Bareilly news : कुतुबखाना घण्टाघर को क्लॉकटॉवर का रूप देकर स्मार्ट सिटी में नई पहचान दी जाये,

जनसेवा टीम के अध्यक्ष पम्मी खान वारसी ने कहा कि कुतुबखाना घण्टाघर को क्लॉकटॉवर का रूप देकर स्मार्ट सिटी में भी पुरानी पहचान को नई पहचान दी जाये, कुतुबखाना घण्टाघर बरेली की प्रसिद्ध पहचान हैं,मगर लगभग 31 वर्षो से बरेली के घण्टाघर का समय रुका हुआ हैं

उसकी वजह हैं कि शहर की मुख्य घड़ी ही बंद पड़ी हुई हैं,हम नगर निगम और राज्य सरकार से मांग करते हैं कि कुतुबखाना घण्टाघर को भी स्मार्ट बनाया जाये,शहर में पार्किग की व्यवस्था न होने की वजह से शहर के बाशिंदों को जाम की स्थिति से जूझना पड़ता हैं शहर वासियों को राहत मिले इसके लिये घण्टाघर पर मल्टीप्लेक्स पार्किंग बनाये और उसके ऊपर क्लॉकटॉवर बनाकर कुतुबखाना घण्टाघर को स्मार्ट बनाये ताकि शहर को सुंदर रूप दिया जा सके। 1975 में कुतुबखाना घण्टाघर का निर्माण उस दौर के नगर विकास मंत्री रहे स्व.राम सिंह खन्ना जी ने करवाया था जब बरेली महानगर नहीं था बरेली नगर पालिका थी, खूबसूरत फ़बारे, पेड़ पौधे कियारी बनाई गई थी,कुतुबखाना पुलिस स्टॉप शेड के पीछे उदघाटन का एक पत्थर भी लगा था लेकिन अब वो पत्थर गायब हो चुका हैं,कार पार्किंग की जगह भी थी शाम के समय शहरभर के लोग घण्टाघर घूमने आते थे। हर घण्टे की आवाज़ दूर तक लोगों को समय बताती थी। 1977 में एक साइरन भी लगा था जिसकी आवाज़ सुनकर लोग रमज़ान के महीने में सहरी इफ़्तार के वक़्त का पता चलता था,हाजी अब्बास नूरी ने भी कहा कि हमने भी रमज़ान में साइरन की आवाज़ सुना करते थे। जब ये घड़ी रुक जाती थी तो खान साहब नाम के घड़ी रिपेयरिंग का काम करने वाले उसको ठीक किया करते हैं उनके साथ घड़ी दुकानदार हाजी जावेद खान भी होते थे और साथ में मिलकर घड़ी को चालू करते थे। घण्टाघर की घड़ी लगभग 1990 से खराब हैं, बड़े बुजुर्गों की कहावत हैं कि घर की घड़ी बन्द नहीं होना चाहिये घड़ी का वक़्त रुकने से वक़्त खराब हो जाता हैं यहाँ तो शहर की मुख्य घड़ी ही खराब पड़ी हुई हैं। 1968 में कुतुबखाना मोती पार्क से ही सिटी बस चला करती थी जो कोतवाली,नॉवेल्टी,सिविल लाइन,कचहरी,जंक्शन रेलवे स्टेशन तक जाती और आती थी।घण्टाघर व इंद्रा मार्किट के बीच में एक तागा स्टेशन भी हुआ करता था पर अब वो नहीं हैं। जब भारत में अंग्रेजों की ब्रिटिश हुकूमत का राज था , बात है 1868 की जब अंग्रेजी हुकूमत के पैर बरेली की धरती पर जमे हुए थे और उनके परिवार यहाँ बस गए थे।इसी समय 1868 में अंग्रेजों ने इस जगह जो, की उस समय भी पुरे बरेली का मुख्य केंद्र होता था, कुतुबखाना पर एक बड़े भवन का निर्माण करवाया , जिसका नाम था टाउन हॉल रखा इसका निर्माण अंग्रेजों ने सरकारी दफ्तर तथा सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए बनाया था 1868 में इसी टाउन हॉल में एक पुस्तकालय (लाइब्रेरी) की स्थापना की गयी जिसका उपयोग वे खुद तथा आम लोग भी कर सकते थे । चूँकि उर्दू में पुस्तकालय को कुतुबखाना कहते हैं , इसलिए बाद में इस जगह का नाम टाउन हॉल की जगह बोलचाल की भाषा में कुतुबखाना पड़ गया और आज इसी नाम से ठीक बरेली शहर के बीच में स्तिथ एक बाजार के रूप में जाना जाता है। 1962 तक इस भव्य इमारत का हाल ख़राब हो चुका था। देख भाल न होने की वजह से तब आजादी के बाद 1962 में कुतुबखाना पुस्तकालय को गिरा दिया गया और नगर निगम ने यहाँ एक बाजार बसा दिया जो आज कुतुबखाना बाजार के नाम से जाना जाता है ।यह बरेली शहर का सबसे मुख्य और बड़ा बाजार है जिसमे कपड़ों से लेकर दवाओं, मशीनरी, खानपान,बर्तनो का मुख्य बाजार , जेवर और मीनाकारी का काम ,शहर की फल और सब्ज़ी मंडी आदि हर तरह के सामान का होलसेल तथा खुदरा व्यवसाय होता है , चाहे जो भी सामान हो बरेली के क़ुतुबखाना बाजार में आपको मिल जायेगा । इसी स्थान पर बाद में एक घंटाघर बनवाया गया तथा इसके इर्दगिर्द चार पहिया और दो पहिया वाहनों पार्किंग स्थल बना दिया गया।

 

बरेली से अमरजीत सिंह की रिपोर्ट !

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