FILMS NEWS-मख़मली आवाज़ के बेताज बादशाह मोहम्मद रफ़ी की पुण्यतिथि(31 जुलाई ) पर विशेष-हिंदी सिनेमा के शहंशाह-ए-तरन्नुम !
31 -जुलाई के दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था, पर वे आज भी अपने सुरीले गीतों के द्वारा हमारे दिलों पर राज कर रहे हैं।
“तुम मुझे यूं न भुला पाओगे, हाँ तुम मुझे यूं न भुला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे” ये गीत रफ़ी साहब ने जब गाया था तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि इस गीत का मुखड़ा उनकी ज़िन्दगी पर कितना सही बैठेगा। रफ़ी साहब हिंदी सिनेमा के अत्यंत लोकप्रिय गायक तो थे ही पर साथ ही में वे सादगी, सरलता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। वे एक नेक दिल इंसान थे जो हर ज़रूरतमंद इंसान की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे। शायद इसीलिए आज बॉलीवुड में वे एक विराट व्यक्तित्व के रूप पहचाने जाते हैं। वे संगीत की वह अज़ीम शख्सियत थे जिनकी आवाज़ की शोख़ियों, गहराईयों, उमंग और दर्द के साथ इस देश की कई पीढियां जवान और बूढ़ी हुईं ! 1944 में पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के गीत ‘सोनिये नी, हीरीये नी’ से बहुत छोटी सी शुरूआत करने वाले रफ़ी की आवाज़ को संगीतकार नौशाद और शंकर जयकिशन ने निखारा और बुलंदी दी। चालीस साल लंबे फिल्म कैरियर में हिंदी, मराठी, तेलगू, असमिया,पंजाबी,भोजपुरी भाषाओं में छब्बीस हज़ार से ज़्यादा गीतों को आवाज़ देने वाले इस सर्वकालीन महानतम गायक और सदा हंसते चेहरे वाली बेहद प्यारी शख्सियत मोहम्मद रफ़ी के इंतकाल के बाद संगीतकार नौशाद ने कहा था – कहता है कोई दिल गया, दिलबर चला गया/ साहिल पुकारता है समंदर चला गया / लेकिन जो बात सच है वो कहता नहीं कोई/ दुनिया से मौसिक़ी का पयंबर चला गया।’रफ़ी साहब के करोड़ों प्रसंशकों की मांग है कि जिस तरह सुरों की देवी लता जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है उसी तरह सुरों के बादशाह रफ़ी साहब को भी मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !