चीन के विस्तारवादी कदमों को रोकने पर बड़े देश हो रहे है अब एकजुट!
पूर्वी लद्दाख में भी चीन का बना है अड़ियल रुख — निर्भय सक्सेना — पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर टकराव को हल करने के लिए विगत दिनों चुशुल में सैन्य कमांडर स्तर की चीन से हुई वार्ता में भी चालबाज चीन अपनी करनी कथनी में एकरूपता नही दिखा पाया उसकी पूर्व से बनी सोच में अड़ियलपन साफ नजर आता रहा। डेपसंग, हाट स्प्रिंग एवम गोगरा के मुद्दे पर चीन का रुख पूर्ववत ही दिखा जिसके चलते इन स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने पर चीन अभी भी आनाकानी ही कर रहा है। वार्ता में भारत के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पी जे के मेनन ने चीन से स्पष्ट कहा कि टकराव की वाकी की जगहों से सैनिकों के हटाने की प्रक्रिया पूरी होने से दोनो पक्षों द्वारा सेनाओं के हटाने पर विचार करने की ही राह खुलेगी। आजकल चीन जिस तरह से अपने विस्तारवादी कदमों पर अड़ा है वह दुनिया को चिंतित कर रहा है। ताइवान में चीन की घुसपैठ पर अमरीका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने भी चीन को चेताया है। साथ ही कहा है कि कोई भी देश ताइवान की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था को खतरे में डालने की कोशिश करेगा तो अमरीका के पास उसका विरोध करने की छमता है। अब अमरीका ने अपनी नोसेना का सातवां बेड़ा भी दक्षिणचीन सागर में अभ्यास को भेज दिया है। इसके साथ ही हिन्द – प्रशांत महासागर शेत्र में चीन की विस्तारवादी आक्रामक हरकतों को अब भारत जापान मिलकर रोकेंगे। इसके लिए दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री अप्रैल के आखिरी सप्ताह में टोकियो में 2 + 2 स्तर की सीधी वार्ता भी करेंगे। स्मरण रहे की क्वाड देशों ने अपने प्रथम सम्मेलन में खुला हिन्द प्रशांत महासागर होने पर जोर दिया था। चीन का एशिया प्रशांत महासागर एरिया में जापान, मलेशिया, फिलीपीन, ताइवान वियतनाम से भी विवाद चल रहा है। बीते दिनों हिन्द महासागर में भी भारत अमरीका की नोसेना ने संयुक्त अभ्यास किया था। अमरीका की केरियर स्ट्राइक के अलावा इसमे भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने भी भाग लिया था। अपनी उकसावे वाली हरकतों के बीच अब चीन तिब्बत में एक विशाल बांध बनाने की भी योजना बना रहा है। यह चीन की यांग्सी नदी पर बने तीन बांधों से ज्यादा बड़ा होगा और चीन में खपत के लिए अब और तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा। इसकी वजह से पर्यावरणविदों के साथ-साथ भारत में भी इसके लेकर चिंता बढ़ रही है। अब चीन ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को हिमालय के इलाकों और भारत में बहने से पहले नियंत्रित करने की भी कोशिश कर सकता है। यह परियोजना तिब्बत के मेडोग काउंटी में शुरू होगी और मध्य चीन में यांग्सी नदी पर बने थ्री जॉर्ज बांध से भी कई गुना बड़ी होना बताई जा रही है।
जिसकी क्षमता हर साल 300 अरब किलोवाट बिजली का उत्पादन करने की होगी । बता दें कि यालुंग जांग्बो नदी तिब्बत से बहते हुए ब्रह्मपुत्र बनकर भारत में प्रवेश करती है। भारत अब अपनी सैन्य शक्ति में निरंतर इजाफा कर रहा है। फ्रांस से 21 राफेल विमान भारत आ चुके हैं।
उधर विश्व स्वास्थ्य संघटन द्वारा चीन की बुहान लैब से कोरोना वायरस की उत्पत्ति पर पूर्व में ही कलीन चिट देने के बाद अब यह मामला फिर गर्म हो गया है। यूरोप, अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के 24 वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को खुला पत्र भेज कर कोरोना वायरस की उत्त्पति की पुनः निष्पक्ष जांच की मांग की है। क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संघटन ने चीन की बुहान लैब से वायरस नहीं फैलने पर चीन को कलीन चिट दे दी थी।
बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !