.इसलिए कि जाति है गोवर्धन पूजा !
सुभाष नगर के तपेश्वर नाथ मंदिर में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथा व्यास पंडित पंडित अतुलेश्वर सनाढ्य ने गोवर्धन पर्वत पूजा एवं कृष्ण लीलाओं का व्याख्यान सुनाया और प्रसंग सुनाते हुए कहा कि गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है।
कुछ इलाकों में इस त्योहार को अन्नकूट भी कहा जाता है. गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपाद तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है।इस त्योहार को लेकर एक बहुत ही पुरानी कथा प्रचलित है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन का पर्वत उठाया था और सभी वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाया था। *भगवान कृष्ण ने क्यों उठाया था पर्वत* कथा के अनुसार इस दिन वृंदावन निवासी अच्छी फसल के लिए इंद्र देवता की पूजा किया करते थे और धूमधाम से उत्सव मनाया जाता था। भगवान इंद्र सभी देवताओं में सबसे उच्च हैं और साथ ही उन्हें स्वर्ग का राजा कहा जाता है। कथा के मुताबिक भगवान इंद्र को अपनी शक्तियों और पद पर घमंड हो गया था जिसे चकनाचूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को समझाया कि गोवर्धन पर्वत की उपजाऊ धरती के कारण ही वहां पर घास उगती है जिसे उनकी गाय, बैल और पशु चरते हैं. जिसके बाद उन्हें उससे दूध मिलता है साथ ही वो खेत को जोतने में मदद करते हैं. भगवान कृष्ण ने वृंदावन वासियों को समझाया कि वो भगवान इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। यह सुनकर भगवान इंद्र बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए और उन्होंने वृंदावन पर मूसलाधार बारिश की इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली यानी छोटी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. सभी वृंदावन वासी उस पर्वत के नीचे आ गए और खुद को भारी बारिश से बचा लिया। इंद्र 7 दिनों तक पानी बरसाते रहे लेकिन आखिर में उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। भगवान इंद्र खुद धरती पर उतरे और श्री कृष्ण से माफी मांगी. तभी से इस त्योहार को मनाया जा रहा है. *कैसे मनाते हैं गोवर्धन त्योहार* व्यास जी ने बताया कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं. इसलिए लोग खाद्य पदार्थ का प्रयोग कर घर पर ही गोवर्धन पर्वत, गाय,बैल, पेड़ की आकृति बनाते हैं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं. इस दिन गाय, बैल, भैंस जैसे पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही और तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है और परिक्रमा करते हैं। अतुलेश्वर सनाढ्य ने कहा कि कल 12 जनवरी को रुकमणी विवाह एवं महारास करते हुए भगवान राधा -कृष्णा की झांकियों के साथ प्रसंग सुनाया जाएगा।