22 मई जैव विविधता दिवस पर-मानव के अस्तित्व के लिए आवश्यक है जैव विविधता

22 मई का दिन पूरे विश्व में जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैव विविधता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्व समुदाय को सभी जीवधारियों एवं वनस्पतियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। जीवधारियों एवं वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियां तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। सभी प्रकार के जीवधारी एवं वनस्पति मानव के अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हमने समय रहते जैव सम्पदा को विनाश से नहीं बचाया तो एक दिन मानव का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।
जैव विविधता जितनी समृद्ध होगी हमारा वातावरण उतना ही सन्तुलित और सुव्यवस्थित होगा। जैव विविधता का तात्पर्य विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु और पेड़-पौधों का अस्तित्व एक साथ बनाए रखने से होता है। हमें ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ एवं आर्थिक गतिविधियों हेतु समुचित अवसर प्रदान कर सके।
पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और मानव अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर है। मानव अपने भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूरी तरह से जीवों एवं वनस्पतियों पर ही निर्भर है। भोजन के आधार पर मानव का वर्गीकरण तीन रूपों में किया गया है। यह है शाकाहारी मानव, मांसाहारी मानव और सर्वहारी मानव।
शाकाहारी मानव अपने भोजन के लिए पेड़-पौधों पर निर्भर है। पशुओं से उसे दूध, दही, घी, मक्खन, छाछ आदि मिलता है। अपने दैनिक उपयोग की वस्तुओं एवं कल-कारखानों के लिए उसे कच्चा माल वनस्पति, पेड़-पौधों एवं पशुओं से ही मिलता है। मांसाहारी मानव के भोजन का मुख्य स्रोत पशु-पक्षी एवं मछलियां हैं। समुद्र के किनारे रहने वाले करोड़ों लोगों का मुख्य भोजन मछलियां ही हैं। उनके लिए सागर, जलाशय, नदियां और तालाब भोजन के मुख्य स्रोत हैं। सर्वहारी मानव अपने भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पेड़-पौधों पशु-पक्षियों जीव-जन्तुआंे तथा मछलियों पर पूरी तरह निर्भर है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जैव विविधता मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संजीवनी का कार्य करती है।
वर्तमान समय में प्रगति एवं विकास की दौड़ तथा विश्व में अपने वर्चस्व के लिए परमाणु अस्त्रों की अन्तहीन होड़ में मानव प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है जिससे पर्यावरण का का नाजुक संतुलन बिगड़ रहा है। इसका सीधा प्रभाव जीव-जन्तुओं पर पड़ा है और हमारी धरती की जैव विविधता के अस्तित्व के सामने गम्भीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। जीव-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। इससे हमारी खाद्य शृंखला बुरी तरह प्रभावित हुई है।
पर्यावरण सन्तुलन के बिगड़ने का सबसे अधिक दुष्प्रभाव जलीय जीवों पर पड़ा है। जल में रहने वाले जीव डायनासोर, ह्वेल, मगरमच्छ, नाका, जल दरियायी घोड़ा, जलमुर्गावी, कछुआ आदि प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। यह गम्भीर चिन्ता का विषय है।
वनों की अन्धाधुन्ध कटाई से वनों में रहने वाले जीवों का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है। बारह सिंगा, लकड़ बग्घा, जंगली सुअर, भेड़िया, भालू, ऊदबिलाव, वनबिलाव, लोमड़ी, खरगोश, गीदड़, चीतल, हिरन, खच्चर, गधे, घोड़े जैसे जानवर धीरे-धीरे पृथ्वी से गायब हो रहे हैं। शेर, चीता, हाथी, लंगूर, हिरन आदि अब केवल अभयारन्हों में भी दिखाई देते हैं। ऐसा नहीं है कि मानव को इसका अहसास नहीं मगर प्रगति की दौड़ में मदांध वह जानबूझ कर इस सबकी अनदेखी कर रहा है।

पक्षियों की भी अनेक प्रजातियां आज विलुप्त हो गई हैं या फिर विलुप्त होने के कगार पर हैं। हंस-हंसिनी के किस्से अब किताबों में सिमट कर रह गए हैं। बाज, चील, गिद्ध, बगुला, कठफोड़ा, गौरैया, कोयल, कौआ, तोता, कबूतर आदि पक्षियों की संख्या आज न के बराबर रह गई है। यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।
पृथ्वी पर वनों का क्षेत्रफल लगातार सिमटता जा रहा है। एक प्रमुख भू-विज्ञानी ने कहा है कि जिस प्रकार शरीर के अस्तित्व की रक्षा के लिए उसकी कम से कम एक तिहाई त्वचा का संरक्षित रहना आवश्यक है ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के अस्तित्व की रक्षा के लिए उसके कम से कम एक तिहाई भाग पर वनों का होना आवश्यक है। परन्तु वर्तमान समय में पृथ्वी के केवल बाईस प्रतिशत भू-भाग पर वन रह गये हैं जो गम्भीर चिन्ता का
विषय है।
कदम्ब, करील, बरगद, पाकड़, पीपल, गूलड़, शीशम, नीम जैसे छायादार वृक्ष दिनों-दिन कम होते जा रहे हैं जिससे धरती का तापमान बढ़ रहा है और वायुमण्डल में गैसों का नाजुक सन्तुलन बिगड़ रहा है। जो आने वाले समय में गम्भीर खतरे का कारण बन सकता है।
22 मई सन् 1992 को नैरोबी में विश्व के 103 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जैव विविधता के संरक्षण हेतु एक एक्ट बनाया जिसे नैरोबी एक्ट के नाम से पुकारा गया। सन् 1995 में परमाणु अस्त्रों की होड़ पर लगाम लगाने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता हुआ। सन् 2015 में पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन में दुनिया के 135 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने अपने-अपने देश में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम करने की घोषणा की। मगर यह सभी समझौते मात्र किताबों के पृष्ठ बनकर रह गये हैं। अपनी-अपनी हेकड़ी और अपने-अपने मद में चूर दुनिया के देश इन समझौतों का पालन नहीं कर रहे हैं। जिससे जैव विविधता का अस्तित्व लगातार संकट में पड़ता जा रहा है।
अमेरिका में आए बर्फीले तूफान आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा और तमिलनाडु में आई सुनामी, चेन्नई में आई भीषण बाढ़, केदारनाथ में आई आपदा, चमोली जिले में ग्लेशियर के फटने से हुई तबाही तथा इस समय चल रहे ताऊते तूफान से होने वाली जन, धन की होने वाली भीषण हानि के दौरान हम प्रकृति के प्रकोप को देख चुके हैं। अचानक आईं इन आपदाओं ने लाखों लोगों की जिन्दगियाँ लील ली थीं और दूर-दूर तक जनजीवन को तहस-नहस कर दिया था। मगर प्रगति और तकनीकी के मद में चूर मानव ने इन आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखा है जो चिन्ताजनक है।
प्राकृतिक आपदाओं से बचने तथा मानव के आस्तित्व को बनाए रखने के लिए जैव विविधता को बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। आज के जैव विविधता दिवस पर हम सब संकल्प लें कि हम धरती पर सभी जीवों और पेड़-पौधों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहेंगे, जिससे पृथ्वी पर जीवन का चक्र निर्वाध रूप से चलता रहे।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य
राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
मोबाइल नं. 9411422735,
E-mail : sureshbabubareilly@gmail.com

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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