क्या है असली खेल तीन तलाक के बिल का?
समय और ऐसा पेंच फंस गया है कि अब यह बिल फिर से अटक गया। और फिर संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार आखिरकार एक बार में तीन तलाक संबंधी विधेयक राज्यसभा से पारित नहीं करा सकी, जबकि यह लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है।
दिक्कत इस बात की है कि अब राज्यसभा में बिल लंबित रहने के कारण सरकार के पास इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए बहुत सीमित विकल्प रह गए हैं।
गौरतलब है कि एक बार में तीन तलाक को अपराध घोषित करने के प्रावधान वाले मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को शीतकालीन सत्र में लोकसभा पारित कर चुकी है।
राज्यसभा में विपक्ष बिल को सिलेक्ट कमिटी को भेजने की मांग पर अड़ गया, जिससे सरकार इसे पारित नहीं करा सकी। हालांकि सरकार ने उच्च सदन में इसे चर्चा के लिए रख दिया है और यह फिलहाल उच्च सदन की संपत्ति है।
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य विवेक तनखा भी मानते हैं कि इस बारे में अध्यादेश लाने के लिए कानूनी तौर पर सरकार के लिए कोई मनाही नहीं है। हालांकि परंपरा यही रही है कि संसद में लंबित विधेयक पर अध्यादेश नहीं लाया जाता।