स्मृति शेष: सदी के महानायक भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या

एम. विश्वेश्वरय्या का जन्म  कर्नाटक के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। इनके पिता संस्कृत के विद्वान श्रीनिवास शास्त्री और माता वेंकाचम्मा थी।
प्रारंभिक शिक्षा के बाद सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर में प्रवेश लिया और वर्ष 1881 में प्रथम स्थान के साथ स्नातक कक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद एम. विश्वेश्वरय्या ने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग की शिक्षा ली। वर्ष 1883 में एम. विश्वेश्वरय्या ने एलसीई व एफसीई (वर्तमान में बीई) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, जिससे इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर बनाया गया
एम. विश्वेश्वरय्या ने 32 वर्ष की आयु में सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान बनाया था, जिसे सभी इंजीनियरों ने स्वीकार किया।सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए स्टील के दरवाजे बनाकर एक नया ब्लॉक सिस्टम बनाया जो बांध के पानी को रोकने में मदद करता था। वर्तमान में यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग की जा रही है।

एम. विश्वेश्वरय्या ने मूसा और इसा नामक नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किये थे। इसके बाद ‘एम. विश्वेश्वरय्या’ को मैसूर में विभाग का चीफ इंजीनियर बना दिया गया।
विश्वेश्वरय्या ने मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध के निर्माण के लिए सीमेंट से भी मजबूत ‘मोर्टार’ तैयार किया था।  वर्ष 1912 में एम. विश्वेश्वरय्या को मैसूर के महाराजा ने दीवान बना दिया। दीवान का पद किसी भी मुख्यमंत्री से कम नहीं माना जाता था। इस पद पर रहते हुए उन्होंने मैसूर में स्कूलों की संख्या 4500 से बढ़ाकर 10500 करवा दी थी। मैसूर में लड़कियों के लिए पहला महारानी कॉलेज और हॉस्टल खुलवाने का श्रेय भी एम. विश्वेश्वरय्या को जाता है और उनके प्रयासों से ही मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। वर्ष 1918 में एम. विश्वेश्वरय्या दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए थे। उसके बाद भी वे देशहित के लिए कार्य करते रहे। एम. विश्वेश्वरय्या ने वर्ष 1935 में मैसूर में ऑटोमोबाइल और एयरक्राफ्ट फैक्ट्री की शुरुआत करने के सपने के लिए कार्य शुरू किया, जिसके फलस्वरूप हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, बैंगलोर और प्रीमियर ऑटोमोबाइल, मुंबई फैक्ट्री लगी।वर्ष 1947 में एम. विश्वेश्वरय्या ‘ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन’ के अध्यक्ष बने।वर्ष 1928 में रूस की प्रथम पंचवर्षीय योजना के आठ वर्ष पूर्व ही 1920 में एम. विश्वेश्वरय्या ने अपनी ‘रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया’ में इस तथ्य पर जोर दिया था और वर्ष 1935 में ‘प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया’ पुस्तक लिखी।

वर्ष 1955 में एम.विश्वेश्वरय्या को उनकी जनहितकारी और अभूतपूर्व उपलब्धियों के लिए देश का सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” प्रदान किया गया ।उनकी आयु 100 वर्ष होने पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में ‘डाक टिकट’ जारी किया था।उनके बारे में एक बहुत आश्चर्यजनक और रोचक बात है कि ब्रिटेन में रेलगाड़ी से यात्रा करते समय एम. विश्वेश्वरय्या ने जंजीर खींच कर गाड़ी रुकवा दी।गार्ड के पूछने पर बताया कि ‘मेरे अनुमान से लगभग 1 फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। क्योंकि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया और पटरी से गूंजने वाली आवाज से मुझे खतरा महसूस हो रहा है।’ गार्ड के जाँच करने पर कुछ दूरी पर पटरी के जोड़ व नट-बोल्ट खुले पड़े थे। एम. विश्वेश्वरय्या की सूझबूझ से सभी की जान बच गई तो लोगों ने उनकी प्रशंसा की। गार्ड के पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम एम. विश्वेश्वरय्या है।’ इस प्रकार पूरे विश्व में उनकी ख्याति आज भी है ऐसे कर्मठ महापुरुष को सादर नमन और श्रद्धांजलि।. प्रस्तुति:सुरेन्द्र बीनू सिन्हा। 326, कहरवान, बिहारीपुर, बरेली। मो.9412067488

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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