Lucknow News : दलित जातियों में एकता के पक्षधर थे संत रविदास डॉ निर्मल
संत रविदास जयंती समारोह में अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष डॉ. निर्मल ने सभी दलित जातियों से एक जुट होने की अपील की है।
वह राजधानी लखनऊ के संत रविदास मंदिर में हो रहे जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि लोगों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा है कि संत रविदास ने कहा था ”संत संगत बिन रहिए जैसे मधुप मधीरा” वह दलितों को एक सूत्र में पिरोना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दलितों से कहा कि शहद की मक्खियों की तरह मिलकर रहना चाहिए।
डॉ निर्मल ने कहा कि संत रविदास ने एक ऐसे राज्य की कल्पना की इसमें कोई भूखा ना हो, इसमें कोई गम न हो, उनका यह आदर्श राज्य था बेगमपुरा। डॉक्टर आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया वह इस्लाम और ईसाइयत से दूर रहे। इसके पीछे उनके परिवार पर कबीर और संत रविदास का ही प्रभाव था।
निर्मल ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि वह संत रविदास ही थे जिन्होंने महर्षि वाल्मीकि को दलित वर्ग का संत कहा। उन्होंने यह भी कहा कि चमार और चांडाल में समन्वय आवश्यक है। महर्षि वाल्मीकि से प्रभावित संत रविदास ने उलट नाम भक्ति को स्वंय भी अपनाया। उन्होंने कहा था कि उल्टा नाम जगत जन जाना, वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।
संत रविदास ने हंसा शब्द का उल्टा सोहं को अपनी साधना का अंग बनाया, जो निम्न वर्ग द्वारा परीपार्टियों को तोड़कर नीचे से ऊपर उठने की नवीनतम साधना थी। जातिभेद के प्रबल विरोधी संत रविदास ने जाति पर प्रहार करते हुए कहा कि रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति जात। डॉ. निर्मल ने सभी लोगों से रविदास से प्रेरणा लेने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि आज जातियों के विभाजन की जो रेखा खींची जा रही है उसे रोकने के लिए रविदास की का जीवन अनुकरणीय है।