बेबसी
लाॅकडाउन में थोड़ी देर के लिए खुली हवा में घूमने के लिए गुप्ता जी मेन रोड पर आ गए। आजकल वाहनों की आवाजाही बन्द होने के कारण रोड पर सन्नाटा पसरा हुआ था।
गुप्ता जी मुश्किल से एक फर्लांग चल पाए होंगे कि तभी सामने से आ रहे एक नौजवान ने अपनी मोटर साइकिल बिल्कुल उनके पास आकर रोक दी।
“क्या बात है ?“ गुप्ता जी ने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखते हुए पूछा।
“अंकल जी! मैं गुड़गांव में एक कम्पनी में काम करता हूँ। मेरा परिवार प्रतापगढ़ में रहता है। आज सुबह घर से फोन आया कि पिताजी का स्वर्गवास हो गया है तुम जल्दी घर आ जाओ। लाॅकडाउन में घर जाने का और कोई साधन नहीं था इसलिए मैं गुड़गांव से अपनी मोटरसाइकिल से ही घर जाने के लिए निकल पड़ा।“
यह कहकर वह चुप हो गया। उसके चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव साफ झलक रहे थे।
“फिर तुम मुझसे क्या चाहते हो ? गुप्ता जी ने उसकी ओर देखते हुए पूछा।
कुछ देर तक वह संकोच में खड़ा रहा फिर हिचकिचाते हुए वह बोला-“अंकल जी लाॅकडाउन के कारण जगह-जगह इतनी बार चेकिंग हुई और इतनी खाना पूरी करनी पड़ी कि गुड़गांव से यहां तक पहुंचने में दस घंटे लग गए। मेरी जेब में जो रुपए थे वह भी इस खाना पूरी की भेंट चढ़ गए। अब ना जेब में रुपए हैं और ना बाइक में पेट्रोल। अब पिता जी के अन्तिम संस्कार से पहले घर कैसे पहुंचूंगा मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप से विनती है कि आप मुझे पाँच सौ रुपए दे दें। वह बहुत ही याचनापूर्ण स्वर में बोला।
गुप्ता जी सोच में पड़ गये। उसके चेहरे और उसकी बातों से लग रहा था कि उसकी बातों में सच्चाई है।
मुझे असमंजस में देखकर वह बोला-“अंकल जी आपको शायद मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है। देखिए यहां मेरी कम्पनी द्वारा जारी मेरा आइडेन्टिटी कार्ड और यह है मेरा प्रतापगढ़ का आधार कार्ड।“ पर्स मंे से निकाल कर दोनों चीजें मुझे दिखाते हुए वह बोला।
अब गुप्ता जी को उसकी सच्चाई पर पूरी तरह विश्वास हो गया था। उन्होंने सोचा कि प्रतापगढ़ अभी चार सौ किलोमीटर दूर है पांच-छः सौ रुपए तो पेट्रोल में ही खर्च हो जायेंगे, फिर इसको रास्ते में खाने के लिए भी तो कुछ चाहिए। वे पांच-पांच सौ के दो नोट उसे देते हुए बोले-“यह लो बेटा यह एक हजार रुपए रख लो सफर में तुम्हारे काम आयेंगे।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अंकल जी। मैं आपका यह अहसान कभी नहीं भूलूंगा।“ यह कहते-कहते उसकी आँखों में आंसू आ गए थे।
उसकी बेवसी पर गुप्ता जी की आँखें भी नम हो गई थीं।
सुरेश बाबू मिश्रा
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बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !