नई दिल्ली. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्याय तक पहुंच केवल जन-समर्थक न्यायशास्त्र तैयार करके हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि बुनियादी ढांचे में सुधार और कानूनी सहायता सेवाओं को बढ़ाने जैसे अदालत के प्रशासनिक पक्ष में भी सक्रिय प्रगति की आवश्यकता है.
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण नालसा द्वारा यहां ‘कानूनी सहायता तक पहुंच’ विषय पर आयोजित पहले क्षेत्रीय सम्मेलन में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों के लिए चुनौती व्यक्तिगत मामले के तथ्यों में न्याय करना नहीं है, बल्कि प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाने और चीजों को तात्कलिकता से परे देखने की है.
उन्होंने कहा, ‘न्याय तक पहुंच कोई ऐसा अधिकार नहीं है जिसे केवल हमारे फैसलों में जन-समर्थक न्यायशास्त्र तैयार करके हासिल किया जा सकता है, बल्कि इसके लिए अदालत के प्रशासनिक पक्ष में भी सक्रिय प्रगति की आवश्यकता है.’
प्रधान न्यायाधीश सीजेआई ने कहा कि मानवाधिकारों और न्याय तक पहुंच के बारे में चर्चा पर ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्तर (औद्योगिक देशों) की आवाजों का एकाधिकार रहा है, जो इस तरह के संवादों को अनुपयुक्त बनाता है.
उन्होंने कहा, “हमारे देश में कम प्रतिनिधित्व वाली आबादी की न्याय संबंधी जरूरतों को पूरा करना आवश्यक है.” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्याय की अवधारणा को ऐतिहासिक रूप से केवल एक संप्रभु देश की सीमा के भीतर ही लागू माना गया है.
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