रोग भी है जिनका भी विश्व में आज भी इलाज संभव नहीं है। इसी कड़ी में आजकल कोविड-19 कोरोना वायरस नाम का भी एक और वायरस जुड़ गया है।

जिसकी भारत में अब वैक्सीन तो तैयार हो गयी है पर इसके रोग के निदान के लिए विश्व में आज तक दवा नहीं बन पाई है। ऐसे ही एक फंगल वायरस Scedesphorium profolican से पीड़ित 50 वर्षीय पीयूष सिन्हा की हरियाणा के गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी में बीते 31 मई 2014 को महंगे इलाज के वाबजूद उपरोक्त फंगल वायरस की सटीक दवा नहीं मिलने के कारण मृत्यु हो गयी थी। मेदांता अस्पताल में इलाज कर रहे डा. अनिल भान व प्रसाद राव की मेडिकल टीम के अनुसार उपरोक्त फंगल वायरस Scedesphorium profolican से विश्व में वर्ष 2014 में यह उस समय की छटी मौत होना बताया था । इस फंगल वायरस Scedesphorium profolican का अभी तक मेडिकल जगत में तोड़ नहीं ढूंढा जा सका है और दुनिया मे इस फंगल वायरस के रोग से पीड़ित कुछ रोगी अभी भी लाइलाज रहकर मौत से लड़ रहे हैं ऐसा बताया जाता है।

दिल्ली के जनकपुरी के पास डाबरी एक्सटेंशन पूर्व निवासी स्वर्गीय शिव शंकर सिन्हा एवम स्वर्गीय सरोजनी सिन्हा के यहां 2 अगस्त 1962 को जन्मे उनके छोटे पुत्र 52 वर्षीय पीयूष सिन्हा ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में दिसंबर वर्ष 2009 में हृदय रोग से पीड़ित होने पर हृदय की धमनियां साफ कराई थी जहॉ उनके स्टंट भी डाला गया। अस्पताल के डाक्टर मोहंती की टीम ने पीयूष सिन्हा के न चाहते हुए भी अनावश्यक रूप से शरीर के बाहर खुला एक पेसमेकर भी लगाया था। कुछ समय बाद ही पीयूष सिन्हा को स्वास्थ्य समस्या आने पर वर्ष दिसंबर 2011 में उपरोक्त पेसमेकर बदलकर दूसरा अधिक क्षमता का पेसमेकर ऑपरेशन कर लगा दिया गया था। जिसके बाद भी उनकी समस्या का निदान नहीं हुआ। सर गंगाराम अस्पताल में पहले व दूसरे पेसमेकर लगवाने के वाबजूद भी शुगर रोगी पीयूष सिन्हा को कोई राहत नहीं मिल सकी। शुगर रोगी पीयूष सिन्हा को डाक्टर के भरोसे के बावजूद बीमारी का इलाज नहीं मिल पा रहा था। इसी बीमारी के चलते गुड़गांव में एक प्राईवेट कंपनी में कार्यरत अधिकारी पीयूष सिन्हा की नौकरी भी चली गयी और वह पूरे तरीके से बिस्तर पर आ गये। हर महीने गंगाराम अस्पताल में चेकअप के लिए जाने के वाबजूद भी डाक्टर उनका रोग नहीं पकड़ पा रहे थे। जो दूसरी बार ऑपरेशन से लगे पेसमेकर से आये फंगल वायरस के रूप में उन्हें लग चुका था। इसी के चलते सितम्बर 2012 में उन्हें तीसरी बार सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां डाक्टर गणेश शिवनानी व सुजाय शाद की मेडिकल टीम ने उनका बड़ा आपरेशन करके उनको सही होने का भरोसा दिलाया। 5 सितंबर 2012 को हुए इस आपरेशन के बाद जब पीयूष सिन्हा को वार्ड में शिफ्ट नहीं किया गया तो उनके परिजनों को चिंता हुई जहां डाक्टरों की टीम ने बताया कि उन्हें अभी कुछ दिन आई. एम. सी. यू. में ही और रखना पड़ेगा। साथ ही परिवारजनों को 28 दिन तक महंगे इंजेक्शन बाहर से लाकर भी देने होंगे। स्मरण रहे उस समय एक इंजेक्शन कि ही कीमत लगभग 15 हजार रूपये थी। 28 महंगे इंजेक्शन लगने के बाद भी श्री पीयूष सिन्हा को आई.एम.सी.यू. से ही वार्ड में शिफ्ट नहीं करके सीधे घर ले जाने की गंगाराम के डाक्टरों द्वारा सलाह दी गई थी और कहा गया कि आप अपने घर के कमरे को ही आई. एम.सी.यू का ही दर्जा देकर वहां मरीज का दवाओं के जरिये इलाज कराते रहे। स्मरण रहे सर गंगाराम अस्पताल के आई.एम.सी.यू में रहने वाले पीयूष सिन्हा ऐसे मरीज थे जो एक महीने से अधिक रहे और इसका भी एक रिकार्ड बना।

