“ऑनर किलिंग” पर SC का बड़ा फैसला, खाप नहीं रोक सकती 2 व्यस्कों की शादी

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देश में बढ़ती ऑनर किलिंग की घटनाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त और बड़ा फैसला सुनाया है । SC ने ऑनर किलिंग मामले पर फैसले करते वक्त कहा, खाप पंचायतें लोगों की निजी जिंदगी में दखल देती हैं और हमारी राय में यह पूरी तरह से गैरकानूनी है, जिसे रोका जाना चाहिए ।

SC ने राज्य सरकारों को इज्जत के नाम पर होने वाले कत्ल यानी ऑनर किलिंग रोकने के लिए सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायत का किसी भी शादी पर रोक लगाना अवैध है।इसके आगे, कोर्ट ने कहा कि अगर कोई भी संगठन शादी को रोकने की कोशिश करता है, तो वह पूरी तरह से गैर कानूनी है।

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ऑनर किलिंग मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ऑनर किलिंग को IPC में हत्या के अपराध के तहत कवर किया जाता है, साथ ही ऑनर किलिंग को लेकर लॉ कमिशन की सिफारिशों पर विचार हो रहा है. इस संबंध में 23 राज्यों के विचार प्राप्त हो चुके हैं।

 

 

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क्या है “ऑनर किलिंग”
किसी बालिग व्यक्ति का दूसरी जाति में शादी करना या अपनी ही जाति में समान गोत्र वाले लड़के या लड़की से शादी करने की वजह से परिवार वालों के गुस्से का शिकार होते हुए हत्या कर दिया जाना । ऑनर किलिंग कहलाती है । आपको बता दें कि देेश के हिस्सों में मौजूद खाप पंचायतें भी इस ऑनर किलिंग के लिए जिम्मेदार पाई जाती हैं ।

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क्या हैं खाप पंचायत
खाप पंचायतें दरअसल प्राचीन समाज का वह रूढ़िवादी हिस्सा हैं, जो आधुनिक समाज और बदलती हुई विचारधारा से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है। इसका जीता जागता प्रमाण पंचायतों के मौजूदा स्वरूप में देखा जा सकता है, जिसमें महिलाओं और युवाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। यदि इन पंचायतों की मानसिकता और इनके सामाजिक ढांचों पर ध्यान दिया जाए, तो चौंका देने वाले आंकड़े सामने आते हैं, जो बेहद ही चिंताजनक हैं। उदाहरण के तौर पर पूरी खाप पंचायतों के एरिया (हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में महिला-पुरूष का लिंग अनुपात सबसे खराब है, जबकि इन इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या का औसत राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। इससे साफ जाहिर होता है कि खाप पंचायतों का मूल चरित्र नारी विरोधी है। यही कारण है कि पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर होती महिलाएं और उनकी मनमर्जी से होने वाली शादियां हमेशा से इनकी आंख का कांटा रही हैं।

नहीं है प्रशासनिक स्वीकृति हासिल
खाप पंचायतों का चलन उत्तर भारत में ज्यादा नजर आता है। लेकिन ये कोई नई बात नहीं है ये तो पुराने समय से चलता आ रहा है। जैसे-जैसे गांव बसते गए वैस-वैसे इस तरह की रिवायतों बनतीं गईं। ये मानना पड़ेगा कि हाल फिलहाल में इज्जत के नाम पर हत्याओं का चलन ज्यादा ही बढ़ गया है। खाप पंचायतें भी पारंपरिक पंचायतें ही हैं जिन्हें कोई प्रशासनिक मान्यता प्राप्त नहीं है।

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खाप पंचायतें इस तरह करती हैं काम

एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। ये फिर पांच गावों की हो सकती है या 20-25 गांवों की भी हो सकती है। मेहम बहुत बड़ी खाप पंचायत और ऐसी और भी पंचायतें हैं। जो गोत्र जिस इलाके में ज्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज्यादा दबदबा होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है। सभी गांव निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं…और जो भी फैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला बताया जाता है और ये सभी के पत्थर की लकीर मान ली जाती है।

गौरतलब है कि अभी छह राज्यों के विचार आने बाकी हैं. केंद्र ने कहा कि कोर्ट सभी राज्यों को हर जिले में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए स्पेशल सेल बनाने के निर्देश जारी करे। अगर कोई युगल शादी करना चाहता है और उसे जान का खतरा है, तो राज्य उनके बयान दर्ज कर कार्रवाई करे. केंद्र ने कहा कि वो खाप पंचायत शब्द का इस्तेमाल नहीं करेगा।

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