भारत माता की सेवा हेतु सर्वाधिक प्रतिष्ठित पद त्याग दिया था- जगदीश चन्द्र सक्सेना

स्वतंत्रता आन्दोलन के महानायक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा की राजधानी कटक में सुप्रसिद्ध वकील जानकीदास बोस के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका बाल्यकाल कटक में ही बीता। कहते हैं कि उनको बचपन से आध्यात्मिक साधना में रुचि थी और वे अपनी मां से महाभारत व रामायण की कथाएं सुना करते के। उन्हें काशी, और हरिद्वार आदि तीर्थों में घूमते रहने व भ्रमण करने का भी शौक था। बीए पास करने के बाद पिता जानकीदास बोस ने उन्हें आईसीएस करने के लिए लन्दन भेजा, जहां उन्होंने उक्त प्रतिष्ठित परीक्षा पास भी कर ली। लेकिन जब उन्हें सरकारी पद पर नियुक्त किया गया, तो उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया और त्यागप़त्र देते हुए भारत मंत्री को लिखा कि ‘जो सरकार मेरे देश पर अत्याचार कर रही है, मैं उसकी सेवा का कोई पद स्वीकार नहीं कर सकता।’

इसके बाद स्वदेश लौटकर उन्होंने कलकत्ता 6अब कोलकाता8 में स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख नेता देशबन्धु चितरंजन दास से जुडक़र राजनीतिक जीवन आरम्भ किया। वे 1921 में पहली बार बंगाल प्रान्त के स्वयंसेवक दल के सेनापति होने के कारण गिरफ्तार किये गये। उसके बाद तो उनकी जेल यात्राएं लगातार चलती रहीं। अंग्रेज सरकार उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती थी और स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहती थी। अंतत: उन्हें बिना मुकदमा चलाये अनिश्चितकाल के लिए नजरबन्द कर दिया गया और 1924 में माडला जेल भेज दिया गया। दो वर्ष बाद बीमार होने के बाद उन्हें जेल से छोड़ दिया गया तो स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते-करते उन्हें फिर जेल जाना पड़ा। कलकत्ता के मेयर चुनाव में वे जेल से चुने गये। उनकी लोकप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महात्मा गांधी के विरोध के बावजूद वह कांग्रेस अध्यक्ष चुने गये।

सन् 1940 में उन्हें फिर उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया, लेकिन वे वहां से भेष बदलकर अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहुंच गये, जहां देश की आजादी के लिए आजाद सेना संगठित की। वहां से जापान व फिर वर्मा पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द सरकार तथा उसका मंत्रिमंडल भी बनाया।

दुर्भाग्य से जापान के विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद 1945 में सिंगापुर से जापान जाते हुए हवाई दुर्घटना में उनका निधन होगया, जिसे लेकर आज भी अनेक रहस्यमय बातें कही जाती हैं। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान एक समय उन्होंने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा था, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’। उनके त्याग और संघर्ष से आज हम आजाद हैं, किन्तु अभी हमारे सामने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक चुनौतियां खड़ी हैं। जात-पांत, साम्प्रदायिकता, भेदभाव और आर्थिक विषमता के कारण जनता अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित है। इस चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें नेता जी से प्रेरणा लेनी चांहिये।

अदम्य साहस व शौर्यसम्पन्न नायक के तौर पर नेता जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व ऐसा है, जो देश, विशेष रूप से युवाओं को, युगों युगों तक प्रेरणा देता रह सकता है।

 

 

बरेली से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट !

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