उतर प्रदेश के ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर का ऐतिहासिक गांव रहा है कैथोड़ा ।

इस गांव का ताल्लुक़ सादात बारहा के मौज़ा कैथोड़ा की महमूदखानी शाख यानी सैय्यद महमूद खान इब्ने सैय्यद सालार औलिया के छातरोड़ी सिलसिले से है!

ये सिलसिला औरंगजेब आलमगीर के अहद के मंसबदार व जागीरदार , नवाब सैयद परवरिश अली खान बहादुर मुखातिब बा खिताब सैयद पहाड़ ख़ान नाजिम व सूबेदार बिहार, उड़ीसा व अज़ीमाबाद(पटना) से मिलता है।

नवाब परवरिश अली खान साहब का मकबरा जिला गाज़ीपुर में है। इनके बेटे नवाब सैयद मौहम्मद ख़ान “सलावत जंग” थे जिनका सादाते बारहा के मंसबदारो नुमाया मक़ाम था । नवाब सलावत जंग के बेटे और बादशाह मुहम्मद शाह के मन्सबदार दीवान सैय्यद ज़ुल्फिकार अली खान थे ।

अपने अहद के शिरुआत दीवान ज़ुल्फ़िकार अली खान साहब सरकार संभल के फौजदार रहे हैं। इन्हीं दीवान सैयद ज़ुल्फ़िकार अली खान साहब ने कैथोडा में गढ़ी की तामीर करवायी थी जिसमें एक दरवाजा “बाबे फतह” के नाम से बनवाया था जो आज भी बाकी है। इसी खानदान में एक और अजीम शख्सियत दीवान सैयद ज़ुल्फ़िकार अली खान साहब के चचाज़ाद भाई व बहनोई नवाब सैय्यद नज़र मौहम्मद खान “रुक्नुद्दौला”गुज़रे है ।

नवाब नज़र मौहम्मद रुकनुद्दौला मुग़ल बादशाह शाहजहां के दौर में सरकार बदायूं के नाजिम रहे हैं।जिनके बेटे नवाब नुसरत यार खान थे( इनका अस्ल नाम नुसरत यार खान न था, नुसरत यार खान इनको बतौर खिताब बादे फतहे जंगे “जाजूज़न” दिया गया था और इसी नाम से ये तारीख़ में मशहूर हो गये ) ।

नवाब नुसरत यार खान सूबा अजमेर के सूबेदार होने के साथ-साथ मुग़ल दरबार में पांच हज़ारी( 5000) मंसबदार रहे हैं।दीवान सैय्यद ज़ुल्फिकार खान व नुसरतयार खान रुक्नुद्दौला के दौर मे जिसमे अली मौहम्मद खान वालीये रियासते रामपुर और ऐतमातुद्दौला मौहम्मद अमीन खान वगैरह शामिल थे, जिन्होने जानसठ के सैय्यद सैफुद्दीन खान (सैय्यद बरादरान,जानसठ) के खिलाफ ‘जंगे भैसी’ लडी थी ! दीवान सैय्यद ज़ुल्फिकार खान व नुसरत यार खान रुक्नुद्दौला जोकि दरबारे मुगल बादशाह मौहम्मदशाह के आला मन्सबदार थे, उनके मरासिम सादत खान बुरहानुलमुल्क सूबेदार अवध, मीर क़मरउद्दीन खान आसफजाह सूबेदार दखन व मुर्शिद कुली खान सूबेदार बंगाल आदि से थे!

इसी सिलसिले के चलते अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने दीवान सैय्यद ज़ुल्फिकार खान के पोते नवाब सैय्यद खैरात अली व उनके भाइयो शुजाअत अली व लताफत अली को रियासते अवध मे क़स्बा बाडी जिला सीतापुर व सुल्तान पुर मे एक कसीर मवाज़आत पर मुश्तमिल एक जागीर दी ।इसी खानदान में एक मशहूर ए ज़माना शख्सियत नवाब रौशन अली खान साहब गुज़रे है जो रियासत ए हैदराबाद के मंसबदार थे। इन्होंने तारीख़ की मशहूर किताब “सय्यदअल तारीख़” लिखी है। दीवान ज़ुल्फ़िकार अली खान साहब की विरासत को उनकी ज्यादातर नस्लों की हिजरत के सबब कैथोढा में नवाब सैय्यद रौशन अली खान साहब ने संभाला था ।दीवान ज़ुल्फ़िकार अली खान के सिलसिले के कुछ लोग जिनको रियासत दतिया (मध्य प्रदेश) में एक जागीर मिली वहीं आबाद हो गये, इसके अलावा ढकिया नगला (बिजनौर) , रामपुर वो हरियाणा मे भी इस सिलसिले के लोग आबाद हुऐ !

मशहूर किताब “सैयद उल तारीख़” के लेखक ,असिस्टेंट कमिश्नर और बाद में रियायत हैदराबाद के मंसबदार , सैयद रौशन अली साहब ने लिखी थी जो दीवान ज़ुल्फ़िकार अली खान की नस्ल से ताल्लुक रखते हैं।रौशन अली साहब से 1864 ई0 में मिस्टर ग्रांट ने इस किताब की मसवदे को लेकर मुज़फ्फर नगर गजेटियर के एक बड़े हिस्से को तरतीब दिया था।
इसका नुस्खा इंडियन आफिस लाईब्रेरी लंदन में मौजूद हैं।

(शाह उर्फ़ी रज़ा जैदी,सेथल, ज़िला बरेली)

 

 

बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !