सीसीईए ने जूट की बोरियों में अनिवार्य पैकेजिंग के मानकों का दायरा बढ़ाने को मंजूरी दी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने जूट पैकेजिंग सामग्री (जेपीएम) अधिनियम, 1987 के तहत अनिवार्य पैकेजिंग मानकों का दायरा बढ़ाने को अपनी मंजूरी निम्नलिखित रूप में दे दी है:
- सीसीईए ने यह मंजूरी दी है कि 100 प्रतिशत अनाजों और 20 प्रतिशत चीनी की पैकिंग अनिवार्य रूप से जूट (पटसन) की विविध बोरियों में ही करनी होगी। विभिन्न तरह की जूट बोरियों में चीनी की पैकिंग करने के निर्णय से जूट उद्योग के विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- आरंभ में खाद्यान्न की पैकिंग के लिए जूट की बोरियों के 10 प्रतिशत ऑर्डर रिवर्स नीलामी के जरिए ‘जेम पोर्टल’ पर दिए जाएंगे। इससे धीरे-धीरे कीमतों में सुधार का दौर शुरू हो जाएगा।
प्रभाव:
- इस निर्णय से जूट उद्योग के विकास को बढ़ावा मिलेगा, कच्चे जूट की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ेगी, जूट क्षेत्र का विविधीकरण होगा और इसके साथ ही जूट उत्पाद की मांग बढ़ेगी जो निरंतर जारी रहेगी।
- यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। लगभग 3.7 लाख कामगार और कृषि क्षेत्र से जुड़े लाखों परिवार अपनी आजीविका के लिए जूट क्षेत्रों पर ही निर्भर है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार निरंतर ठोस प्रयास करती रही है।
- जूट उद्योग मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र पर ही निर्भर है, जो खाद्यान्न की पैकिंग के लिए प्रत्येक वर्ष 6500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा मूल्य की जूट बोरियां खरीदता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जूट उद्योग के लिए मुख्य मांग निरंतर बनी रही और इसके साथ ही इस क्षेत्र पर निर्भर कामगारों एवं किसानों की आजीविका में आवश्यक सहयोग देना संभव हो सके।
- इस निर्णय से देश के पूर्वी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों, विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश,मेघालय और त्रिपुरा में रहने वाले किसान एवं कामगार लाभान्वित होंगे।
जूट क्षेत्र को आवश्यक सहयोग देने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय:
- पूरी तरह सोच-समझकर उठाए गए एक अहम कदम ‘जूट आईकेयर’ के जरिए कच्चे जूट की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार लगभग एक लाख जूट किसानों को अपनी ओर से आवश्यक सहयोग देती रही है। इसके लिए कृषि विज्ञान से जुड़ी उन्नत प्रथाओं अथवा तौर-तरीकों का प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है, जिनमें सीड ड्रिल का इस्तेमाल कर कतारबद्ध बुवाई सुनिश्चित करना, पहिए वाले फावड़े एवं खूंटे वाले निराई उपकरणों का उपयोग कर खरपतवार का समुचित प्रबंधन करना, उन्नत प्रमाणित बीजों का वितरण करना और सूक्ष्म जीवाणुओं की सहायता से गलाने की व्यवस्था करना शामिल हैं। इन कदमों से जहां एक ओर कच्चे जूट की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर जूट किसानों की आमदनी में प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपये की वृद्धि हुई है।
- इस संबंध में जूट किसानों की सहायता के लिए भारतीय पटसन निगम (जेसीआई) को दो वर्षों के लिए 100 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है, जिसकी शुरुआत वित्त वर्ष 2018-19 से की गई है। इसका उद्देश्य जेसीआई को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े परिचालन करने में सक्षम बनाना और जूट क्षेत्र में मूल्य संबंधी स्थिरता सुनिश्चित करना है।
- जूट क्षेत्र में विविधीकरण में सहयोग देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पटसन बोर्ड ने राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान के साथ गठबंधन किया है और गांधीनगर में एक पटसन डिजाइन प्रकोष्ठ खोला गया है। इसके अलावा, विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र की राज्य सरकारों और विभिन्न विभागों जैसे कि सड़क परिवहन मंत्रालय एवं जल संसाधन मंत्रालय के सहयोग से जूट जियो टेक्सटाइल और एग्रो-टेक्सटाइल के संवर्धन का कार्य शुरू किया गया है।
- जूट क्षेत्र में मांग बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने बांग्लादेश और नेपाल से आयात होने वाले पटसन उत्पादों पर निश्चित डंपिंग-रोधी शुल्क लगाया है, जो 5 जनवरी 2017 से प्रभावी हो चुका है। इन उपायों के परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश में 13 सुतली मिलों ने अपना परिचालन शुरू कर दिया है, जिससे 20,000 कामगार लाभान्वित हो रहे हैं। इसके अलावा, निश्चित डंपिंग-रोधी शुल्क लगाने से भारतीय जूट उद्योग के लिए घरेलू बाजार में 2 लाख एमटी जूट उत्पादों की अतिरिक्त मांग हेतु गुंजाइश बन गई है।
- जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दिसम्बर, 2016 में ‘जूट स्मार्ट’ के नाम से एक ई-सरकारी पहल का शुभारंभ किया गया था, जिससे सरकारी एजेंसियों द्वारा बी-टवील टाट खरीदने के लिए एक एकीकृत प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो गया। इसके अलावा, भारतीय पटसन निगम एमएसपी और वाणिज्यिक परिचालनों के तहत जूट की खरीद के लिए जूट किसानों को 100 प्रतिशत धनराशि ऑनलाइन हस्तांतरित कर रहा है।