क्रिकेट पर भारी फुटबॉल तो नहीं
पिछले दिनों देश में शायद पहली बार फुटबॉल के मुकाबले क्रिकेट बैक स्टेज में नजर आया। यह कमाल फीफा अंडर-17 विश्व कप के असर में देखने को मिला। इन दिनों आप अखबारों की कवरेज को देखें तो पहले खेल पेज पर फुटबॉल जमी हुई है। फीफा विश्व कप में पहली बार हिस्सा ले रही भारतीय टीम ‘पूल ए’ में सभी तीनों मैच हारकर नॉक आउट दौर में जाने से रह गई, फिर भी हर कोई भारतीय खिलाडिय़ों की प्रशंसा कर रहा है। इसे भारतीय फुटबॉल में नई शुरुआत माना जा रहा है। साथ ही यह भरोसा भी हुआ है कि हम यदि निचले स्तर से फुटबॉलर तैयार करने की योजना बनाएं तो भारतीय टीम भी विश्व स्तर पर धमाका कर सकती है। भारतीय प्रदर्शन से साबित हो गया कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत उन्हें संवारने की है।
भारत ने मेजबान होने के नाते विश्व कप में पहली बार खेलने की पात्रता हासिल की थी। ऐसे में किसी को भी भारत से कोई खास आशा नहीं थी। चर्चा यह हुआ करती थी कि देखते हैं, टीम शुरुआती मैचों में कितने गोल खाती है। लेकिन तीन मैचों के बाद टीम ने कुल 9 गोल खाए तो एक गोल किया भी। यह प्रदर्शन भारतीय टीम के लिए आखें खोलने वाला है। टीम ने पूल के दूसरे मैच में कोलंबिया के खिलाफ जिस तरह का प्रदर्शन किया, उसे फुटबॉल प्रेमी कभी नहीं भूलेंगे। भारतीय खिलाड़ी जैक्सन थाउनाजोमा ने 82वें मिनट में गोल जमाकर बराबरी दिलाई, लेकिन अगले ही मिनट में गोल खाकर भारत ने मैच गंवा दिया। इसी तरह अमेरिका को लंबे समय तक रोकने के बाद 3-0 से मुकाबला गंवाया और घाना से आखिरी मुकाबला हारा। इन पराजयों की वजह अनुभव की तो थी ही, साथ ही सभी मुकाबलों में भारतीय खिलाडिय़ों में ऊर्जा की कमी भी दिखी। यह वजह थी कि टीम ने हाफ टाइम तक विपक्षी टीम को रोकने के बाद मैच खोए।
देश में फुटबॉल के विकास के लिए इधर खेल सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर की हुई हैं। युवा खिलाडय़िों की एक फौज भी तैयार हुई है, जिन्हें अच्छे से तराशा जाए तो आने वाले दिनों में विश्व स्तरीय फुटबॉलर मिल सकेंगे। भारतीय दल के पुर्तगाली कोच लुइस नॉर्टन डि मातोस चाहते हैं कि इन खिलाडिय़ों को एक साथ बनाए रखा जाए। फेडरेशन ने इनको आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए इनके साथ 50,000 रुपये प्रति माह का करार करने की योजना बनाई है। इस राशि में हर साल 10 प्रतिशत बढ़ोतरी करने का भी प्रावधान है। लेकिन इस टीम के कुछ स्टार खिलाडिय़ों को और ज्यादा आकर्षक प्रस्ताव मिलने लगे हैं। गोलकीपर धीरज सहित तीन खिलाडिय़ों को आईएसएल की एक फ्रेंचाइजी ने 1.5 लाख रुपए प्रतिमाह के करार का प्रस्ताव रखा है। यह भी कहा है कि वे यदि विदेशी दौरे के लिए भारतीय टीम में चुने जाते हैं तो भी करार का पैसा मिलता रहेगा।
देश में फुटबॉल के विकास के लिए इधर खेल सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर की हुई हैं। युवा खिलाडय़िों की एक फौज भी तैयार हुई है, जिन्हें अच्छे से तराशा जाए तो आने वाले दिनों में विश्व स्तरीय फुटबॉलर मिल सकेंगे। भारतीय दल के पुर्तगाली कोच लुइस नॉर्टन डि मातोस चाहते हैं कि इन खिलाडिय़ों को एक साथ बनाए रखा जाए। फेडरेशन ने इनको आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए इनके साथ 50,000 रुपये प्रति माह का करार करने की योजना बनाई है। इस राशि में हर साल 10 प्रतिशत बढ़ोतरी करने का भी प्रावधान है। लेकिन इस टीम के कुछ स्टार खिलाडिय़ों को और ज्यादा आकर्षक प्रस्ताव मिलने लगे हैं।
भारतीय फुटबॉल फेडरेशन जानता है कि तीन साल के अथक प्रयासों के बाद तैयार इस टीम के कौशल को मांजने और इनका अनुभव बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा जाए तो 2019 में अंडर-20 फीफा विश्व कप में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस लक्ष्य के साथ ही भारतीय फुटबॉल फेडरेशन ने 2019 के फीफा अंडर-20 विश्व कप के लिए दावेदारी पेश कर दी है। मौजूदा टीम में विदेशी दिग्गजों का सामना करने की क्षमता है, जिसको और निखारा जाए तो भारत की गिनती एशिया की दिग्गज टीमों में हो सकती है। भारतीय टीम जब आखिरी मैच में घाना से 4-0 से हार गई तो कोच मातोस ने कहा, ‘दो टफ मैच खेलने के बाद घाना से खेलना कठिन था। इस वर्ग की अफ्रीकी टीमों का स्तर बहुत ऊंचा है और घाना उनमें सबसे मुश्किल टीम है। हममें और उनमें अंतर बहुत ज्यादा है।’ मातोस का मानना है कि फीफा अंडर-17 विश्व कप का स्तर आई लीग और आईएसएल के मुकाबले बहुत ऊंचा है, लिहाजा भारतीय टीम ने जो भी प्रदर्शन किया, वह बेहद अहम है। भारतीय फुटबॉल आज जहां है, वहां वह हमेशा से नहीं रहा है। 1950 में भारतीय टीम फीफा विश्व कप के लिए क्वालिफाई करने में सफल हो गई थी, पर जूते पहनकर खेलने में असहज महसूस करने के कारण भाग लेने ही नहीं गई। इसके अलावा उसने 1956 के ओलिंपिक में सेमीफाइनल तक की चुनौती पेश की। यही नहीं, 1962 जकार्ता एशियाई खेलों में दक्षिण कोरिया को 2-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। लेकिन इसके बाद प्रदर्शन में गिरावट आती चली गई।
पिछले तीन-चार दशकों तक भारतीय फुटबॉल टीम प्राय उपेक्षित रही, लेकिन अब उसकी सुध ली जा रही है। इधर कुछेक सालों में राष्ट्रीय फुटबॉल के स्तर को ऊपर उठाने के कुछ ठोस प्रयास किए गए, जिसके परिणाम दिखने लगे हैं। एक समय भारतीय टीम फुटबॉल रैंकिंग में 170वें स्थान तक पिछड़ गई थी, जबकि आज यह 107वें स्थान पर है। यह आईएसएल शुरू करने का परिणाम है। आज भारत खेल का एक बड़ा बाजार माना जा रहा है। किसी भी खेल संस्था का काम भारत के बिना नहीं चलने वाला। यही वजह है कि फीफा भी भारतीय फुटबॉल के स्तर को सुधारने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। सभी जानते हैं कि इस खेल में भारतीय टीम को शामिल करके कमाई बढ़ाई जा सकती है। भारतीय फुटबॉल के कर्ताधर्ता भी इस फायदे को समझ रहे हैं। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने फीफा अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी ली। अगर 2019 में अंडर-20 विश्वकप की मेजबानी भी मिली तो इससे भारतीय फुटबॉल को कहीं ऊंचे मुकाम तक ले जाया सकेगा।