संवेदनहीनता के दौर में
वर्तमान समय में पूरा देश और समाज कोरोना की भयावह आपदा के कठिन दौर से गुजर रहा है। देश में दो करोड़ से अधिक लोगों का संक्रमित हो जाना और ढाई लाख से अधिक लोगों का असमय निधन हो जाना चिन्ताजनक है। संक्रमितों का तेजी से बढ़ता ग्राफ हैरान कर देने वाला है। इस भयावह त्रासदी में समाज और व्यवस्था का संवेदनहीन चेहरा भी उजागर हो रहा है। इस आपदा के दौरान कुछ ऐसे घटनाक्रम घटे हैं जो मन को अन्दर तक झकझोर देने वाले हैं।
साइरन बजाती हुई एम्बुलेंस ने कालोनी में प्रवेश किया और मिस्टर वर्मा के मकान के सामने आकर रुक गई। उत्सुकतावश कालोनी में रहने वाले लोग अपनी-अपनी खिड़कियों से झांकने लगे।
मिस्टर वर्मा की पत्नी तीन-चार दिन से कोविड अस्पताल में भर्ती थीं, इसलिए सब जानना चाहते थे कि एम्बुलेंस क्यों आई है। सबके कान मिस्टर वर्मा के दरवाजे की ओर ही लगे हुए थे।
एम्बुलेंस से उतरकर स्वास्थ्य कर्मचारियों ने डोरबैल बजाई। मिस्टर वर्मा ने आकर दरवाजा खोला। एक स्वास्थ्य कर्मचारी ने मिस्टर वर्मा को तीन रिपोर्ट थमाते हुए कहा-“सर! आपके दोनों बच्चों की रिपोर्ट तो निगेटिव है मगर आपकी रिपोर्ट कोरोना पाॅजिटिव आई है। इसलिए आपको हमारे साथ कोविड अस्पताल चलना होगा।“
“क्या?“ रिपोर्ट पढ़कर मिस्टर वर्मा का चेहरा उतर गया। वे यहां एक मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर थे। उनका छोटा सा परिवार था, पति-पत्नी और दो छोटे बच्चे। बड़ा बेटा छः साल का था और छोटा चार साल का। उनके यहां ऊपर के पोर्शन में एक यंग कपल किराए पर रहता था, मगर लाॅकडाउन के कारण वे लोग अपने घर चले गए थे। इन दिनों संक्रमण के भय से उन्होंने काम वाली से मना कर दिया था। अब बच्चों को किसके पास छोड़ें यह समस्या उनके सामने मुंह बाये खड़ी थी। उनके घर में ही आइशोलेट होने से बच्चों के भी संक्रमित होने का खतरा था। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? धीरे-धीरे पूरी कालोनी में यह खबर फैल गयी थी कि वर्मा जी की रिपोर्ट कोरोना पाॅजिटिव आई है।
यह एक पाश कालोनी थी और यहां सब सम्पन्न और शिक्षित लोग रहते थे। मिस्टर वर्मा ने अपने कई पड़ोसियों को फोन कर बच्चों को रखने का आग्रह किया। कुछ ने तो फोन ही नहीं उठाया, एक-दो ने फोन उठाया भी तो कोई न कोई बहाना बना दिया। उन्होंने अपने एक-दो सहकर्मियों को भी फोन किया, मगर बात नहीं बनी। मिस्टर वर्मा सबसे बार-बारकहते रहे कि उनके दोनों बच्चों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव है। इसलिए बच्चों को अपने घर में रखने के लिए संक्रमण का कोई खतरा नहीं है इसके बावजूद किसी पड़ोसी का दिल नहीं पसीजा और हार थककर मिस्टर वर्मा बच्चों को भी अपने साथ अस्पताल ले जाने के लिए मजबूर हो गये।
जब खेत की सुरक्षा के लिए लगाई गई बाड़ ही खेत की फसल खाने लगे तो उस खेत की फसल को उजड़ने से कौन बचा सकता है। मानवता को शर्मशार कर देने वाली इसी प्रकार की घटना राजधानी के एक नामचीन अस्पताल में हुई। वहां आईसीयू वार्ड में तैनात दो पुरुष नर्सों पर रेमडेसिविर इंजेक्शन के स्टाक को सम्भालने तथा गम्भीर मरीजों के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन इश्यू करने का जिम्मा था। उन दोनों ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने का नायाब तरीका निकाला। वे पता कर लेते थे कि आज अस्पताल में कितने लोगों की मौत हुई है। फिर वे स्टाफ से उतने ही इंजेक्शन उन मृत मरीजों के नाम पर इश्यू कर देते थे और उन इंजेक्शनों को दलालों द्वारा पचास-पचास हजार रुपए में बेच देते थे। अस्पताल में मरीज समय पर इंजेक्शन न मिल पाने के कारण दम तोड़ रहे थे और वे मुर्दों के नाम पर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने में लगे हुए थे। उनकी आत्मा शायद मर चुकी थी। आखिर वे एक दिन कालाबाजारी करते हुए पकड़े गये और जेल में सलाखों के पीछे है मगर उन्होंने अपने घिनौने कृत्य से न जाने कितने मरीजों को मौत के मुंह में ढकेल दिया होगा।
