Bareilly-तीन सदी पुरानी रस्म जश्न- ए – चिरागां , पहुचे पूर्व मंत्री संतोष गंगवार
बरेली भारत में सूफीइज़्म के माध्यम से खुलूस और मुहब्बत की तबलीग़ (प्रसार) ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ से शुरू हुई थी।
ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया उसी सिलसिले की अहम दरगाह है और पूरी दुनिया में उसके मुरीद हैं। ख़ानक़ाह शरीफ में मज़हब की बंदिश नहीं रहती। भारत के तमाम मशहूर और मारूफ फनकार इस ख़ानक़ाह में आकर हाजिरी दे चुके हैं। उनकी अक़ीदत में यह शुमार है कि यहाँ आकर उन्हें शोहरत की बुलन्दी मिलती है और वह सुकून भी जिसकी तलाश में लोग इधर-उधर भटकते हैं। यह ख़ानक़ाह अपनी क़दीमी रिवायत पर क़ायम रहकर भेदभाव, नफ़रत, सियासत और लालच से दूर रहकर बेलौस खि़दमत को अंजाम देती है। ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया की तीन सदी पुरानी रस्म है ‘जश्न-ए-चिरागां’। यह रस्म एक खुसूसी इबादत को भी अंजाम देती है और मुल्क की तहजीब (संस्कृति) को भी मजबूत करती है। यह रस्म पूरी इन्सानी बिरादरी को जोेड़ने का पाकीज़ा मक़सद रखती है और इसमें उसे बीते सालों में कामयाबी भी मिली है। चाँद की 17 रबीउस्सानी को जश्न-ए-चिरागां की रिवायत (परम्परा) है। यह एक सूफी रिवायत (परम्परा) है जो मुल्क की गंगा-जमुनी तहज़ीब के बल पर सद्भावना का पैग़ाम (संदेश) देती है और इन्सानी बिरादरी की खुशहाली की कामना करती है। ‘जश्न-ए-चिरागां’ में बीते कई सालों में अब तक लाखों लोग शिरकत कर चुके हैं, वहीं कोविड-19 की वजह से 02 साल के बाद इस रस्म में काफी तादाद में लोगों ने शिरकत की जिनमें मुकामी (स्थानीय), देश के कोने-कोने से आए लोगों के अलावा विदेश (बैरूनी) अक़ीदतमंद (श्रद्धालु) भी शामिल हैं। मान्यता है कि ‘जश्न-ए-चिरागां’ में लोग चिराग जलाकर जो मन्नत माँगते हैं, वह पूरी हो जाती है। यह खास तक़रीब और तारीख ख़ानक़ाह के बुजुर्गाें को खास अतिया है। ख़ानक़ाह में आने वाले देश-विदेश के लोगों के ठहरने और खाने आदि की व्यवस्था पूरी की गई थी। ख़ानक़ाह सभी धर्मोें के लोगों का बराबरी के स्तर पर अहतराम (सम्मान) करती है और उनके पाक (पवित्र) नज़रिए को अहमियत देती है। ‘जश्न-ए-चिरागां’ में सज्जादानशीन हज़रत महेंदी मियाँ साहब के अलावा सभी साहबज़ादगान, अक़ीदतमंदों (श्रद्धालुओं) द्वारा माँगी गई मन्नतों के लिए खुसूसी दुआ करी गई और बाद नमाज़-ए-मग़रिब चिरागँ रौशन किया गया। ‘जश्न-ए-चिरागां’ का आग़ाज़ सुबह फज़्र की नमाज़ के बाद कुरआन ख़्वानी से पाक़ीज़ा रस्म के साथ हुआ। इसके बाद अक़ीदतमंद दिन भर मन्नत-ओ-मुरादों, चादरपोशी, गुलपोशी और नज्ऱ-ओ-नियाज़ में मसरूफ रहें। शाम को कुल शरीफ की रस्म के बाद सज्जादानशीन हज़रत महेंदी मियाँ साहब सोने और चाँदी के ख़ानक़ाही चिराग रौशन करंेगे फिर लोग क़तार दर क़तार चिराग हासिल करेंगे। इसी के साथ मन्नतों के चिराग रोशन करने का सिलसिला चलेगा और रात में ख़ानक़ाही कव्वाल कुल शरीफ के खुसूसी कलाम पेश करें। अंत में सज्जादानशीन महेंदी मियाँ साहब मुल्क और हाज़रीन के लिए खुसूसी दुआ की और इसके बाद हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के उर्स में शिरकत करने के लिए दिल्ली रवाना हो गये।
बरेली से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट !