हिन्दी प्रदेश के नौजवान अपने पिता से पूछे, हाल में कौन सी किताब पढ़ी है!

2019-2020 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी. प्रधानमंत्री मोदी भी इस मौक़े को बड़े ईवेंट के रूप में मनाने का

एलान कर चुके हैं.

हिन्दी प्रदेश के नौजवान अपने पिता से पूछे, हाल में कौन सी किताब पढ़ी है!

2019-2020 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी. प्रधानमंत्री मोदी भी इस मौक़े को बड़े ईवेंट के रूप में मनाने का एलान कर चुके हैं. ज़ाहिर है मीडिया के स्पेस में तरह-तरह के गांधी गढ़े जाएंगे. उनमें गांधी नहीं होंगे. उनके नाम पर बनने वाले कार्यक्रमों के विज्ञापनदाताओं के उत्पाद होंगे. गांधी की आदतों को खोज खोज कर साबुन तेल का विज्ञापन ठेला जाएगा. हम और आप इसे रोक तो सकते नहीं.

आपने देखा होगा कि 1917 के चंपारण सत्याग्रह को कितने अश्लील तरीक़े से मनाया गया. करोड़ों रुपये फूंक दिए गए. अच्छा है कि अभी से आप थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर गांधी के बारे में पढ़ें. उन्हें लेकर होने वाली बहसों के लिए ख़ुद को तैयार करें. वर्ना डेढ़ सौ साल के नाम पर अख़बारों में इंडियन ऑयल और रेल मंत्रालय के विज्ञापनों और रन फ़ॉर गांधी जैसे नाटकीय और चिरकुट कार्यक्रमों से ही संतोष करना होगा.  अब यही हमारी नियति है तो क्या किया जाए.

इन दोनों ही खंडों में गांधी की हत्या के दस महीने पहले की उनकी प्रार्थनाओं का संकलन आप पढ़ सकते हैं. 1 अप्रैल 1947 से लेकर 29 जनवरी 1948 के बीच उनकी प्रार्थनाओं का ख़ास महत्व है. देश बंटने और आज़ाद होने के साथ हिन्दू मुस्लिम दंगों के ज़हरीले धुएं में खो गया था. गांधी अपनी जलती आंखों से सब देख रहे थे. अपनी प्रार्थनाओं में वे ख़ुद तो टिके ही रहे, उस समय के समाज को टिकाए रखने के लिए खड़े रहे.

224 प्रार्थनाओं का संकलन है. ख़ुद पढ़ने और पुरस्कार से लेकर तोहफ़े में देने के लिए यह दोनों ही खंड शानदार हैं. रज़ा फ़ाउंडेशन और राजकमल प्रकाशन ने मिलकर छापा है. 1500 रुपये में 778 पन्नों की यह किताब गांधी को समझने के लिए बेहतर तरीक़े से तैयार करेगी.

आपको एक नेक सलाह देता हूं. दैनिक रूप से मीडिया का कम से कम उपभोग करें. सीमित. मीडिया आपका उपभोग कर रहा है. जानने के नाम पर केवल समय बीतता है और जानकारी भी ठोस नहीं मिलती है. दिन के कई अहम घंटे और जिंदगी के कई साल बर्बाद हो जाते हैं. मीडिया से बचे बाकी समय में विषयवार अध्ययन कीजिए. दो तीन विषय को लें और उससे संबंधित कम से कम पांच से छह किताब पढ़ें. साल में कम से कम चार विषयों के साथ ऐसा अभ्यास करें. आप बेहतर इंसान बनेंगे. मैं जल्दी ही गांधी पर पढ़ने वाली कुछ किताबों की सचित्र सूची पेश करूंगा. आपको याद होगा कि कश्मीर पर ढेर सारी किताबों की सचित्र सूची पेश की थी.

आप ऐसा करेंगे, मुझे कोई भ्रम नहीं है. क्या आपने घरों में पिता को पढ़ते देखा है? मां तो काम ही करती रहती होंगी. दफ्तर से लौटकर पिता लोग क्या करते हैं? पढ़ाई लिखाई साढ़े बाइस, केवल रौब झाड़ते होंगे. बिना पढ़े हर चीज़ों पर अंतिम ज्ञान देते होंगे. इसलिए अपने पिता को प्यार से टोका कीजिए. उनसे पूछिए कि नौकरी में आने के बाद आपने कौन सी किताब पढ़ी है? दहेज़ के पैसे का क्या क्या किया? उन्हें अच्छी किताबों के नाम बताएं. उनके साथ में आप भी पढ़िए.

मेरा मानना है कि हिन्दी प्रदेश के पिताओं ने समाज में नर्क मचा रखा है. माएं इतनी प्यार और मेहनत से जो भी बनाती हैं सब इन पिताओं के कारण पानी में बह जाता है. आप ग़ौर से देखिए, नहीं पढ़ने वाले पिता कितने झेल होते हैं. सांप्रदायिक तो होते ही हैं. पिता हैं तो प्यार से ही पूछिएगा. किसी को अपमानित नहीं करना चाहिए. धीरे से पूछिए डैड थोड़ा आप भी पढ़ा करो न. मां को भी किताबें दीजिए. कुछ पिता तो बच्चों को पढ़ाने के चक्कर में दोबारा से मैट्रिक कर रहे होते हैं, ऐसे गुडी गुडी डैड से भी कहिए कि डैड कूल गांधी जी पर कुछ पढ़ते हैं न. डैड पढ़ेंगे, देश बढ़ेगा. ये मेरा नारा है.

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