भारतीय अर्थव्यवस्था की स्पीड की असलियत जानें

indian-economyभारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जहां एक तरफ आशंकाओं का बाजार गर्म है, वहीं दूसरी ओर कुछ वैश्विक संगठनों की सकारात्मक रिपोर्टों से राहत भी मिली है। 15 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा कि वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर घटकर 6.7 फीसदी पर आ जाएगी, लेकिन मध्यम अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती की राह पर है। विश्व बैंक ने भी वर्ष 2017-18 के लिए विकास दर के अपने अनुमान को घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। बैंक के अनुसार आर्थिक विकास दर सुस्त रहने की एक प्रमुख वजह नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर लागू होना है, लेकिन वर्ष 2018-19 से ये सुधार देश की विकास दर बढ़ाने वाले सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री की नवगठित आर्थिक सलाहकार परिषद ने भी अर्थव्यवस्था में सुस्ती की स्थिति को स्वीकार किया है, लेकिन वर्ष 2018 की शुरुआत से हालात बदलने की बात कही है। वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी मॉर्गन स्टैनली ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आगामी 10 वर्षों में भारत डिजिटलीकरण, प्रशिक्षित युवा आबादी और विभिन्न आर्थिक सुधारों के बूते दुनिया की सबसे तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा।

ब्रिटिश ब्रोकरेज कंपनी ‘हॉन्गकॉन्ग ऐंड शंघाई बैंक कॉर्पोरेशन’ ने अपनी विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2028 तक भारत फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बन सकता है। अभी इस मामले में पहला और दूसरा क्रम अमेरिका और चीन का है, जबकि भारत का स्थान ऊपर के बाकी चार देशों के बाद 7वां है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2016-17 के कुछ सुधारों से भारत की आर्थिक वृद्धि के रास्ते में बाधा उत्पन्न हुई है, लेकिन कुछ समय बाद इन सुधारों से भारत की क्षमता का पूरा उपयोग होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को आर्थिक और कारोबार सुधारों के साथ-साथ स्वास्थ्य व शिक्षा संबंधी सुधारों की प्रक्रिया को भी निरंतर जारी रखना होगा। इन सुधारों से 2018-19 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रभावी रूप दिखाई देगा। ॥स्क्चष्ट की तरह पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित‘वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट’ और विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ‘वैश्विक आर्थिक विकास रिपोर्ट’ में भी कहा गया है कि भारत वर्ष2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभर सकता है। लेकिन घटी हुई विकास दर को पटरी पर लाने के लिए रणनीतिक प्रयास जरूरी है।

11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने जरूरी उपायों पर चर्चा की और विकास को धार देने के लिए 10 प्राथमिकताओं का चयन किया। विकास दर लगातार गिरावट के साथ 5.7 फीसदी तक पहुंच चुकी है और फिलहाल इसके तेजी पकडऩे के आसार नहीं हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार के मौके लगातार घट रहे हैं, जो सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। असंगठित क्षेत्र में नोटबंदी और जीएसटी के बाद रोजगार की चिंताएं बढ़ गई हैं। सरकार की आय घटी है और खर्च बढ़े हैं। कारोबार घटने के कारण लोग बैंकों से कर्ज लेने नहीं जा रहे। ऐसे माहौल में जरूरी है कि सरकार की बड़ी योजनाओं के तहत सही समय पर सही रकम सही व्यक्ति को मिले। सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचना जरूरी है। साथ ही जन कल्याण की योजनाओं की उपयुक्त निगरानी भी आवश्यक है। सरकार का लक्ष्य 2022 तक कृषि आय दोगुनी करना है लिहाजा इस सेक्टर पर अतिरिक्त ध्यान देना जरूरी है। कृषि और पशुपालन से 60-65 फीसदी आबादी को रोजगार मिला हुआ है लिहाजा इस क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं ढंग से अमल में लाई जाएं। रोजगार केंद्रित विकास दर बढ़ाने की रणनीति जरूरी है। सरकार को बड़े रोजगार लक्ष्यों को पाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ाना होगा। ‘मेक इन इंडिया’ योजना को गतिशील करना होगा। उन ढांचागत सुधारों पर भी जोर देना होगा, जिनसे निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके। इससे रोजगार की नई संभावनाएं आकार ले सकती हैं।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर भारत दुनिया का नया कारखाना बन सकता है। अभी दुनिया के कुल उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 18.6 फीसदी है लेकिन हाल में आई सुस्ती, युवा कार्यशील आबादी में कमी और बढ़ती श्रम लागत के कारण चीन में औद्योगिक उत्पादन की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। हमारे लिए यह अच्छा मौका है। भारतीय मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ की बड़ी संभावनाएं बताई जा रही हैं। देश में प्रभावी मांग बढ़ाने और तेज विकास दर के लिए ऐसे प्रयास करने होंगे जिनसे आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़े। यह काम सरकारी निवेश के जरिये ही किया जा सकता है। सरकार को लघु व कुटीर उद्योगों सहित ऐसे क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय बढ़ाना होगा, जिनमें रोजगार और मांग बढ़ाने की प्रचुर संभावनाएं हैं। इसके अलावा उद्योग-कारोबार के सामने आ रही जीएसटी संबंधी उलझनों को दूर करते हुए उन्हें प्रोत्साहन देगा। बैंकों को कहना होगा कि वे उद्योग-कारोबार को सरलता से ऋ ण देना शुरू करें। रिजर्व बैंक से बाजार के लिए और ज्यादा नकदी आनी जरूरी है, भले ही इससे राजकोषीय घाटे का वर्तमान तीन फीसदी का लक्ष्य प्रभावित होता हुआ दिखाई दे।

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