घोर कलयुग यहाँ सामने है खड़ा, गीत -उपमेंद्र सक्सेना एड०
जो मिला आज बेबस उसे ठग लिया, वायरस का बना भूत पीछे पड़ा
हो रहा हाय अंधेर इतना अधिक, घोर कलयुग यहाँ सामने है खड़ा।
वस्तुओं में मिलावट हुई इस कदर, लोग अब रोग का आक्रमण झेलते
फिर जमाखोर भी कुछ नहीं सोचते, जान से दूसरों की यहाँ खेलते
सज्जनों की व्यथा कौन समझे भला, हाय पापड़ यहाँ वे मिले बेलते
क्यों न यमराज भी आज संज्ञान लें, और डंडे न वे दुष्ट के पेलते
क्यों बढ़ाई गई खूब दौलत उधर, और कोई इधर भूख से है लड़ा
हो रहा हाय अंधेर इतना अधिक, घोर कलयुग यहाँ सामने है खड़ा।
निर्बलों को सताते रहे जो सदा,लोग उनको बड़ा आदमी अब कहें
सत्य को झूठ से जीतकर वे यहाँ, हर समय ऐंठ में अब भरे ही रहें
वे न फरियाद सुनते किसी की कभी, पीड़ितों के सदा हाय आँसू बहें
नीतियाँ जब अनैतिक हुई हैं यहाँ, आस्थाएँ स्वयं वेदना को सहें
स्वच्छ वातावरण अब घिनौना हुआ, क्योंकि सद्भाव भी आज जमकर सड़ा
हो रहा हाय अंधेर इतना अधिक, घोर कलयुग यहाँ सामने खड़ा है।
है न संवेदना अब कहीं दिख रही, हाय बगुला भगत अब कमाई करें
चल रहा नाम बस आज उपचार का, मौत देते हुए भी नहीं वे डरें
और उल्लू बने लोग जो हैं यहाँ, हाय घर बेचकर आज बिल वे भरें
हो गए लोग अब मतलबी हैं बहुत, वे भला क्यों किसी के दु:खों को हरें
छल -कपट अब यहाँ सभ्यता से जुड़ा, नासमझ क्यों भला आज जिद पर अड़ा
हो रहा हाय अंधेर इतना अधिक, घोर कलयुग यहाँ सामने है खड़ा।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’ बरेली (उ० प्र०)
मोबा०-98379 44187
(प्रकाशित एवं प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)
बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !