FILMY DUNIYA-मीनाकुमारी की 88वीं जन्मजयंती पर विशेष -हिंदी फिल्मों की ट्रेजडी क्वीन !

मीना कुमारी उर्फ़ “महजबी बानो “का जन्म 1 अगस्त1932 को हुआ था ! महजबी बानो जिसे हम – आप ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी के नाम से जानते हैं। मजहबीं बानो तीन बहनें थी !
बड़ी बहन खुर्शीद और छोटी मधु ! मजहबीं बानो मुफ़लिसी के कारणवश महज़ चार वर्ष की उम्र मे पहली फ़िल्म “लेदर फ़ेस” जिसके निर्देशक थें विजन भट्ट मे काम करना पड़ा जिसके लिये उन्हें बतौर परिश्रमिक महज़ पच्चीस रुपये मिलें और फिर मुफ़लिसी के दौर मे कैमरे से दोस्ती बढ़ती गयी आठ वर्ष की उम्र मे दो फ़िल्में और मिली “एक ही भूल”और “पूजा” साथ ही साथ गानें का भी शौक़ महजबीं बानो को रहा ! इस तरह महजबीं बानो ज़िन्दगी से जद्दोजहद करने लगी। मीना कुमारी की कोई औपचारिक शिक्षा-दीक्षा नही हुई लेकिन घर पर ही ऊर्दू, अंग्रेज़ी, हिन्दी की शिक्षा प्रबंध उनके पिता ने घर पर ही कर दिया। लेकिन मीना कुमारी का बचपन झंझावतो के दौर से गुज़र रहा था ! माँ – बाप के कलह और दिन भर काम के बोझ के बाद रात की तन्हाइयों मे दिल के दर्द को शायरी की शक्ल मे उकेरने लगी मीना कुमारी! तभी महज़ चौदह वर्ष की उम्र मे उनकी माँ का कैंसर से निधन हो गया। अब मीना कुमारी को पैसों के लिये हर तरह की फ़िल्मों में काम किया उन्हें उस दौर मे अधिकांशतः सी ग्रेड की फ़िल्में ही मिला करती थी फिर भी सराहा गया ! 1950 के आस – पास ओमी वाडिया की फ़िल्म “अलादीन का चिरांग” के लिये उन्हें बतौर परिश्रमिक दस हज़ार मिलें और तब जाकर उन्होंने अपनी पहली कार खरीदी और मुम्बई की सड़कों पर ड्राईविंग का शौक पूरा किया। उसी दौर मे आयी अशोक कुमार की फ़िल्म “तमाशा” जो बहुत नही चली,मीना कुमारी को एक रोल मिला और वही सेट पर पहली बार उनसे कमाल अमरोही की मुलाक़ात हुई। कुछ महिनों बाद निर्देशक कमाल अमरोही ने अपनी फ़िल्म “अनारकली” के लिये मीना कुमारी को अपने सेक्रेट्री से पैग़ाम भिजवाया और मीना कुमारी मान गयी !तमाम जद्दोजहद के बाद फ़िल्म के निर्माता ने उन्हें पन्द्रह हज़ार रुपये मे साईनिंग अमाउंट दिया ! इस फ़िल्म को पाकर मीना कुमारी बहुत खुश थी ! लेकिन तभी पुणे मे कार एक्सीडेंट कर बैठी और हास्पिटलाईज़ होना पड़ा और इसी दौर मे तबियत का हाल जानने के लिये कमाल अमरोही का मुम्बई आना-जाना शुरु हुआ और यही से मोहब्बत की शुरुआत हुई ! इधर “अनारकली” के निर्माता की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी और फ़िल्म हमेशा-हमेशा के लिये डिब्बे मे बन्द हो गयी। फिर वह तारीख़ आयी 14 फरवरी 1952 को हमेशा की तरह मीना कुमारी के पिता अली बख़्श उन्हें व उनकी छोटी बहन मधु को रात्रि 8 बजे पास के एक भौतिक चिकित्सकालय (फिज़्योथेरेपी क्लीनिक) छोड़ गए। पिताजी अक्सर रात्रि 10 बजे दोनों बहनों को लेने आया करते थे। उस दिन उनके जाते ही कमाल अमरोही अपने मित्र बाक़र अली, क़ाज़ी और उसके दो बेटों के साथ चिकित्सालय में दाखिल हो गए और 19 वर्षीय मीना कुमारी ने पहले से दो बार शादीशुदा 34 वर्षीय कमाल अमरोही से अपनी बहन मधु, बाक़र अली, क़ाज़ी और गवाह के तौर पर उसके दो बेटों की उपस्थिति में निक़ाह कर लिया। 10 बजते ही कमाल के जाने के बाद, इस निक़ाह से अपरिचित पिताजी मीना को घर ले आए। लेकिन मीना कुमारी के पिता को किसी तरह इस बात खबर लग गई मीना कुमारी पर पिता ने कमाल से तलाक़ लेने का दबाव डालना शुरू कर दिया। मीना ने फ़ैसला कर लिया की तब तक कमाल के साथ नहीं रहेंगी जब तक वो पिता को दो लाख रुपये न दे दें। पिता अली बक़्श ने फ़िल्मकार महबूब ख़ान को उनकी फ़िल्म “अमर” के लिए मीना की डेट्स दे दीं परंतु मीना “अमर” की जगह पति कमाल अमरोही की फ़िल्म “दायरा” में काम करना चाहतीं थीं। इस पर पिता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे पति की फ़िल्म में काम करने जाएँगी तो उनके घर के दरवाज़े मीना के लिए सदा के लिए बंद हो जाएँगे। 5 दिन “अमर” की शूटिंग के बाद मीना ने फ़िल्म छोड़ दी और “दायरा” की शूटिंग करने चलीं गईं। उस रात पिता ने मीना को घर में नहीं आने दिया और मजबूरी में मीना पति के घर रवाना हो गईं। अगले दिन के अख़बारों में इस डेढ़ वर्ष से छुपी शादी की ख़बर ने ख़ूब सुर्खियां बटोरीं।लेकिन इसी दौर मे मीना कुमारी की दो फ़िल्में रिलीज़ हुई एक “फ़ूटपाथ” और दूसरी “बैजू – बावरा” और इन फ़िल्मों ने मीना कुमारी का स्टारडम सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। बाद मे पिता से बगावत करके मीना कुमारी कमाल अमरोही के साथ रही लेकिन तन्हाइयों ने वहा भी उनका साथ नही छोड़ा और एक औलाद की उनकी इच्छा नही पूरी हो सकी ! खैर कमाल अमरोही की “पाकीज़ा’ मे वाकई मे इस ट्रेजेडी क्वीन ने दमदार अभिनय करके इस फ़िल्म को अमर कर दिया। ज़िन्दगी भर तन्हाइयों और अपनों से चोट खा- खा कर शराब के नशे मे चूर होकर इस जिस्म से रूह को 31 मार्च 1972 को अलविदा कह दिया ! लेकिन आज भी बेहतरीन संवाद अदायगी फ़नकारों की कद्रदानों के दिलों में कही ना कही ज़िंदा हैं मीना कुमारी !

बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !

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