आजाद भारत के नए अंग्रेज बनते कॉर्पोरेट्स
जब देश को अंग्रेजों से आजादी मिली थी तो संबे यही सोचा था कि एक लोकतंत्र वाले देश अब आम आदमी के हितों का ख्याल रखा जायेगा, बेरोजगारी दूर होगी, अमीर गरीब के बीच का अंतर कम होगा, सामजिक समानता आयेगी. लेकिन क्या ऐसा हुआ. बिल्कुल नहीं.
अंग्रेज भले ही देश छोडक़र चले गए हों लेकिन आज आजाद भारत के नए अंग्रेज कॉर्पोरेट, उद्योगपति और बिजनिस घरानों की शक्ल में देश के सारे संसाधनों को लूट रहे हैं. सरकार चाहे कोई भी हो, हमेशा उन लोगों के हितों का ध्यान रखती हैं. हमेशा अदानी, अम्बानी, टाटा बिरला जैसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने देश की परदे के पीछे से बागडोर संभाली हैं. तेल से लेकर टेलीकॉम, गैस से लेकर स्टील व कोयला हर एक संसाधन निजीकरण के जरिये आम जनता से छीने गए हैं. सरकार रेल से लेकर पानी और हवा तक का निजीकरण कर कॉरपोरेट घरानों के हाथों सब कुछ से वैसे ही सौंप देना चाहती हैं जी कभी अंग्रेजों के हाथ देख की सत्ता और संसाधन थे. सारे देश में इन्हीं की मोनोपिली है. इस से सम्बंधित एक्ट भी कारगर नहीं हो रहा है, तो इस में कहीं न कहीं सरकार दोषी है. भाजपा से ज्यादा दोषी कांग्रेस है क्योंकि आजादी के बाद से करप्शन और कॉर्पोरेट का घालमेल इन्हीं के समय से शुरू हुआ तभी से पोषित हो रहा है. ऐसे हालातों को देखकर क्या यह नहीं कहा जा सकता है कि आजाद भारत के नए अंग्रेज आज भी आम जनता के हिस्से की कमाई लूट रहे हैं. यह स्थिति बदले तभी हम सही मायनों में खुद को आजाद कह सकते हैं.
घोटालेबाजों पर कड़ा कानून क्यों नहीं.
अभी जोर शोर से देश में जीएसटी लागू हुआ. सरकार ने भी खूब अपनी पीठ थपथपाई. और तो और जीएसटी के तहत सही टैक्स न भर पाने वाली कारोबारियों के लिए कड़े कानून भी बना दिए. जीएसटी जितना पेचीदा था कानून भी उतने पेचीदा बने. कई मामलों में तो जेल जाने तक का प्रावधान है. लेकिन एक सवाल सरकार के लिए यह भी है कि जितनी सख्ती से आपने जीएसटी को लागू करने में तत्परता दिखाई है उतनी सख्ती से देश को घोटालेबाजों से आजादी दिलाने में तत्परता क्यों न नहीं दिखाते. क्यों देश के बड़े बड़े घोटाले बाजों को राजनीतिक प्रश्रय मिलता है. चाहे वो यादव सिंह का मामला हो या लालू प्रसाद यादव हो. देश का बच्चा बच्चा तक जान चुका है कि घोटाले कौन कर रहा है और किसके पैसों की लूट होती है उसके बावजूद आजतक किसी बड़े और नामी घोटालेबाज को फांसी या उम्र कैद जैसी सख्त सजा नहीं सुनाई ताकि आगे से कोई घोटाला करने से पहले दस दफा सोचें.
सुरेश कलमाडी हो या विजय माल्या, भोपाल को कोई करप्ट करोड़पति क्लर्क हो या यादव सिंह सरीखा घोटालेबाज, 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटालेबाज हों याा तेलगी काण्ड की बात, कॉमनवेल्थ का मसला हो या कोयला घोटाला, चारा हो या बोफोर्स. आरएसएस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर 2000 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया है.
किसी भी केस में असली गुनाहगारों को सख्त सजा नहीं मिली. इसीलिए आजतक घोटाले हो रहे हैं. सरकारी सरपरस्ती में हो रहे हैं. कोई किसी नेता के रिश्तेदार से मिलकर घोटाला कर रहा है तो कोई कसी नेते के हाथ के दम पर चोरी कर रहा है. मामला खुलता है तो थोड़े दिनों की रिमांड और जांच कमेटियों का ढोंग रचा जाता है लेकिन ठोस कदम नहीं उठाया जाता. जीएसटी में टैक्स बचने वाली कारोबारी तो कम से कम पाना पैसा बचा रहे हैं, फिर भी उन्हें सजा मिल रही है लेकिन घोटालेबाज तो देश के हर गरीब की आधी कमाई पर गिद्ध बनकर बैठे हुए हैं. अगर समय रहते इन पर कानूनी सख्ती नहीं की गयी तो हमें सही मानों में आजादी नहीं मिलेगी. घोटालेबाजों से मिली आजादी ही सही मानों में आजादी होगी. वर्ना देश को नए अंग्रेज और घोटालेबाज फिर से गरीबी और भ्रष्टाचार की गुलामी में जकड़ लेंगे.
सरकार नई पर घोटाले वही
आज़ाादी के बाद से बननी शुरू हुई घोटालों की फ़ेहरिस्त में इस बार भी कई बड़े घोटाले शामिल हुए हैं। जहाँ एक तरफ देश की कमान सम्भाल रहे नरेन्द्र मोदी ‘मेक इन इण्डिया’, ‘स्किल इण्डिया’ जैसे नारे देकर सबके विकास का राग अलाप रहे हैं, वहीं इसी राग के साथ देश के नेता-नौकरशाह जनता की कमाई से ऐय्याशी के बाद भी अपनी धुन में घोटाले किये जा रहे हैं। ललित गेट घोटाला, पंकजा मुण्डे घोटाला, तावड़े घोटाला, व्यापम घोटाला, खनन विभाग में घोटाला, राष्ट्रीय शहरी आजीविका योजना (एन.यू.एल.एम.) घोटाला और अब सबको पीछे छोड़ते हुए पनामा मामले का भी नाम आया है। इस प्रकार से कई बड़े घोटाले बुर्जुआ मीडिया की ‘मेहरबानी’ के चलते जनता के सामने आये हैं। इस बार हुए घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं की फ़ेहरिस्त में हुई बढ़ोत्तरी ने साबित कर दिया है कि सरकार बेशक नयी है लेकिन घोटालों की रफ्तार वही है।
इस लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी पर 10,000 करोड़ से अधिक लगाने वाले पूँजीपति वर्ग को तोहफे देने की शुरुआत सरकार ने पहला बजट आने से ही कर दी थी जिसमें शिक्षा, रोजगार आदि के मद में भारी कटौती के बाद बजट का बड़ा हिस्सा (5.90 लाख करोड़) इस देश के पूँजीपति वर्ग को कर माफी, बिजली माफी व अन्य रियायतों के रूप में दे दिया गया था। अब घपलों-घोटालों, कमीशनखोरी, दलाली, घूस आदि के द्वारा उनकी सेवा करने के साथ-साथ इस देश के नेताओं-नौकरशाहों द्वारा अपनी सात पीढिय़ों के जीविकोपार्जन का इन्तजाम भी बखूबी किया जा रहा है।