नवरात्रि जानें कैसे करें माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा और व्रत,
चैत्र नवरात्रि पूजा 6 अप्रैल से प्रारंभ हो जायेगी। जानें कि इस अवसर घट स्थापना का मुहूर्त,व्रत पूजन की विधि और दुर्गा के नौ रूपों के बीज मंत्रों के बारे में।
पूजा के लिए उत्तम मुहूर्त
अनुष्ठान और साधना के लिए चैत्र नवरात्रि श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। इस नवरात्रि में 6 अप्रैल 2019 शनिवार से शुरू हो रहा है, जो 14 अप्रैल को राम नवमी के त्योहार के साथ सम्पन्न पूर्ण होगा। पंडित दीपक पांडे के अनुसार, इस बार नवरात्रि 8 दिनों की है, और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 44 मिनट से लेकर 12 बजकर 34 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ भी माना जाता है जिसके चलते इस दिन से विक्रम सम्वत 2076 परिधावी भी अारंभ हो जायेगा। पूजन का अभिजित मुहूर्त 12:05 से 12:54 रहेगा।
ऐसे करें पूजन व व्रत
इस नवरात्रि की पूजा प्रतिपदा से आरंभ होती है परंतु यदि कोई साधक प्रतिपदा से पूजन न कर सके तो वह सप्तमी से भी आरंभ कर सकता है। इसमें भी संभव न हो सके, तो अष्टमी तिथि से आरंभ कर सकता है। यह भी संभव न हो सके तो नवमी तिथि में एक दिन का पूजन अवश्य करना चाहिए। कलश स्थापना के लिए सर्वप्रथम एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी की एक अथवा दो परत बिछा कर उसमें जौ बो दें। इसके बाद कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटें। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदल कमल बनायें। कलश में गंगाजल मिला हुआ जल डालें, उसके बाद क्रमशः चन्दन, मुरा, चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी, दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न आदि अर्पित करे। अब पंचपल्लव, यानि बरगद, गूलर, पीपल, पाकड़ और आम के पत्ते कलश के मुख पर रखें।
कलश को वस्त्र से अलंकृत कर चावल से भरे पात्र को कलश के मुख पर स्थापित कर दें। एक नारियल पर लाल कपडा लपेटकर मौलि से बांध दें। इस नारियल को कलश पर रख कर घट को अष्टदल कमल पर स्थापित कर दें। अब दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करें और उन्हें कलश के पास छोड़ दें। नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योति जलाई जाती है जो नौ दिन तक निरंतर जलती रहनी चाहिए क्योंकि इसका बीच में बुझना अच्छा नही माना जाता है। नवरात्रि में उपवास एवं साधना का विशिष्ट महत्व है। भक्त प्रतिपदा से नवमी तक जल उपवास या दुग्ध उपवास से गायत्री अनुष्ठान संपन्न कर सकते हैं। यदि साधक में ऐसा सामर्थ्य न हो, तो नौ दिन तक अस्वाद भोजन या फलाहार करना चाहिए। किसी कारण से ऐसी व्यवस्था न बन सके तो सप्तमी-अष्टमी या केवल नवमी के दिन उपवास कर लेना चाहिए। अपने समय, परिस्थिति एवं सामर्थ्य के अनुरूप ही उपवास आदि करना चाहिए।
चैत्र नवरात्रि नौ दिनों की होती है, जो मां दुर्गा को समर्पित होती है और प्रतिपदा से नवमी तक माता के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना और उपवास कर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इन सभी की पूजा के लिए विशेष बीज मंत्र होते हैं, जो इस प्रकार हैं –
पहला शैलपुत्री का बीज मंत्र: ह्रीं शिवायै नम:
दूसरा ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
तीसरा चन्द्रघंटा का बीज मंत्र: ऐं श्रीं शक्तयै नम:
चौथा कूष्मांडा का बीज मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:
पांचवा स्कंदमाता का बीज मंत्र: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
छठा कात्यायनी का बीज मंत्र: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
सातवां कालरात्रि का बीज मंत्र: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
आठवां महागौरी का बीज मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
नवां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: