Bareilly News : चमकी बुखार से पीड़ित 3/4 परिवार गरीबी रेखा के नीचे, 82% करते हैं मजदूरी: सर्वे रिपोर्ट
बिहार सरकार ने चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के परिवार पर सोशल ऑडिट सर्वे कराया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है। सर्वे में शामिल परिवारों में से 82% परिवारों की आय का जरिया मजदूरी है। तीन चौथाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे आते हैं।
बिहार सरकार के सोशल ऑडिट के अनुसार, चमकी बुखार से पीड़ित परिवार बहुत गरीब
सर्वे में शामिल परिवारों में से 82% मजदूरी के जरिए अपना जीवन बिताते हैं
सर्वे में शामिल परिवारों में 60% ने घर में शौचालय नहीं होने की बात भी मानी
सर्वे में शामिल 191 परिवारों ने कहा कि वह कच्चे मकानों में ही रहते हैं
बिहार सरकार द्वारा अक्यूट इन्सफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार) से पीड़ित परिवारों का सोशल ऑडिट कराया गया है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि ज्यादातर परिवार बेहद गरीब हैं और उनमें से अधिकतर परिवार मजदूरी का काम करते हैं। सोशल ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित परिवारों में से 3/4 परिवार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के हैं। जिन 287 चमकी बुखार से पीड़ित परिवारों पर यह सर्वे कराया गया है, उसकी रिपोर्ट हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के पास है।
गरीबी रेखा से नीचे हैं ज्यादातर परिवार
इन परिवारों के औसत सालाना आय सर्वे के अनुसार 52,500 रुपये तक है। इसका मतलब है कि प्रति महीने इन परिवारों की आय 4,465 रुपये है। 2011-2012 में जारी रंगराजन कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण बिहार में औसत गरीबी रेखा 971 रुपये प्रति महीने तय की गई है। इसके अनुसार एक परिवार में औसतन 5 सदस्यों के लिए यह कुल 4,855 रुपये की मासिक पारिवारिक आय तय की गई है। अगर इसमें 8 साल में महंगाई में हुई 2% की औसतन वृद्धि को जोड़ा जाए तो प्रति व्यक्ति आय आज की तारीख में 1,138 रुपये होनी चाहिए और 5 सदस्यों वाले परिवार की मासिक आय 5,700 रुपये होनी चाहिए।
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82% परिवार मजदूरी से करते हैं गुजारा
सर्वे के अनुसार, 77% परिवार ऐसे हैं जिनकी आमदनी 5,770 रुपये से कम है और इन परिवारों में औसतन 6 से 9 सदस्य हैं। सोशल ऑडिट रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि इनमें से जो परिवार सबसे बेहतर आर्थिक स्थिति वाले हैं, उनकी सालाना आय लगभग 1.6 लाख रुपये है। सर्वे में शामिल किए गए परिवारों में से 82% परिवारों की आय का जरिया मजदूरी है।
अस्पतालों ने अपनी सुरक्षा के लिए किए पुख्ता इंतजाम
मुजफ्फरपुर के ज्यादातर अस्पतालों और डॉक्टरों ने चमकी बुखार के प्रकोप के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम कर लिए। कोलकाता में डॉक्टरों पर हुए हमले से भी पहले मुजफ्फरपुर के बड़े अस्पतालों ने निजी कंपनियों के गार्ड की सेवा सुरक्षा के लिए ली थी। बड़े अस्पतालों के पास अपने गार्ड हैं जबकि छोटे अस्पतालों ने पूल फंडिंग के जरिए सुरक्षा का इंतजाम किया है। सुरक्षा के लिए गनमैन, बॉडी बिल्डर्स और लाठी से लैस आदमियों को तैनात किया है। सुरक्षा के ऐसे इंतजाम की वजह से ही 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद भी मुजफ्फरपुर में डॉक्टरों के साथ हिंसा की कोई वारदात नहीं हुई।
एक तिहाई पीड़ित परिवारों के पास राशन कार्ड भी नहीं
चमकी बुखार से पीड़ित परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि इनमें से एक तिहाई परिवारों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। सर्वे में शामिल परिवारों में से हर छठे परिवार ने स्वीकार किया कि उन्हें पिछले महीने में कोई राशन नहीं मिला। सर्वे में शामिल 287 परिवारों में से 200 (70%) परिवारों ने स्वीकार किया कि चमकी बुखार का पता लगने से कुछ देर पहले तक उनके बच्चे धूप में खेल रहे थे। पीड़ित बच्चों में से 61 बच्चे ऐसे थे जिन्होंने बीमार होने से पहली रात को कुछ भी नहीं खाया था।
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191 परिवार कच्चे घरों में रहते हैं
सर्वे में शामिल परिवारों में से 191 परिवार ऐसे हैं जो कच्चे घरों में रहते हैं। 102 परिवार ऐसे हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान की बात स्वीकार की। 87% परिवारों ने पीने के लिए शुद्ध पानी की बात मानी, लेकिन 60 फीसदी परिवारों ने घर में शौचालय नहीं होने की बात कही। सरकार का दावा है कि बीमारों के लिए ऐम्बुलेंस सर्विस की सुविधा है जबकि 84% परिवारों ने बच्चों को अस्पताल लाने के लिए ऐम्बुलेंस सुविधा के प्रयोग से इनकार किया। ज्यादातर परिवारों का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सरकार की ओर से मुफ्त ऐम्बुलेंस सुविधा भी है।
चमकी बुखार के बारे में तीन चौथाई परिवारों को जानकारी नहीं
64% परिवारों का कहना है कि उनके घर के आसपास लीची के बगीचे हैं और उनमें से ज्यादातर परिवार ने माना कि बीमार पड़ने से पहले उनके बच्चों ने लीची खाई थी। हैरान करनेवाली बात है कि तीन चौथाई परिवारों का कहना है कि उन्हें चमकी बुखार के बारे में कुछ नहीं पता और न ही उन्हें इसके इलाज की सुविधा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में होने के बारे में पता था।