महंगे इलाज के वावजूद भी पीयूष सिन्हा की समस्या का हल नहीं हुआ और इस लाइलाज फंगल वायरस कुछ समय बाद उनके हृदय के वाल्ब तक पहुंच गया। सर गंगाराम अस्पताल के डाक्टरों के कहने पर उन्हें गुड़गांव स्थित डाॅ. त्रेहान के मेदांता मेडिसिटी में भर्ती कराया गया। जहां डा. अनिल भान की टीम ने उनके हृदय के वाल्ब कर नवंबर 2012 में आपरेशन किया। हृदय वाल्ब के आपरेशन के बाद मेदांता के डाक्टरों की सलाह पर फंगल वायरस के इलाज के लिए पीयूष सिन्हा को दिल्ली के ही बत्रा अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। जहां डा. अरूण दीवान की मेडिकल टीम ने उनका लगभग 20 से 25 दिन तक अस्पताल में इलाज भी किया। बाद में नियमित दवा लेने की हिदायत के साथ घर भेज दिया। निमित दवा लेने पर महंगे इलाज के वावजूद भी फंगल वायरस ने उनका पीछा नहीं छेड़ा। इसके बाद पीयूष सिन्हा को पुनः 14 अक्टूबर 2013 को बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद बत्रा अस्पताल के डाक्टरों की सलाह पर उन्हें मेदांता ले जाकर भर्ती कराया गया। जहां 28 अक्टूबर 2013 में हृदय के वाल्ब का पुनः मेदांता मेडिसिटी मे आपरेशन किया गया।

हृदय वाल्ब के मेदांता में दूसरे आपरेशन के बाद भी फंगल वायरस ने पीयूष सिन्हा का पीछा नहीं छोड़ा। 26 मार्च 2014 को तीसरी बार मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में पीयूष सिन्हा का तीसरी बार हृदय वाल्ब का पुनः आपरेशन किया गया। दो बार हृदय के आपरेशन व तीन बार हृदय वाल्ब के आपरेशन के वावजूद आर्थिक रूप से वर्बाद हो चुके पीयूष सिन्हा पीछा फंगल वायरस ने नहीं छोड़ा। शरीर से काफी कमजोर हो चुके पीयूष सिन्हा की इसी के चलते 31 मई 2014 को मेदांता मेडिसिटी गुड़गांव में ही मृत्यु हो गई। पत्नी श्रीमती अनीता सिन्हा एक मात्र पुत्री शिवांगी के पिता स्व. पीयूष सिन्हा का परिवार अब आर्थिक रूप से टूट गया था। मेडिकल इतिहास में भारत भले ही आजकल मेडिकल हब बन गया है पर कई वायरस का इलाज भारत क्या विश्व में भी संभव नहीं है। आजकल इसी कड़ी में भारत मे भी अब एक और कोविड-19 बायरस आ गया है जिसने भी पूरे विश्व को अपने चपेट में लिया जिससे एक वर्ष में ही भारत सहित दुनियां में लाखों लोगों की मौत हो चुकीं है जिसका 2021 में दूसरी लहर का प्रकोप और भी घातक हो गया है। अब कुछ हर्ष की बात यह है कि भारत ने 2021में कोविड-19 के लिए अपनी कई वैक्सीन तैयार तो कर ली जिसको लगाने का क्रम भी आजकल जारी है । साथ ही कोविड वेक्सीन को भारत 70 देशों को निर्यात भी कर रहा है। पर विश्व में अभी तक कोरोना वैक्सीन की दवा अभी तक नहीं बन सकी है जिसे भी पातंजलि बनाने का दावा कर रही है।
निर्भय सक्सेना, पत्रकार बरेली मोबाइल 9411005249

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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