दरगाह पर हुआ शानदार मुशायरा, बरेली पहुँचे गोविंद अक्षय(हैदराबाद ) से !
हज़रत मौलाना शाह वली मोहम्मद रहमतुल्लाह अलैह (वली मियाँ) के चल रहे चार रोज़ा उर्स ए मोहम्मदी में तीसरे रोज़ हस्बे मामूल बाद नमाज़ फ़ज्र क़ुरआन ख्वानी हुई. दिन में चादर पोशी व गुलपोशी का सिलसिला रहा. उर्स ए मोहम्मदी में ज़ायरीन की आमद और भी ज़्यादा बड़ गई, जुमा की नमाज़ मे माहोल और भी खुशनुमा लग रहा था.
मुशायरे की निज़ामत कर रहे उस्ताद ए शोआरा खालिद नदीम बदायूनी ने ” ताजदार ए अम्बिया है वो रसूलो का रसूल, हुक्मुरानी जिसकी सबको सबको खुसरवी अच्छी लगी” शेर पढ़कर मुशायरा शुरू किया. सज्जादानशी अल्हाज अनवर मियाँ हुज़ूर ने ” शाह वली के साय में ये ज़िन्दगी अच्छी लगी, आस्ताने आलिया की चाकरी अच्छी लगी” , ” इस वली की ये गली से तैबा की गलियां मिलीं, ग़र लगी अच्छी तो उन्की ये गली अच्छी लगी” अशार पढ़कर वाह वाह लूटी. मुफ़्ती सगीर अख्तर मिस्बाही को ” नात गोई- नात ख्वानी महफ़िल ए नाते नबी, आशिकान ए मुस्तफ़ा को हर घड़ी अच्छी लगी” इस शेर पर खूब दाद मिली. डा. शबाब कासगन्ज्वी ने ” एक अदा यह थी कि घर का घर निछावर कर दिया, मुस्तफ़ा को हर अदा बू बकर की अच्छी लगी” यह शेर पढ़ा. अब्दुल रउफ़ नश्तर ने “सीरत ए सरकार मैने गौसे जिस दम पढ़ी, आइने की मुझको आइनागिरी अच्छी लगी” पढ़ा. डा. अम्न ने “सच तो यह है अम्न की मिदहत शहे क़ौनेन की, जिस जुवाँ में भी हुई अच्छी लगी अच्छी लगी” पढ़ा. जब भी आया बेकरारी में मिला दिल को करार , मुझको दरबार ए वली मे हाज़िरी अच्छी लगी ” पढ़ा. “जबसे पहना हूँ गले में मुश्किलों से दूर हूँ मुझको तेरे नाम की माला बड़ी अच्छी लगी ज़िक्र करता हूँ मैं उनका चैन से सोता हूँ अब ‘अक्षय’ मुझको अपनी तनहा झोंपड़ी अच्छी लगी” गोविंद अक्षय(हैदराबाद ) का यह शेर खूब पसंद किया गया. डा. ज़ाहिद बरेलवी ने “उल्फ़त ए आले मोहम्मद से सजे हैं ज़हनो दिल, जब से रट मुझको दुरुद ए पाक की अच्छी लगी” पढा. बिलाल राज़ ने “बादशाहों की हमें कब नौकरी अच्छी लगी या नबी हमको गुलामी आपकी अच्छी लगी” पढा. असरार नसीमी ने “मन्कबत हम्द-ए ख़ुदा नात-ए नबी अच्छी लगी जो हुई उर्स-ए वली में शाइरी अच्छी लगी” पढा. फ़ारुख मदनापुरी ने ” प्यार का माहौल भाईचारगी अच्छी लगी, रीत उस शाख ए वली की यह बड़ी अच्छी लगी” यह अशार पढ़ा . महमूद मिनाई ने ” कैफ़ में जज़्म में डूबी हुई अच्छी लगी, आपके दरबार की हर हाज़िरी अच्छी लगी” पढ़ा. डा. अदनान काशिफ़ ने ” पैकर ए इकरा में ढलकर सारे आलम के लिए, आई जो ग़ारे हिरा से रोशनी अच्छी लगी” पढा. दुलारे फ़ारुकी ने ” रहमत ए हक़ झूम के कहने लगी सद मरहबा, तेरे होठो पर सजी नात ए नबी अच्छी लगी” पढा. शफ़ीक़ एड्वोकेट ने ” जब अज़ाने फ़ज्र की कानो में गून्जी है सदा, सुबह दम बादे सबा की ताज़गी अच्छी लगी” पढा. नवाब अख्तर मोहनपुरी, हाजी सईद,गयास उद्दीन, ज़ौक वज़ीरगन्वी, सलीम चाँदपुरी आदि शोआरा हज़रात ने कलाम पढ़े. सलात व सलाम के बाद सज्जादानशी अल्हाज अनवर मियाँ हुज़ूर ने दुआ फ़रमाई. इस मौके पर अशफ़ाक़ हुसैन, महबूब अली, अख़लाक़ अहमद, मोहसिन इरशाद, हाजी अजमल खान, समीर अली खान, जमाल, सय्यद मुस्तजाब अली, राशिद हुसैन, सय्यद नाज़िर अली(चाँद) इफ़्तेखार हुसैन आदि मौजूद रहे. जबसे पहना हूँ गले में मुश्किलों से दूर हूँ मुझको तेरे नाम की माला बड़ी अच्छी लगी ज़िक्र करता हूँ मैं उनका चैन से सोता हूँ अब ‘अक्षय’ मुझको अपनी तनहा झोंपड़ी अच्छी लगी” गोविंद अक्षय(हैदराबाद ) का यह शेर खूब पसंद किया गया.