रामकरन सिंह की पत्नी को कई दिन से बुखार आ रहा था। वे गांव में रहते थे और मध्यमवर्गीय किसान थे। वे अपनी पत्नी की जांच कराने गांव से चालीस किलोमीटर दूर जिला अस्पताल लेकर गए। जांच में उनकी पत्नी की रिपोर्ट कोरोना पाॅजिटिव आई। डाक्टर साहब ने उनकी पत्नी को तीन सौ बैड वाले सरकारी अस्पताल में रेफर कर दिया और रामकरन सिंह की पत्नी को तुरन्त वहां के कोविड अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहा। रामकरन सिंह बहुत घबरा गए वह मोटर साइकिल पर पत्नी को लेकर कोविड अस्पताल पहुंचे। उन्होंने जिला अस्पताल के डाक्टर का पास और जांच रिपोर्ट रिसेप्शन पर जमा कर पत्नी को भर्ती करने की प्रार्थना की। ंवहां कई घंटे तक प्रतीक्षा कराने के बाद उनको बताया गया कि यहां इस समय कोई बैड खाली नहीं है आप इन्हें किसी प्राइवेट अस्पताल में ले जाकर भर्ती कराइये। रामकरन सिंह ने सबकी बहुत मिन्नतें की मगर उनकी गुहार किसी ने नहीं सुनी।
हार थक कर वे पत्नी को लेकर कई प्राइवेट कोविड अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। मगर हर जगह उन्हें यही जवाब मिला कि यहां इस समय कोई बैड खाली नहीं है। आखिर में एक एजेन्ट के माध्यम से एक अस्पताल में बात बन गई मगर एजेन्ट ने बताया कि डाक्टर साहब एक बैड का चार्ज प्रतिदिन बीस हजार से कम लेने को तैयार नहीं हंै। यह सुनकर रामकरन के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। मगर मामला पत्नी की जिन्दगी का था इसलिए वह इलाज कराने को तैयार हो गये। उन्होंने दलाल से कहा कि इस समय तो मेरे पास केवल दो हजार रुपये हैं यह रख लो। डाक्टर साहब से कहो कि वह इलाज शुरू कर दें मैं कल पैसों का इन्तजाम करके आ जाऊंगा, मगर एजेन्ट इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने कहा एक दिन का पूरा पैसा एडवांस जमा करना होगा। रामकरन ने बहुतेरी खुशामद की मगर वह टस से मस नहीं हुआ। हार कर रामकरन उससे कल भर्ती की बात कह कर पत्नी के साथ वापस आ गए। उधर पूरे दिन दौड़ा-भागी में पत्नी की हालत और बिगड़ गई।
अगले दिन वह पत्नी के जेबर लेकर शहर आये। जेबर बेचकर वे रुपए लेकर अस्पताल पहुंचे। बीस हजार रुपए एजेन्ट को देकर पत्नी को अस्पताल में भर्ती करा दिया। मगर तब तक इन्फेक्शन उसके फेफड़ों में पहुंच चुका था। लाख कोशिशों के बाद भी उसकी पत्नी को बचाया नहीं जा सका। इन तीन दिन में रामकरन की सारी जमा पूंजी भी स्वाहा हो चुकी थी।
रघुवर दयाल कोविड अस्पताल में भर्ती थे। इलाज के दौरन उनकी मृत्यु हो गई। अस्पताल वालों ने दिए हुए नम्बरों पर उनके घर पर उनकी मृत्यु की सूचना दी और शव अस्पताल से ले जाने के लिए कहा। जब वहां से कोई शव लेने नहीं आया तो अगले दिन स्वास्थ्य कर्मचारी एम्बुलेंस पर शव लेकर दिए हुए पते पर पहुंचे। तब तक रघुवर दयाल का छोटा बेटा बंगलौर से आ चुका था। उसने स्वास्थ्य कर्मियों की मदद से किसी तरह शव को एम्बुलेंस से नीचे उतरवाया। उसने परिवारीजनों एवं पड़ोसियों से शव की अन्त्येष्टि हेतु सहयोग करने का अनुरोध किया। मगर संक्रमण के भय से कोई भी सहयोग के लिए आगे नहीं आया। परिवारीजन भी कोई न कोई बहाना बनाकर किनारा करते नजर आए। रघुवर दयाल अपने जीवन में बड़े सोशल और व्यावहारिक रहे थे। उन्होंने सैंकड़ों लोगों की अर्थी को कन्धा दिया था मगर उनकी अर्थी को कन्धा देने के लिए चार लोग भी नसीब नहीं हुए। हार थक कर बेटे ने बीस हजार रुपए देकर चार लोगों को अर्थी को कन्धा देने के लिए बुलाया और इक्का-दुक्का परिवारीजनों की उपस्थिति में किसी तरह अपने पिता की अन्त्येष्टि सम्पन्न कराई।
यह घटनाएं कोरोना की आपदा में समाज की संवेदनहीनता को बखूबी बयां करती हैं। इसके अतिरिक्त गंगा में सैंकड़ों शवों का बहना तथा गंगा के किनारे रेत में शवों को दफन किये जाने की घटनायें मानवता को शर्मशार कर देने वाली हैं। कोरोना का यह कैसा भय है जिसने हमारी भावनाओं और संवेदनाओं को कुन्द कर दिया है। आपदा के इस कठिन दौर में कुछ घटनाएं इसके उलट भी देखने को मिली हैं जो बताती हैं कि इंसान में इंसानियत अभी बाकी है।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बरेली
मोबाइल नं. 9411422735,
E-mail : sureshbabubareilly@gmail.com
बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !