19 जुलाई जयन्ती पर विशेष-आज़ादी के यज्ञ में पहली आहुति देने वाले मंगल पाण्डेय !

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पहली आहुति देने वाले मंगल पाडंये ने इस दिन देश के नौजवानों ने आजादी की अलख जगाई। मंगल पाण्डेय के बलिदान ने 1857 में हुये भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की चौंतीसवीं बंगाल इन्फेन्ट्री के सिपाही थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पाण्डेय था। बचपन से ही मंगल पाण्डेय ने वीरता और साहस के गुण कूट-कूट कर भरे हुये थे। 22 साल की उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में शामिल हो गये।
उनके मन में आजादी की ज्वाला भी धधक रही थी उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए ब्रिटिश सेना से विद्रोह कर दिया। विद्रोह का प्रारम्भ एक बन्दूक की वजह से हुआ। अंग्रेज शासकों द्वारा भारतीय सिपाहियों को पैन्टन 1853 एनफील्ड बन्दूकें दी गईं। ये बन्दूकें कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन वैस बन्दूकों के मुकाबले में काफी शक्तिशाली और अचूक थीं। इन नई बन्दूकों में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली का प्रयोग किया गया था। परन्तु बन्दूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। एनफील्ड बन्दूक भरने के लिए कारतूस को दाँतों से काटकर खोलना पड़ता था और उसमें भरे हुये बारूद को बन्दूक की नली में भरकर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कारतूस को पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच यह बात फैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई जाती है। इससे भारतीय सैनिकों में विद्रोह की ज्वाला धधक उठी धीरे-धीरे विद्रोह की आग भड़ती गई।


29 मार्च 1857 को वैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेन्ट के अंग्रेज अफसर लेफ्टीनेंट बाग पर हमला कर दिया। इस हमले में लेफ्टीनेंट बाग बुरी तरह से घायल हो गये। जनरल जाॅन हेयरसे ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को, मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। पर उन्होंने मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने से मना कर दिया। एक सिपाही शेख पलटू को छोड़कर रेजीमेंट के सारे सिपाहियों ने मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों से खुलेआम विद्रोह करने की अपील की। उन्होंने कहा कि अग्रेजों को देश से निकालने का यही उचित समय है पर सिपाहियों में अंग्रेज अधिकारियों का इतना आतंक था कि वे खुलेआम विद्रोह करने के लिए तैयार नहीं हुये। इससे क्षुब्ध होकर मंगल पाण्डेय ने अपनी बन्दूक से अपने प्राण लेने का प्रयास किया, परन्तु इस प्रयास में वे केवल घायल हुए बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। और 8 अप्रैल 1857 को उन्हें वैरकपुर में ही फांसी दे दी गई। 22 वर्षीय अल्प आयु में ये नौजवान देश की आजादी के लिये शहीद हो गया। देश की स्वतंत्रता संवरने में उन्होंने अपनी पहली आहुति दी।
मंगल पाण्डेय द्वारा लगाई गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं उनको फांसी पर चढ़ाये जाने के एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गई। भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज शासकों के खिलाफ खुलेआम विद्रोह कर दिया। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया। अंग्रेज यह समझ गये कि अब भारत पर राज्य करना इतना आसान नहीं है। यद्यपि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कई कारणों से सफल नहीं हो सका। परन्तु इसमें देश की आजादी की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। मंगल पाण्डेय के बलिदान ने देश के नौजवानों को झकझोर कर रख दिया और वे अपने प्राणों की परवाह किये बिना आजादी की जंग में कूद पड़े। मंगल पाण्डेय मर कर भी अमर हो गये और सदा-सदा के लिए वे नौजवानों के प्रेरणास्रोत बन गये।


सुरेश बाबू मिश्रा
सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य
ए-979, राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
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E-mail : sureshbabubareilly@gmail.com

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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