Delhi News : हाई कोर्ट ने दी अर्जी दिल्ली सरकार और एमसीडी को थमाया नोटिस, बिना फायर लाइसेंस के धड़ल्ले से चल रहे हैं दिल्ली में होटल
दिल्ली के करोलबाग स्थित होटल अर्पित पैलेस में पिछले मंगलवार (12 फरवरी) को हुए भीषण अग्निकांड को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने तीनों एमसीडी और दिल्ली सरकार को नोटिस भेजा है. हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार और सिविक एजेंसियां बताएं कि आखिर इस तरह के हादसे होने की क्या वजह है और अब तक बिना एनओसी के दिल्ली में ऐसे कितने होटल चल रहे हैं. इसके अलावा कोर्ट ने मुआवजे को लेकर भी एजेंसी और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है.
हाई कोर्ट में मंगलवार को अर्पित भार्गव की तरफ से एक अर्जी लगाई गई थी जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में बिना फायर लाइसेंस के इस तरह के होटल धड़ल्ले से चल रहे हैं और उसके चलते यहां ठहरने वाले लोगों की जिंदगी दांव पर रहती है. इसके अलावा भार्गव का यह भी कहना था कि दिल्ली सरकार को एक समयसीमा में ऐसे होटलों, बारात घर और कम्युनिटी सेंटर्स के लिए गाइडलाइन तय कर लेना चाहिए और अगर उन गाइडलाइंस का पालन नहीं हो रहा हो तो ना सिर्फ ऐसे होटलों के खिलाफ बल्कि उन अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिन पर होटलों की निगरानी का जिम्मा होता है.
पिछले हफ्ते अर्पित होटल में आग लगने के चलते 17 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. होटल में एनओसी लिए बगैर एक रेस्टोरेंट भी चल रहा था और भी कई नियमों का पालन किए बिना इस होटल को चलाया जा रहा था. होटल अर्पित पैलेस के मालिक और उनके भाई राकेश गोयल को शनिवार को दिल्ली एयरपोर्ट से उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वह कतर से वापस लौटा था.
अर्पित होटल की तरह ही दिल्ली में सैकड़ों की तादाद में ऐसे होटल हैं जहां पर नियमों को ताक पर रखकर चलाया जा रहा है और अर्पित होटल की तरह ही यहां भी किसी भी वक्त कोई दुर्घटना हो सकती है और लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है, लेकिन कई बार सरकार और एजेंसियों के ढीले रवैया के चलते इस तरह के होटल तब तक बंद नहीं होते जब तक कि कोई बड़ी दुर्घटना ना हो.
दिल्ली हाई कोर्ट दिल्ली के बारात घर और कम्युनिटी सेंटर्स में नियमों के उल्लंघन से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, लेकिन मंगलवार को कोर्ट ने इस याचिका में प्राइवेट होटलों को भी शामिल कर लिया है. 13 मार्च को इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट दोबारा सुनवाई करेगा. लेकिन उससे पहले दिल्ली सरकार और सिविक एजेंसियों को हलफनामा देकर हाई कोर्ट को यह बताना होगा कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए उनकी प्लानिंग किस तरह की है.