कोरोना का पटाक्षेप हो
कोरोना ना रोक सकेगा, स्वर्णिम राजमहल.
फिर से जगमग – जगमग होंगे, मन के दीपमहल.
मानव के बढ़ते कदमों को, कब किसने रोका.
धरती से अंबर- सागर तक, है किसने टोका.
फिर से निश्चित देख सकेंगे, मोहक ताजमहल.
कोरोना ना रोक सकेगा…..
बोलो कैसे रुक पायेगी, धूप हवा खुश्बू.
हर संकट को कर लेंगे अब, वैज्ञानिक काबू.
आज अभी बिखरे हैं अरमां, जैसे ताशमहल.
कोरोना ना रोक सकेगा…
कोरोना का पटाक्षेप ही, है इसका अंजाम.
आयेगा आयेगा निश्चित, सौ प्रतिशत परिणाम.
हर झोपड़पट्टी पायेगी, अपना राजमहल.
कोरोना ना रोक सकेगा…
भले महल के टूट गये हैं, खिड़की द्वारे सब.
हवामहल के धुंधले दर्पण, थककर हारे सब.
लेकिन फिर से झूम उठेंगे, ज्योतित शीशमहल.
कोरोना ना रोक सकेगा। इंद्रदेव त्रिवेदी
214, बिहारी पुर खत्रियान, बरेली ( उत्तर प्रदेश ) – 243003
बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !