अब कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं -डॉक्टर मोहम्मद अफ़ज़ल ख़ान !
अब कुष्ठ रोग से भयभीत होने की ज़रुरत नहीं है और न ही मरीज़ों को घर से बहार निकलने की ज़रुरत है ! कुष्ठ रोग माइक्रोबैक्टीरिया लेपी नमक जीवाणु या कीटाणु से फैलता है ! यदि त्वचा या खाल में कीटाणु होते हैं तो शरीर पर हलके सफ़ेद या तांबे जैसे चकत्ते, धब्बे या दाग़ पड़ जाते हैं ! दाग़ों में सुन्नपन या संवेदनशीलता होती है ,नुकीली चीज़ या सूई चुभोने पर कुछ पता नहीं चलता है अहसास नहीं होता और दाग़ों में पसीना नहीं आता है ! दाग़ों में के रूंगटा या बाल उड़ जाते हैं सुन्नपन होने के कारण शरीर पर या दाग़ों में ठन्डे या गरम का अनुभव नहीं होता है ! यदि आग तापने पर चिंगारी पड़ जाये तो फाल्के या आंवला पड़ जाते हैं और मरीज़ को पता नहीं चलता फाल्के या ज़ख्म हो जाता है ! इस बीमारी के ज़ख्म या घाव जल्दी नहीं भरते हैं अधिक समय तक चिकित्सा उपचार करना पड़ता है ! रस्सी खींचने,किसी चीज़ से टकराने या कोई चीज़ आपके शरीर पर गिर जाये तो फाल्के बांके घाव बन जाते हैं !
शरीर की विकलांगता मर्ज़ का समय पर इलाज न करने पर लापरवाही बरतने पर ही आती है ! शुरू के दाग़ व धब्बे या सुन्नपन 6 माह से साल भर में चले जाते हैं ! मरीज़ जल्दी ठीक हो जाता है !
ये रोग अब साध्य है असाध्य नहीं है इसी कारण अब यूरोप के देशो से इस रोग का नामोनिशान मिट गया है लेकिन एशिया और अफ्रीका देशो में तेज़ी से फैल रहा है !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की ख़ास रिपोर्ट !